आरजी कर मेडिकल कॉलेज में हुई वीभत्स घटना के दोषी संजय रॉय को मृत्युदंड देने से इनकार करते हुए कोलकाता की अदालत ने दोषी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। सत्र न्यायाधीश अनिरबन दास ने अपने निर्णय में कहा कि अदालत को जनता की भावनात्मक प्रतिक्रियाओं या बाहरी दबाव से प्रभावित नहीं होना चाहिए। न्यायालय का कर्तव्य है कि वह अपने फैसले साक्ष्य और कानूनी आधार पर दे।
न्यायालय की टिप्पणियां:
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी कानून के शासन को बनाए रखना है। अदालत ने कहा, “साक्ष्य के आधार पर न्याय सुनिश्चित करना हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। हमें जनता की भावनाओं या उनके आक्रोश से प्रभावित हुए बिना निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए।”
इस मामले में न्यायालय ने दोषी के पहले किसी आपराधिक रिकॉर्ड की अनुपस्थिति और उसकी परिस्थितियों पर विचार करते हुए यह तय किया कि मृत्युदंड देना अनुचित होगा।
“आधुनिक न्याय के क्षेत्र में, हमें “आँख के बदले आँख” या “दांत के बदले दाँत” या “कील के बदले कील” या “जीवन के बदले जीवन” की आदिम प्रवृत्ति से ऊपर उठना चाहिए। हमारा कर्तव्य क्रूरता का मुकाबला क्रूरता से करना नहीं है, बल्कि ज्ञान, करुणा और न्याय की गहरी समझ के माध्यम से मानवता को ऊपर उठाना है। सभ्य समाज का मापदंड बदला लेने की उसकी क्षमता में नहीं, बल्कि सुधार, पुनर्वास और अंततः उपचार करने की उसकी क्षमता में निहित है,” आगे कहा।
“आधुनिक न्याय प्रणाली का उद्देश्य क्रूरता का प्रतिशोध क्रूरता से लेना नहीं, बल्कि सुधार और पुनर्वास के माध्यम से मानवता को ऊंचा उठाना है,” न्यायालय ने आगे कहा। अदालत ने यह भी जोड़ा कि सभ्य समाज का मूल्यांकन उसकी बदला लेने की क्षमता से नहीं, बल्कि सुधार और पुनर्वास की क्षमता से किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश का हवाला:
न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक “बचन सिंह” मामले का हवाला देते हुए कहा कि मृत्युदंड केवल “दुर्लभतम में से दुर्लभ” मामलों में दिया जाना चाहिए। इस मामले को इन कड़े मानदंडों के अंतर्गत नहीं पाया गया।
अदालत ने पीड़िता के माता-पिता के दर्द और पीड़ा को स्वीकार करते हुए कहा कि कोई भी सजा उनकी हानि की भरपाई नहीं कर सकती, लेकिन सजा को न्याय के सिद्धांतों और कानून के अनुसार आनुपातिक होना चाहिए।
जनता के दबाव से बचने का आह्वान:
न्यायालय ने कहा कि न्यायपालिका को जनता की राय या भावनात्मक अपील के दबाव के आगे झुकने के बजाय कानूनी प्रणाली की अखंडता बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
पृष्ठभूमि:
अगस्त 2024 में आरजी कर मेडिकल कॉलेज में हुई इस घटना ने पूरे देश में आक्रोश और हंगामा मचा दिया। पीड़िता के साथ बलात्कार और हत्या के इस मामले की जांच पहले पश्चिम बंगाल पुलिस ने की, लेकिन उच्च न्यायालय ने इसे सीबीआई को सौंप दिया।
सीबीआई ने मुख्य आरोपी संजय रॉय के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया, जिसके बाद यह मामला सत्र न्यायालय में चला। इस मामले ने चिकित्सा पेशेवरों की कार्यस्थल सुरक्षा पर भी बहस छेड़ी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर दिशा-निर्देश जारी किए।
हालांकि, राज्य सरकार ने संजय रॉय के लिए मृत्युदंड की मांग करते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय में अपील दायर की है।
इस मामले में कोलकाता की अदालत ने अपने फैसले में कानून, करुणा और न्याय के सिद्धांतों का पालन किया। अदालत ने यह सुनिश्चित किया कि न्याय प्रणाली बाहरी दबावों से प्रभावित हुए बिना निष्पक्ष निर्णय दे।