Thursday, January 9, 2025

तमिलनाडु के राज्यपाल ने विधानसभा से वॉकआउट किया, कहा राष्ट्रगान का अपमान हुआ

तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि ने आज विधानसभा में अपने पारंपरिक अभिभाषण देने से इनकार करते हुए वॉकआउट कर दिया। उन्होंने राष्ट्रगान न गाए जाने को लेकर आपत्ति जताई और इसे राष्ट्रगान का अपमान बताया। परंपरा के अनुसार, विधानसभा की बैठक की शुरुआत में “तमिल थाई वल्थु” गाया जाता है और अंत में राष्ट्रगान। लेकिन राज्यपाल ने इस व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि राष्ट्रगान दोनों समय गाया जाना चाहिए।

वॉकआउट के बाद राजभवन ने बयान जारी करते हुए कहा, “आज तमिलनाडु विधानसभा में एक बार फिर भारत के संविधान और राष्ट्रगान का अपमान किया गया। राष्ट्रगान का सम्मान करना हमारे संविधान में निहित मौलिक कर्तव्यों में से एक है। सभी राज्य विधानसभाओं में राज्यपाल के अभिभाषण की शुरुआत और अंत में राष्ट्रगान गाया जाता है।” बयान में आगे कहा गया, “आज सदन में राज्यपाल के आगमन पर केवल ‘तमिल थाई वाझथु’ गाया गया। राज्यपाल ने इस पर आपत्ति जताते हुए सदन के नेता (मुख्यमंत्री) और अध्यक्ष से राष्ट्रगान गाने की अपील की। लेकिन उनकी यह अपील ठुकरा दी गई। इससे आहत होकर राज्यपाल ने सदन से बाहर जाने का फैसला किया।”

राज्यपाल के बाहर जाने के बाद विधानसभा अध्यक्ष एम. अप्पावु ने राज्यपाल का पारंपरिक अभिभाषण पढ़ा। यह पहली बार नहीं है जब राज्यपाल और डीएमके सरकार के बीच इस तरह का विवाद हुआ है। पिछले साल फरवरी में भी राज्यपाल ने अभिभाषण में कुछ हिस्सों को पढ़ने से इनकार कर दिया था। उनका कहना था कि मसौदे में “भ्रामक दावे” शामिल थे।

राजभवन ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्यपाल के अभिभाषण के आरंभ और अंत में राष्ट्रगान को सम्मानपूर्वक गाया जाना चाहिए। लेकिन इस पर ध्यान न दिए जाने के कारण राज्यपाल ने वॉकआउट किया।

2022 में भी आर.एन. रवि ने भाषण के उन हिस्सों को पढ़ने से इनकार कर दिया था, जिनमें बी.आर. अंबेडकर, पेरियार और सी.एन. अन्नादुरई का उल्लेख था। इसके अलावा “द्रविड़ मॉडल” और तमिलनाडु में कानून-व्यवस्था से जुड़े कुछ अंश भी शामिल थे।

राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच संबंध 2021 से ही तनावपूर्ण बने हुए हैं, जब उन्होंने तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में कार्यभार संभाला। डीएमके सरकार ने उन पर भाजपा प्रवक्ता की तरह काम करने और विधेयकों को रोकने का आरोप लगाया है। दूसरी ओर, राज्यपाल का कहना है कि संविधान उन्हें कानून पर अपनी सहमति रोकने का अधिकार देता है।

यह विवाद न केवल विधानसभा तक सीमित है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति भवन तक भी पहुंच चुका है। सुप्रीम कोर्ट और मद्रास उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि राज्यपाल को मंत्रिमंडल की सलाह पर कार्य करना चाहिए।

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