भारत का केंद्रीय बैंक, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), नए गवर्नर संजय मल्होत्रा के नेतृत्व में मौद्रिक नीति को लेकर ऐसे संकेत दे रहा है जो बाजार के प्रतिभागियों को भ्रमित कर रहे हैं। एक ओर जहां विकास और ऋण प्रवाह को प्रोत्साहित करने के लिए आक्रामक नीतिगत कदम उठाए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इन कदमों के साथ विरोधाभासी घोषणाएं भी सामने आ रही हैं।
पिछले सप्ताह RBI ने अपेक्षा से अधिक ब्याज दरों में कटौती की, साथ ही बैंकों के लिए नकदी बढ़ाने की योजना की घोषणा की, जिसमें विकास को गति देने की आवश्यकता को कारण बताया गया। लेकिन इसी के साथ, केवल एक बैठक के बाद ही RBI ने अपनी मौद्रिक नीति के रुख को फिर से “तटस्थ” घोषित कर दिया — जो एक तरह से दरों में आगे कटौती के संकेत के विपरीत संदेश देता है।
छह महीने पहले पदभार संभालने वाले गवर्नर मल्होत्रा ने उस समय यह भी कहा था कि “विकास को समर्थन देने के लिए अब बहुत कम गुंजाइश बची है।”
नीति में स्पष्टता की कमी
सिंगापुर स्थित एशिया डिकोडेड PTE लिमिटेड की प्रमुख अर्थशास्त्री प्रियंका किशोर का मानना है कि मौजूदा नीति “कुछ हद तक भ्रमित करने वाली” है। उन्होंने कहा, “इस तरह की अस्पष्टता दरों में कटौती के प्रभावी प्रसारण को बाधित कर सकती है और नीति के लक्ष्यों को कमजोर कर सकती है।”
हाल ही में जारी आर्थिक आंकड़ों में बताया गया कि भारत की अर्थव्यवस्था पिछले वित्त वर्ष में 6.5% की दर से बढ़ी, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 8% वृद्धि के महत्वाकांक्षी लक्ष्य से यह काफी नीचे है।
गौर करने वाली बात यह है कि मल्होत्रा के कार्यकाल में अब तक ब्याज दरों में तीन बार कटौती हो चुकी है, लेकिन इसके बावजूद उपभोक्ताओं और व्यवसायों में कर्ज लेने की प्रवृत्ति कम बनी हुई है। नतीजतन, बैंक भी उधार देने की बजाय अतिरिक्त नकदी को अपने पास या आरबीआई में जमा कर रहे हैं।
तरलता कदमों पर भी सवाल
RBI द्वारा हाल में उठाए गए तरलता-संबंधी कदमों ने भी विश्लेषकों के बीच सवाल खड़े किए हैं। एक ओर बाजार में पहले से ही अतिरिक्त नकदी उपलब्ध है, वहीं दूसरी ओर केंद्रीय बैंक ने घोषणा की कि वह चरणबद्ध तरीके से नकद आरक्षित अनुपात (CRR) में कटौती करेगा। इस कदम से सितंबर तक बैंकिंग प्रणाली में लगभग 2.5 ट्रिलियन रुपये (करीब $29.2 बिलियन) की नकदी डाली जाएगी।
हालांकि, सोमवार को आरबीआई ने यह भी कहा कि वह दैनिक तरलता इंजेक्शन बंद कर देगा, जिससे यह अटकलें तेज हो गईं कि आगे चलकर वह अतिरिक्त नकदी को वापस लेने की कोशिश कर सकता है।
नोमुरा होल्डिंग्स लिमिटेड, सिंगापुर में एशिया क्षेत्र की प्रमुख अर्थशास्त्री सोनल वर्मा ने कहा, “जब सिस्टम में पहले से ही पर्याप्त तरलता है, तो CRR जैसे कठोर उपकरणों की आवश्यकता स्पष्ट नहीं है।”
बॉन्ड बाजार पर असर
RBI की इस अस्थिर नीति का असर बॉन्ड यील्ड पर भी पड़ा है। दो सरकारी कंपनियों को रुपये में ऋण जुटाने की योजना रद्द करनी पड़ी क्योंकि यील्ड में भारी अस्थिरता देखी गई।
शुक्रवार को RBI द्वारा तरलता बढ़ाए जाने के बाद शीर्ष श्रेणी के तीन और पांच वर्षीय कॉरपोरेट बॉन्ड पर यील्ड क्रमशः 8 और 9 आधार अंक बढ़ गए। यह यील्ड में पहले 4-5 आधार अंकों की गिरावट के बाद हुआ।
CRR में कटौती जनवरी से बैंकिंग प्रणाली में पहले से ही डाली गई रिकॉर्ड 9.5 ट्रिलियन रुपये की तरलता के अलावा की गई है। इसके बावजूद, ऋण की मांग कमजोर बनी हुई है और बैंकों ने 10 जून तक केंद्रीय बैंक की ओवरनाइट सुविधा में 2.7 ट्रिलियन रुपये जमा कर दिए थे।
RBI के अनुसार, भारत की ऋण वृद्धि दर पिछले महीने तीन साल में पहली बार 10% से नीचे आ गई।
मुद्रा बाजार में दरों पर असर
सिस्टम में अतिरिक्त फंड के चलते, मुद्रा बाजार के सुरक्षित साधनों पर ब्याज दरें RBI की 5.5% नीति दर से भी नीचे और उसकी निचली सीमा से कम हो गई हैं।
ICICI सिक्योरिटीज प्राइमरी डीलरशिप लिमिटेड के मुख्य अर्थशास्त्री ए. प्रसन्ना ने कहा कि गवर्नर मल्होत्रा की अगुआई में RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने दरों पर मार्गदर्शन के लिए नीति रुख को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करना शुरू किया है — जो अतीत से एक महत्वपूर्ण बदलाव है।
उन्होंने कहा, “हम इस तरह के मार्गदर्शन के अभ्यस्त नहीं हैं, इसलिए यह बाजार सहभागियों के लिए भ्रामक हो सकता है, जो नीति से अपनी अपेक्षाओं को संरेखित करते हैं।”
भारतीय रिज़र्व बैंक की वर्तमान नीतियां न केवल परस्पर विरोधाभासी हैं, बल्कि वे बाजार में स्पष्टता की कमी और अनिश्चितता को भी बढ़ा रही हैं। विकास को बढ़ावा देने और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के बीच संतुलन बनाना हमेशा एक चुनौती रहा है, लेकिन मौजूदा संकेत नीति की दिशा को और अधिक जटिल बना रहे हैं।