उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को लोकतांत्रिक संस्थाओं में हो रहे व्यवधानों पर गहरी चिंता व्यक्त की और चेतावनी दी कि संसद में उत्पन्न होने वाले व्यवधान संवैधानिक जिम्मेदारियों की उपेक्षा को दर्शाते हैं। उन्होंने न्यायिक अतिक्रमण की भी आलोचना करते हुए कहा कि शासन को केवल निर्वाचित प्रतिनिधियों के विशेषाधिकार क्षेत्र में ही रहना चाहिए।
भोपाल स्थित राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी में एक सभा को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा, “संविधान सभा द्वारा निर्धारित उच्च मानकों से समझौता किया जा रहा है। हम लोकतंत्र के मंदिरों में व्यवधान की अनुमति कैसे दे सकते हैं? इसका अर्थ है कि जनप्रतिनिधि अपने संवैधानिक कर्तव्यों के प्रति सचेत नहीं हैं।”
धनखड़ ने आगे कहा, “पक्षपातपूर्ण चिंताओं को राष्ट्रीय हित से ऊपर कैसे रखा जा सकता है? टकराववादी रुख अपनाने से आम सहमति तक कैसे पहुँचा जा सकता है, विशेष रूप से जब यह टकराव अपरिवर्तनीय प्रकृति का हो? मैं इस मंच के माध्यम से सभी से आग्रह करता हूँ कि वे इस तरह के अस्थिरता पैदा करने वाले व्यवहार से बचें और संसदीय संस्थाओं की पवित्रता को बनाए रखने के प्रति सचेत रहें।” उन्होंने यह भी कहा, “ऐसी संस्थाओं का अपमान करना लोकतंत्र को कलंकित करने जैसा है, जो राष्ट्रीय विकास के प्रति प्रतिबद्धता की कमी को दर्शाता है। अब समय आ गया है कि हम इस समस्या से एकजुट होकर मुक्ति पाएं।”
संस्थागत संघर्षों को समाप्त करने की आवश्यकता पर बल देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “जब संस्थाएँ एक-दूसरे के पूरक बनने के बजाय प्रतिस्पर्धा करने लगती हैं, तो लोकतंत्र को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है। कार्यकारी शासन पर न्यायिक हस्तक्षेप लगातार बढ़ रहा है और यह चिंता का विषय बनता जा रहा है। लोकतंत्र केवल संस्थागत अलगाव पर आधारित नहीं होता, बल्कि समन्वित स्वायत्तता के माध्यम से फलता-फूलता है।”
उन्होंने आगे कहा, “हम एक संप्रभु राष्ट्र हैं, और हमारी संप्रभुता लोगों में निहित है। जनता द्वारा दिया गया संविधान इस संप्रभुता को अपरिवर्तनीय बनाता है। देश में या बाहर, विधायिका या न्यायपालिका से किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप संवैधानिकता के विपरीत है और निश्चित रूप से लोकतंत्र के मूल आधार के अनुरूप नहीं है।”
इससे पहले, राज्यपाल मंगूभाई पटेल और मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भोपाल के पुराने हवाई अड्डे पर धनखड़ का स्वागत किया।