श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमार दिसानायके ने अपनी पहली विदेश यात्रा के दौरान नई दिल्ली में भारत को आश्वासन दिया कि श्रीलंका अपने क्षेत्र का किसी भी तरह से इस्तेमाल नहीं होने देगा, जिससे भारत के सुरक्षा हितों को खतरा उत्पन्न हो।
भारत के साथ सहयोग को लेकर श्रीलंका की प्रतिबद्धता राष्ट्रपति दिसानायके और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुई महत्वपूर्ण चर्चा के बाद सामने आई। यह आश्वासन चीन के ‘मिशन हिंद महासागर’ की आक्रामक गतिविधियों के मद्देनजर बेहद अहम है, जो सीधे तौर पर भारत के लिए सुरक्षा खतरा बन रहा है।
गौरतलब है कि चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर नियंत्रण तब हासिल किया था, जब कोलंबो चीनी ऋण चुकाने में विफल रहा। इसके बाद से चीन लगातार वहां नौसैनिक निगरानी और जासूसी जहाजों की तैनाती कर रहा है।
बीते दो वर्षों में चीन ने हंबनटोटा में 25,000 टन वजनी उपग्रह और बैलिस्टिक मिसाइल ट्रैकिंग पोत युआन वांग 5 को कई बार तैनात किया है। यह भारत के लिए विशेष चिंता का विषय है, क्योंकि श्रीलंका की रणनीतिक स्थिति भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
राष्ट्रपति दिसानायके ने भारत की यात्रा के दौरान कहा, “राष्ट्रपति के रूप में अपनी पहली विदेश यात्रा पर भारत आना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। मैं आर्थिक संकट के समय श्रीलंका का समर्थन करने और ऋण पुनर्गठन में सहायता करने के लिए प्रधानमंत्री @narendramodi का आभारी हूँ। हमारी बैठक में हमने व्यापार, रक्षा, ऊर्जा, ब्रिक्स, यूएनसीएलसीएस और अवैध मछली पकड़ने पर चर्चा की। मैंने प्रधानमंत्री मोदी को श्रीलंका आने का निमंत्रण दिया और भारत को यह आश्वासन दिया कि श्रीलंका का क्षेत्र भारत के सुरक्षा हितों के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने दिया जाएगा।”
अगस्त 2022 में, नई दिल्ली द्वारा उठाई गई चिंताओं के चलते श्रीलंका ने शुरू में चीन को अपने निगरानी जहाज की आवाजाही को स्थगित करने को कहा था और ऐसी गतिविधियों से दूर रहने का आग्रह किया था। लेकिन बाद में कोलंबो ने चीनी जहाज को “पुनःपूर्ति” के लिए हंबनटोटा बंदरगाह पर डॉक करने की अनुमति दे दी।
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, तब से चीनी निगरानी और जासूसी जहाज लगातार हिंद महासागर में गश्त कर रहे हैं और नियमित रूप से हंबनटोटा बंदरगाह पर डॉक कर रहे हैं।
चीन के ट्रैकिंग जहाजों की श्रृंखला का हिस्सा युआन वांग 5 अत्याधुनिक ट्रैकिंग, सेंसिंग और संचार प्रणाली से लैस है। यह विदेशी उपग्रहों, हवाई संपत्तियों और मिसाइल प्रणालियों का पता लगाने और ट्रैक करने में सक्षम है।
बता दें कि चीन ने हंबनटोटा बंदरगाह का नियंत्रण 99 वर्षों के लिए पट्टे पर लिया था, क्योंकि श्रीलंका 1.7 बिलियन डॉलर के ऋण में से प्रति वर्ष 100 मिलियन डॉलर का भुगतान करने में विफल रहा था। इस बंदरगाह के निर्माण का पहला चरण वर्ष 2010 में पूरा हुआ था।
भारत के लिए यह आश्वासन इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि श्रीलंका हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने में एक अहम भूमिका निभा सकता है।