कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने बुधवार को मांग की कि केंद्र सरकार को दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ लाए जाने वाले महाभियोग प्रस्ताव से पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय समिति की जांच रिपोर्ट संसद के सदस्यों को उपलब्ध करानी चाहिए।
सरकार ने अगले महीने शुरू होने वाले संसद के मानसून सत्र में न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए तन्खा ने कहा कि यह प्रस्ताव तब तक आगे नहीं बढ़ना चाहिए जब तक सभी सांसदों को आरोपों से संबंधित रिपोर्ट नहीं दी जाती।
तन्खा ने बताया कि उन्होंने पिछले सप्ताह उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को पत्र लिखकर यह आग्रह किया था कि वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जांच समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक करें। उन्होंने स्पष्ट किया कि रिपोर्ट साझा किए बिना वह खुद इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे।
उन्होंने कहा, “जब हम किसी न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करते हैं, तो हमें यह स्पष्ट करना होता है कि आरोप किन तथ्यों पर आधारित हैं। हमें यह भी लिखना होता है कि संविधान के अनुच्छेद 124 या किसी अन्य प्रावधान के तहत, ये आरोप उस न्यायाधीश को पद से हटाने के लिए पर्याप्त हैं।”
कांग्रेस नेता ने यह भी रेखांकित किया कि संसद में न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाने की प्रक्रिया बहुत गंभीर होती है और इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। लोकसभा में प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 100 सांसदों और राज्यसभा में लाने के लिए कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं।
तन्खा ने कहा, “न्यायाधीश जांच अधिनियम में यह स्पष्ट प्रावधान है कि जब इस तरह का कोई प्रस्ताव उपराष्ट्रपति या लोकसभा अध्यक्ष के सामने आता है, तो उन्हें यह तय करना होता है कि क्या प्रस्ताव गंभीर और स्वीकार योग्य है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में एक आंतरिक जांच भी कराई गई है।”
उन्होंने जोर देते हुए कहा, “मैं केवल कांग्रेस की बात नहीं कर रहा, बल्कि सभी सांसदों की जिम्मेदारी की बात कर रहा हूं। कोई भी इस पर हस्ताक्षर करे, लेकिन निर्णय तथ्यों और पारदर्शिता के आधार पर ही होना चाहिए।”
इस बयान के साथ तन्खा ने न्यायपालिका की गरिमा और निष्पक्षता बनाए रखने की आवश्यकता पर भी बल दिया।