26 नवंबर, 1949 को भारत की संविधान सभा ने संविधान को अपनाया, और इसे 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया। 26 जनवरी को भारत गणतंत्र दिवस के रूप में मनाता है, लेकिन 2015 से हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर देशवासियों को शुभकामनाएँ दीं और संविधान को भारत का “मार्गदर्शक प्रकाश” कहते हुए एक वीडियो साझा किया। आइए जानते हैं इस दिन के इतिहास और इससे जुड़े प्रमुख पहलुओं के बारे में।
26 नवंबर को संविधान दिवस क्यों मनाया जाता है?
मई 2015 में, केंद्र सरकार ने घोषणा की कि हर साल 26 नवंबर को “संविधान दिवस” के रूप में मनाया जाएगा। इसका उद्देश्य नागरिकों के बीच संविधान और संवैधानिक मूल्यों के प्रति जागरूकता बढ़ाना था। उसी वर्ष, संविधान सभा की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. बी.आर. अंबेडकर की 125वीं जयंती भी मनाई गई।
संविधान मसौदा समिति में डॉ. अंबेडकर के अलावा के.एम. मुंशी, मुहम्मद सादुलाह और अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर जैसे प्रमुख सदस्य भी शामिल थे।
2015 में जारी एक सरकारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, “संविधान दिवस” का आयोजन डॉ. अंबेडकर को श्रद्धांजलि देने के लिए किया गया था, जिन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में केंद्रीय भूमिका निभाई थी।
डॉ. अंबेडकर पर विशेष ध्यान
केंद्र सरकार के इस फैसले को दलित समुदाय तक पहुँचने और अंबेडकर की विरासत को सम्मानित करने के प्रयास के रूप में भी देखा गया। 2015 में कैबिनेट की बैठक के बाद, तत्कालीन सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने कहा था,
“राहुल गांधी और उनकी पार्टी ने कभी अंबेडकर को उचित सम्मान नहीं दिया। जब तक कांग्रेस सत्ता में रही, अंबेडकर को भारत रत्न नहीं मिला और न ही संसद परिसर में उनका तैलचित्र लगाया गया।”
इसके साथ ही, सरकार ने अंबेडकर के विचारों को बढ़ावा देने के लिए कई गतिविधियाँ शुरू कीं। इनमें 197 करोड़ रुपये की लागत से नई दिल्ली के 15, जनपथ पर अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र की स्थापना भी शामिल थी।
19 नवंबर, 2015 को सरकार ने औपचारिक रूप से 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में अधिसूचित किया। इससे पहले, यह दिन राष्ट्रीय कानून दिवस के रूप में मनाया जाता था क्योंकि डॉ. अंबेडकर स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री भी थे।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
संविधान दिवस के अवसर पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी एक संदेश साझा किया। उन्होंने चुनाव अभियानों के दौरान अल्पसंख्यकों और वंचित वर्गों से जुड़ने के लिए संविधान की एक छोटी प्रति अपने साथ रखी। राहुल गांधी ने कहा,
“संविधान समाज के सबसे गरीब और कमजोर वर्गों की रक्षा करने का एक शक्तिशाली साधन है। यह जितना मजबूत होगा, हमारा देश उतना ही मजबूत होगा। इस दिन, मैं संविधान के विचार की रक्षा करने वाले सेनानियों, शहीदों और संविधान सभा के प्रत्येक सदस्य को श्रद्धांजलि देता हूँ और इसकी रक्षा करने का अपना संकल्प दोहराता हूँ।”
भारतीय संविधान: निर्माण की प्रक्रिया
भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने वाली संस्था, संविधान सभा का पहला सत्र 9 दिसंबर, 1946 को आयोजित हुआ था, जिसमें 207 सदस्य शामिल हुए थे। प्रारंभ में सभा में 389 सदस्य थे, लेकिन स्वतंत्रता और विभाजन के बाद यह संख्या घटकर 299 रह गई।
संविधान को तैयार करने में तीन साल से अधिक का समय लगा। अकेले मसौदे की सामग्री पर चर्चा करने में 114 दिन लगे। अन्य देशों के संविधानों से प्रेरणा लेकर भारत की आवश्यकताओं के अनुसार प्रावधानों में संशोधन किए गए।
प्रमुख स्रोत
- 1935 का भारत सरकार अधिनियम, जिसने केंद्र और प्रांतों में द्विसदनीय व्यवस्था तथा सीधे चुनाव की शुरुआत की।
- 13 दिसंबर, 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसे 22 जनवरी, 1947 को संविधान की प्रस्तावना के रूप में स्वीकार किया गया।
संविधान दिवस का महत्व
संविधान दिवस भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने का प्रतीक है। यह दिन डॉ. अंबेडकर और संविधान सभा के उन सभी सदस्यों को श्रद्धांजलि देने का अवसर है, जिन्होंने एक मजबूत और समावेशी भारत का सपना देखा।