Saturday, October 25, 2025

प्रोफेसर की गिरफ्तारी बनाम मंत्री पर ढीली कार्रवाई, कांग्रेस और सपा का भाजपा पर हमला

अशोका विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी को लेकर विपक्षी दलों कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने सत्तारूढ़ भाजपा पर कड़ा हमला बोला है। उन्होंने सवाल उठाया है कि प्रोफेसर को तो सोशल मीडिया पोस्ट के लिए गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह के खिलाफ, जिन्होंने सेना की एक महिला अधिकारी को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की गई।

समाजवादी पार्टी के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर एक तीखा पोस्ट करते हुए दोनों मामलों की तुलना की। उन्होंने लिखा,
“हुक्मरानों की बदजुबानी पर भी आज़ादी, और किसी के सच कहने पर भी गिरफ़्तारी।”
इसका अर्थ है कि सत्ता में बैठे लोगों को गलत बोलने की छूट है, जबकि सच्चाई बोलने वालों को गिरफ्तार किया जा रहा है।

कन्नौज से सांसद अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता पवन खेड़ा दोनों ने सरकार पर दोहरा मापदंड अपनाने का आरोप लगाया है।

प्रोफेसर अली खान की गिरफ्तारी

अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को सोशल मीडिया पर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर की गई एक टिप्पणी के कारण गिरफ्तार किया गया। उनके खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की गईं जिनमें भारत की संप्रभुता और अखंडता को खतरे में डालने, सार्वजनिक शरारत को बढ़ावा देने, महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने और धर्म के आधार पर दुश्मनी फैलाने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं।

यह ऑपरेशन जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारत की सैन्य कार्रवाई से जुड़ा है। प्रोफेसर ने अपनी पोस्ट में कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिना सिंह को ऑपरेशन की प्रस्तुति के लिए चुने जाने पर सवाल नहीं उठाया बल्कि दक्षिणपंथी विचारकों के रवैये पर टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि अगर वे इन महिला अधिकारियों की सराहना कर सकते हैं, तो उन्हें बुलडोज़र राजनीति, भीड़ द्वारा हत्या और अन्याय के शिकार लोगों की सुरक्षा की भी उतनी ही आवाज़ उठानी चाहिए। उन्होंने पोस्ट में लिखा था कि यह सब केवल पाखंड न बने, इसके लिए इन विचारों को जमीन पर भी उतारना ज़रूरी है।

महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया ने इस पोस्ट के आधार पर शिकायत दर्ज की, जिसके बाद प्रोफेसर को गिरफ्तार किया गया। आयोग ने आरोप लगाया कि प्रोफेसर की टिप्पणी से वर्दीधारी महिला अधिकारियों का अपमान हुआ है।

प्रोफेसर महमूदाबाद ने अपनी सफाई में कहा कि उनकी पोस्ट को “ग़लत समझा गया” और महिला आयोग ने “अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर” उनके शब्दों का “गलत अर्थ निकाला”।

मंत्री विजय शाह का मामला

दूसरी ओर, मध्य प्रदेश के जनजातीय मामलों के मंत्री विजय शाह ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में विवादास्पद बयान दिया था। उन्होंने कहा था:
“उन्होंने (आतंकियों ने) हिंदुओं के कपड़े उतारे और उन्हें मार डाला, और मोदी जी ने बदले में उनकी बहन को भेजा। हम उनके कपड़े नहीं उतार सकते थे, इसलिए उनके समुदाय की एक बेटी को भेजा… आप हमारे समुदाय की विधवा बहनें हैं, इसलिए आपके समुदाय की एक बहन आपको नंगा कर देगी।”

इस बयान को लेकर समाज में भारी आक्रोश देखने को मिला। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने टिप्पणी को गंभीर माना और एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की टिप्पणी धार्मिक सौहार्द को प्रभावित कर सकती है और इससे यह संदेश जाता है कि कोई व्यक्ति चाहे देश की सेवा कर रहा हो, फिर भी उसे अपने धर्म के कारण अपमानित होना पड़ सकता है।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंच जाने के बावजूद, पुलिस ने अभी तक न तो मंत्री विजय शाह का बयान दर्ज किया है, और न ही गवाहों की पहचान की है।

विपक्ष का आरोप: भाजपा का दोहरा मापदंड

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पवन खेड़ा ने कहा,
“यह मोदी सरकार के तहत नए भारत की सच्चाई है – जहां इतिहासकारों और शिक्षकों को जेल में डाला जाता है, क्योंकि उन्होंने सच्चाई बोलने की हिम्मत की।”
उन्होंने आगे कहा:
“प्रोफेसर अली खान का अपराध केवल इतना था कि उन्होंने भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति को उजागर किया और तथाकथित राष्ट्रवाद के पाखंड को सामने लाया। दूसरी ओर, भाजपा के मंत्री ने खुलेआम सेना की महिला अधिकारी को अपमानित किया, फिर भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। ना FIR, ना गिरफ्तारी। यही है मोदी सरकार का दोहरा मापदंड।”

खेड़ा ने यह भी कहा:
“जब सरकार अपने नागरिकों से ही डरने लगे, सवालों से घबरा जाए, तो समझिए लोकतंत्र खतरे में है। जब लेखक, शिक्षक और आलोचक दुश्मन बन जाएं, तो असली दुश्मन लोकतंत्र होता है। उनकी केवल एक गलती थी – उन्होंने यह पोस्ट लिखी। और दूसरी गलती थी – उनका नाम।”

इस पूरे मामले ने केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्यों की कार्रवाई की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ओर प्रोफेसर को उनकी सोच और सवाल उठाने के लिए गिरफ्तार किया जाता है, वहीं सत्ता में बैठे लोग सार्वजनिक मंच से आपत्तिजनक बयान देकर भी बेखौफ बने रहते हैं। अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मंत्री विजय शाह के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई होती है या नहीं।

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