भारतीय रुपया जोरदार उछाल के साथ मनोवैज्ञानिक रूप से अहम 84 प्रति डॉलर के स्तर को पार कर गया है। यह वही स्तर है जो आखिरी बार जून 2024 में देखा गया था। डोनाल्ड ट्रम्प के नवंबर 2024 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद से रुपया अब तक के सभी नुकसानों की भरपाई कर चुका है।
ट्रेडर्स का कहना है कि अमेरिका-भारत व्यापार समझौते को लेकर बढ़ती उम्मीदों, मजबूत डॉलर प्रवाह और शॉर्ट-कवरिंग के चलते रुपये में यह तेजी देखने को मिल रही है। शुरुआती कारोबार में रुपया 83.78 के उच्चतम स्तर तक पहुंच गया, जो दिन में करीब 0.8% की बढ़त थी। सुबह 10:35 बजे IST पर रुपया प्रति डॉलर 83.93 पर कारोबार कर रहा था। इस सप्ताह अब तक रुपये में लगभग 2% की मजबूती दर्ज की गई है।
फरवरी में ट्रम्प की टैरिफ नीतियों को लेकर अनिश्चितता के चलते रुपया 87.95 के सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया था। लेकिन मार्च और अप्रैल में पोर्टफोलियो निवेश और भारत के अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर शुरुआती हस्ताक्षरकर्ता बनने की उम्मीदों के चलते इसमें तीव्र सुधार देखने को मिला।
रिपोर्ट्स और ट्रेडर्स की राय
रॉयटर्स की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, “व्यापार समझौते से विनिर्माण गतिविधियों को भारत में स्थानांतरित करने की अटकलों के चलते शॉर्ट-कवरिंग देखी गई है,” यह जानकारी एक हेज फंड के सिंगापुर स्थित व्यापारी ने दी। निर्यातकों द्वारा डॉलर की बिक्री और रुपये पर मंदी के दांवों में कमी ने भी रुपये को समर्थन दिया है।
रॉयटर्स के एक पोल के अनुसार, निवेशकों ने अब रुपये पर सकारात्मक दांव लगाए हैं, ठीक उसी तरह जैसे उन्होंने अन्य एशियाई मुद्राओं पर किया है।
FII की लगातार खरीदारी
रुपये की मजबूती का एक प्रमुख कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FII) की निरंतर खरीदारी है। वे लगातार 11वें सत्र में भारतीय शेयर बाजारों में शुद्ध खरीदार बने हुए हैं। यह पिछले दो वर्षों में निवेश का सबसे लंबा सिलसिला है।
ट्रेडर्स का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ओर से आक्रामक डॉलर खरीदारी में कमी ने रुपये को और मजबूत किया है। हालांकि, बीते साल RBI ने 84 के स्तर पर रुपये को समर्थन देने के लिए भारी हस्तक्षेप किया था। इसलिए संभावना जताई जा रही है कि इस बार भी RBI इस स्तर पर डॉलर की खरीद शुरू कर सकता है।
कमजोर डॉलर इंडेक्स का असर
डॉलर इंडेक्स की कमजोरी ने भी रुपये को सहारा दिया है। जनवरी 2025 में यह 110 के उच्चतम स्तर पर था, लेकिन अब यह घटकर 100 के आसपास आ गया है। इस बीच, एशियाई मुद्राएं भी मज़बूत रहीं। खासकर, अपतटीय चीनी युआन में 0.3% की बढ़त दर्ज की गई है, यूएस-चीन व्यापार वार्ता को लेकर नई उम्मीदों के चलते।