13 अप्रैल, रविवार की शाम को पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में एक असामान्य घटना देखने को मिली, जब इज़राइल विरोधी प्रदर्शनकारियों ने केंटुकी फ्राइड चिकन (KFC) के एक रेस्तरां पर धावा बोल दिया। यह हमला रावलपिंडी के व्यस्त सदर क्षेत्र में स्थित KFC आउटलेट पर हुआ, जहाँ उस समय रेस्तरां ग्राहकों से भरा हुआ था।
प्रदर्शन और तोड़फोड़
करीब दस से बारह प्रदर्शनकारियों का एक समूह अचानक रेस्तरां में घुस आया और ज़ोर-ज़ोर से नारे लगाने लगा। प्रदर्शनकारियों ने न सिर्फ रेस्तरां में तोड़फोड़ की, बल्कि ग्राहकों से गाली-गलौज भी की और उन्हें डराते-धमकाते हुए बाहर जाने को मजबूर किया। यह सब उस समय हुआ जब शाम का भोजन करने कई परिवार और लोग वहाँ मौजूद थे।
वायरल वीडियो और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया
इस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें साफ़ देखा जा सकता है कि प्रदर्शनकारी रेस्तरां में उपद्रव कर रहे हैं और लोग डर के मारे बाहर भाग रहे हैं। वीडियो में फिलिस्तीनी झंडा भी लहराते हुए देखा गया। वीडियो को X (पूर्व में ट्विटर) पर 100,000 से अधिक बार देखा गया और इस पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आईं। कुछ यूज़र्स ने इस बात पर तंज कसा कि केएफसी जैसे अमेरिकी ब्रांड ने पाकिस्तान सुपर लीग (PSL) को प्रायोजित किया है, जबकि कुछ लोगों ने पाकिस्तान में ऐसे ब्रांड की मौजूदगी पर सवाल उठाए।
पुलिस कार्रवाई और प्राथमिकी
केएफसी प्रबंधक ने घटना के तुरंत बाद प्राथमिकी दर्ज कराई, जिसमें बताया गया कि यह हमला रात लगभग 8:30 बजे हुआ। रिपोर्ट के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने कर्मचारियों और ग्राहकों को धमकाया और बातचीत करने पर अभद्र भाषा का प्रयोग किया। पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज के आधार पर हमले में शामिल लोगों की पहचान कर ली है और त्वरित कार्रवाई का आश्वासन दिया है।
पृष्ठभूमि और बढ़ता बहिष्कार आंदोलन
रावलपिंडी में हुई यह घटना अकेली नहीं है। इससे पहले 9 अप्रैल को कराची में भी इसी तरह की एक घटना हुई थी, जिसमें भी KFC को निशाना बनाया गया था। इन हमलों का मुख्य कारण इज़राइल और गाजा में चल रहे संघर्ष को लेकर गुस्सा बताया जा रहा है। आरोप है कि केएफसी और अन्य अमेरिकी ब्रांडों के इज़राइल से कथित संबंध हैं, जिसके चलते पाकिस्तान, बांग्लादेश और अन्य देशों में इन ब्रांडों का बहिष्कार किया जा रहा है।
इस घटना ने न केवल आम जनता को चौंका दिया, बल्कि देश में विदेशी ब्रांडों की सुरक्षा और बहिष्कार आंदोलनों की गंभीरता को भी उजागर किया है। यह देखना होगा कि आने वाले समय में प्रशासन इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए क्या कदम उठाता है और क्या विदेशी ब्रांड अपने सुरक्षा उपायों को सख्त करेंगे।

