इरेक्टाइल डिसफंक्शन की दवाओं के जेनेरिक वर्जन को अमेरिकी बाजार में मंजूरी दी गई, हालांकि उन्होंने गलत डेटा का उपयोग किया था। वियाग्रा और सियालिस जैसी दवाओं को भी बेचा जा रहा है, जबकि उनकी सुरक्षा और प्रभावकारिता पर सवाल उठाए गए हैं। अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने ब्रांड-नाम और जेनेरिक कंपनियों को भारत में एक शोध कंपनी के बारे में चेतावनी दी, जिसने नकली डेटा का इस्तेमाल करके अपनी दवाओं की मंजूरी हासिल की थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सिनैप्स लैब्स प्राइवेट लिमिटेड को सैकड़ों दवाओं में उपयोग किया गया हो सकता है, जो अब भी बाजार में बेची जा रही हैं। पिछले साल यूरोपीय नियामकों ने एफडीए को सिनैप्स के बारे में बताया, जिसके बाद एफडीए ने उन अमेरिकी कंपनियों को निर्देश दिया जो सिनैप्स पर निर्भर थीं कि वे अपनी स्वीकृति प्रक्रिया को फिर से पूरा करें।
एफडीए ने कहा कि सिनैप्स का उपयोग करने वाली कंपनियों को अपनी दवाओं के लिए नया डेटा जमा करने के लिए एक साल का समय मिलेगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दवाएं सुरक्षित हैं। जनवरी 2023 तक एफडीए इंस्पेक्टर रहे मसूद मोटामेड ने कहा, “मुझे लगता है कि इससे बाजार में उपलब्ध दवाओं के बारे में कई सवाल खड़े होते हैं।”
इंस्पेक्टर के अनुसार, सबसे बड़ी चिंता यह है कि सिनैप्स से जुड़ी दवाओं में बहुत ज्यादा या बहुत कम सक्रिय तत्व हो सकते हैं, जिससे या तो खतरनाक विषाक्तता हो सकती है या वे बिल्कुल काम नहीं कर सकतीं।
हालांकि, एफडीए उन दवाओं के नाम नहीं बता रहा है जिन पर असर पड़ सकता है, क्योंकि एजेंसी का कहना है कि किसी दवा निर्माता ने किस शोध कंपनी को काम पर रखा है, यह “गोपनीय जानकारी” है।
सांता क्लारा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर माइकल सैंटोरो ने कहा, “यह मेरे लिए चौंकाने वाला है। मुझे लगता है कि इस डेटा को जनता के सामने रखा जाना चाहिए।”
एफडीए की प्रवक्ता चेरी डुवैल-जोन्स ने कहा, “एफडीए सतर्क है और अगर हमें सुरक्षा संबंधी मुद्दे पता चलते हैं तो कार्रवाई की जाएगी।” एजेंसी का कहना है कि उनके साइड इफेक्ट डेटा में अभी तक कोई संकेत नहीं मिला है कि दवाओं में गंभीर सुरक्षा संबंधी चिंताएं हैं।
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