भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने इस महीने की शुरुआत में ब्याज दरों में डबल बैरल कटौती कर यह संकेत देने की कोशिश की कि अब कंपनियों और उपभोक्ताओं के लिए सस्ते फंड उपलब्ध होंगे, जिससे खर्च और निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा और आर्थिक विकास को गति दी जा सकेगी।
मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक के मिनट्स के अनुसार, यह कटौती इसलिए की गई क्योंकि कंपनियां बढ़ती क्षमता उपयोग के बावजूद अपने निवेश निर्णयों को टाल रही थीं, वहीं मुद्रास्फीति के कम होने की संभावना बनी हुई थी। निरंतर आर्थिक अनिश्चितता के चलते कई कंपनियां निर्णय नहीं ले पा रही थीं, जिसे RBI अधिकारियों ने “निष्क्रियता का क्षेत्र” कहा।
MPC ने रेपो दर में अप्रत्याशित रूप से 50 आधार अंक (bps) यानी 0.50% की कटौती के पक्ष में मतदान किया। रेपो दर वह दर है जिस पर आरबीआई बैंकों को अल्पकालिक ऋण देता है। इसके अलावा, समिति ने अपने नीतिगत रुख को ‘समायोजी’ (accommodative) से बदलकर ‘तटस्थ’ (neutral) कर दिया।
RBI के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि यह बदलाव केंद्रीय बैंक को परिस्थितियों के अनुसार दरों में कटौती, रोक या वृद्धि करने की लचीलापन देता है। उन्होंने बैठक के मिनट्स में लिखा, “उम्मीद है कि यह अग्रिम दर कटौती और तरलता के मोर्चे पर दी गई निश्चितता, आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए एक स्पष्ट संकेत देगी, जिससे उधारी की लागत घटेगी और खपत तथा निवेश को बल मिलेगा।”
बैठक में डिप्टी गवर्नर पूनम गुप्ता की भी भागीदारी थी, जो अप्रैल में केंद्रीय बैंक में शामिल हुई थीं। उनके विचारों ने मौद्रिक नीति के संदर्भ में एक नरम रुख का संकेत दिया। उन्होंने जोर दिया कि नीति का उद्देश्य केवल मौजूदा मंदी से निपटना नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था को उसके पहले के विकास स्तर पर ले जाना और उससे आगे ले जाना होना चाहिए। उन्होंने 50 बीपीएस की दर कटौती के पक्ष में मतदान करते हुए “नीतिगत स्पष्टता और तेज़ ट्रांसमिशन” को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने यह भी कहा कि मुद्रास्फीति लक्ष्य से नीचे जा सकती है, जिससे दर कटौती की गुंजाइश बनती है।
आंतरिक सदस्य राजीव रंजन ने भी 50 BPS की कटौती का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति में गिरावट अनुमान से तेज़ रही है, जिससे RBI को अब विकास पर ज्यादा ध्यान देने का अवसर मिला है। उनके अनुसार, जब अर्थव्यवस्था विस्तार के चरण में हो, तब बड़ी दर कटौती का असर उतना ही प्रभावी होता है जितना संकुचन काल में छोटी दर वृद्धि का होता है। उन्होंने कहा कि अग्रिम दर कटौती (front-loading) एक मजबूत नीति संकेत देती है और नीति के प्रभाव को तेज़ी से अर्थव्यवस्था तक पहुंचाती है।
रंजन ने कहा, “घरेलू दरों और तरलता के संदर्भ में कुछ निश्चितता देना आवश्यक है ताकि आर्थिक एजेंट अपने निर्णयों को बार-बार टालें नहीं। शोध से यह पता चलता है कि अनिश्चितता अक्सर ‘निष्क्रियता के क्षेत्र’ को जन्म देती है, जहां लोग निर्णय लेने से कतराते हैं।”
इस प्रकार, आरबीआई की यह दर कटौती केवल मौद्रिक नीतिगत कदम नहीं है, बल्कि एक व्यापक संकेत है कि अब समय है आर्थिक गतिविधियों को तेज़ी से आगे बढ़ाने का।