भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से आज सुबह 6:23 बजे GSLV-F15 रॉकेट को सफलतापूर्वक लॉन्च किया, जो NVS-02 उपग्रह को अंतरिक्ष में लेकर गया। यह इसरो के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है क्योंकि यह उसका 100वां रॉकेट प्रक्षेपण है। इसके अलावा, हाल ही में इसरो अध्यक्ष का पद संभालने वाले वी. नारायणन के नेतृत्व में यह पहला मिशन भी था। यह इस वर्ष इसरो का पहला प्रमुख अभियान है।
इसरो अध्यक्ष ने जताई खुशी
मिशन की सफलता पर इसरो अध्यक्ष वी. नारायणन ने कहा, “उपग्रह को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में सटीक रूप से स्थापित कर दिया गया है। यह मिशन हमारे लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है क्योंकि यह इसरो का 100वां प्रक्षेपण है।”
उन्होंने आगे कहा, “हमारे पास सभी आवश्यक डेटा आ गए हैं और सभी प्रणालियाँ सामान्य रूप से काम कर रही हैं।”
46 वर्षों में 100वां लॉन्च
श्रीहरिकोटा से पहला बड़ा रॉकेट 10 अगस्त 1979 को सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV) के रूप में प्रक्षेपित किया गया था। इसके बाद, करीब 46 वर्षों में इसरो ने 100 रॉकेट प्रक्षेपण पूरे कर लिए हैं। भारत सरकार ने अब तक सभी प्रमुख अंतरिक्ष प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा से ही किए हैं।
इस मिशन की मजबूती पर वैज्ञानिकों का विश्वास
इससे पहले, तिरुवनंतपुरम में इसरो की मुख्य रॉकेट लैब विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC) के निदेशक एस. उन्नीकृष्णन नायर ने कहा था, “यह रॉकेट पहले के सभी मिशनों जितना ही मजबूत है। हम हर लॉन्च को अपनी पूरी क्षमता के अनुसार तैयार करते हैं और हमें इस मिशन की सफलता पर पूरा भरोसा था।”
‘शरारती लड़का’ से सफलता तक का सफर
GSLV को कभी इसरो का ‘शरारती लड़का’ कहा जाता था क्योंकि यह अन्य रॉकेटों की तुलना में अधिक तकनीकी चुनौतियाँ लेकर आया था। अब तक इसके 16 प्रक्षेपणों में से 6 असफल रहे हैं, जिससे इसकी विफलता दर 37% रही है। इसके विपरीत, भारत के नवीनतम बाहुबली रॉकेट, लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM-3) की सफलता दर 100% है।
क्रायोजेनिक तकनीक में भारत की उपलब्धि
GSLV रॉकेट परिवार ने भारत को स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन विकसित करने की दिशा में अग्रसर किया। यह एक ऐसी तकनीक है, जिसे प्राप्त करने में भारत को करीब दो दशक लग गए। दरअसल, जब भारत ने इसे विकसित करने की कोशिश की, तब रूस पर अमेरिका का दबाव था, जिसके चलते रूस ने इस तकनीक को भारत को हस्तांतरित करने से इनकार कर दिया था। इसके बावजूद, इसरो ने इसे स्वदेशी रूप से विकसित करने में सफलता प्राप्त की।
GSLV-F15 मिशन की खासियत
इसरो ने जानकारी दी कि GSLV-F15, भारत के जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) की 17वीं उड़ान थी और यह स्वदेशी क्रायोजेनिक स्टेज वाली 11वीं उड़ान थी। इसके अलावा, यह GSLV की 8वीं ऑपरेशनल उड़ान भी थी।
इस मिशन में इस्तेमाल हुआ GSLV-F15 रॉकेट एक 3.4 मीटर व्यास वाले धातु पेलोड फेयरिंग से लैस था। इसने NVS-02 उपग्रह को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में स्थापित किया। प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) के दूसरे लॉन्च पैड (SLP) से किया गया।
NavIC: भारत की स्वदेशी नेविगेशन प्रणाली
NVS-02 उपग्रह, भारत की NavIC (Navigation with Indian Constellation) प्रणाली का हिस्सा है। यह स्वदेशी क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट प्रणाली है, जो भारत के उपयोगकर्ताओं के साथ-साथ भारतीय क्षेत्र से लगभग 1500 किमी आगे तक स्थित इलाकों में सटीक स्थिति, वेग और समय (PVT) सेवाएँ प्रदान करती है।
NavIC दो प्रकार की सेवाएँ प्रदान करता है:
- मानक पोजिशनिंग सेवा (SPS) – आम नागरिकों के लिए
- प्रतिबंधित सेवा (RS) – रक्षा और रणनीतिक उद्देश्यों के लिए
NavIC के SPS का स्थान सटीकता 20 मीटर से बेहतर और समय सटीकता 40 नैनोसेकंड से बेहतर होती है।
कारगिल युद्ध के दौरान हुआ NavIC का जन्म
NavIC प्रणाली के विकास की नींव 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान रखी गई थी। उस समय, भारत ने उच्च गुणवत्ता वाले ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) डेटा की जरूरत महसूस की, लेकिन अमेरिका ने इस तक भारत की पहुँच रोक दी। इस घटना के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत के लिए स्वदेशी GPS प्रणाली विकसित करने का संकल्प लिया और इसके परिणामस्वरूप NavIC प्रणाली अस्तित्व में आई।
इसरो का गौरवशाली 100वां मिशन
इसरो को उम्मीद है कि 100वें प्रक्षेपण के साथ, अब नेविगेशन उपग्रहों और रॉकेटों से जुड़ी पहले की चुनौतियाँ अतीत की बात बन जाएँगी। यह लॉन्च भारत की अंतरिक्ष यात्रा में एक नया अध्याय जोड़ता है और इसरो आने वाले समय में और भी सफल प्रक्षेपणों की ओर अग्रसर होगा।