2025 का कनाडा संघीय चुनाव असाधारण था — राजनीतिक उथल-पुथल, बढ़ती वैश्विक अस्थिरता, और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा कनाडा की संप्रभुता और अर्थव्यवस्था पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष हमलों की छाया में शुरू हुआ यह चुनाव, एक नए नेता के उदय और एक पराजित विपक्ष के साथ समाप्त हुआ। यह चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि कनाडा के भविष्य को लेकर जनता की सोच का स्पष्ट प्रतिबिंब था। इस पूरे घटनाक्रम के केंद्र में थे मार्क कार्नी — एक मृदुभाषी, स्थिर और विश्वसनीय नेता, जिन्होंने लिबरल पार्टी को लगातार चौथी बार सत्ता दिलाई।
लिबरल पार्टी की जीत: स्थिरता बनाम उग्रता
343 सीटों वाले हाउस ऑफ कॉमन्स में लिबरल पार्टी ने 169 सीटें हासिल कीं — बहुमत से केवल तीन कम। यह कार्नी की राजनीतिक कुशलता और शांत स्वभाव की जीत थी। एक पूर्व केंद्रीय बैंकर और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मंचों के जानकार, कार्नी ने वैश्विक उथल-पुथल और ट्रम्प की संरक्षणवादी नीतियों के बीच एक स्थिर कनाडा का वादा किया। उनका नारा “कनाडा मजबूत” लोगों को भरोसा देने वाला था।
कार्नी ने कहा,“राष्ट्रपति ट्रम्प हमें तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं ताकि अमेरिका हम पर अपना अधिकार जमा सके। ऐसा कभी नहीं होगा।”
उनके प्रमुख सहयोगी, ब्रूस फैनजॉय ने कनाडा की राजनीति में भूचाल ला दिया जब उन्होंने कंज़र्वेटिव नेता पियरे पोलीवरे को उनकी मजबूत मानी जाने वाली कार्लटन सीट से हरा दिया।
कंज़र्वेटिव पार्टी की हार: विभाजनकारी भाषण का अंत
पियरे पोलीवरे की कंज़र्वेटिव पार्टी को शुरुआत में जीत का प्रबल दावेदार माना जा रहा था। उन्होंने 144 सीटें और 41% लोकप्रिय वोट हासिल किए — जो 2011 के बाद से कंज़र्वेटिवों का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था — लेकिन पार्टी सरकार बनाने में असफल रही।
पोलीवरे का अभियान ट्रम्प-शैली की आक्रामक बयानबाज़ी और लोकलुभावनवाद पर आधारित था, जिसे अधिकांश कनाडाई मतदाताओं ने अस्वीकार कर दिया। उन्होंने न केवल चुनाव हारा, बल्कि अपनी खुद की सीट भी गंवा दी।
पोलीवरे ने अपनी हार स्वीकारते हुए कहा, “हमें बदलाव की ज़रूरत है, लेकिन बदलाव लाना कठिन है। इसमें समय लगता है।”
उनकी हार ने पार्टी के भीतर नेतृत्व परिवर्तन की संभावनाओं को जन्म दिया है।
NDP और ब्लॉक क्यूबेकॉइस: पतन की कहानी
एनडीपी नेता जगमीत सिंह के लिए यह चुनाव विनाशकारी रहा। उन्होंने अपनी सीट बर्नबी सेंट्रल गंवा दी और बाद में पार्टी प्रमुख पद से इस्तीफा दे दिया। एनडीपी केवल 7 सीटों पर सिमट गई — एक दशक से अधिक में सबसे खराब प्रदर्शन।
दूसरी ओर, ब्लॉक क्यूबेकॉइस ने यवेस-फ्रांकोइस ब्लैंचेट के नेतृत्व में 22 सीटें जीतीं — 2019 में जीती गई 35 सीटों से स्पष्ट गिरावट। उनका क्यूबेक स्वायत्तता और सांस्कृतिक पहचान पर आधारित अभियान मॉन्ट्रियल से बाहर प्रभावी नहीं हो पाया।
ट्रम्प फैक्टर: अमेरिका की छाया में कनाडा
भले ही डोनाल्ड ट्रम्प कनाडा के चुनाव में उम्मीदवार नहीं थे, लेकिन उनका प्रभाव हर तरफ महसूस किया गया। उन्होंने कनाडा पर भारी टैरिफ लगाए, धमकी दी कि “कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बन जाना चाहिए,” और व्यापार समझौतों को झटका दिया। यह रवैया कनाडाई लोगों को नागवार गुज़रा।
मार्क कार्नी ने इस मुद्दे को चुनावी अभियान का मुख्य केंद्र बना दिया और कनाडा की संप्रभुता की रक्षा करने की कसम खाई। उनकी अब वायरल हो चुकी पंक्ति:
“कनाडा कभी भी किसी भी रूप में अमेरिका का हिस्सा नहीं होगा,”
ने undecided मतदाताओं का झुकाव उनके पक्ष में कर दिया।
जनता की भागीदारी: रिकॉर्ड मतदान
इस चुनाव में लगभग 69% पंजीकृत मतदाताओं ने वोट डाला, जो 2015 के बाद से सबसे अधिक था। यह इस बात का प्रमाण था कि जनता को लगा कि इस बार चुनाव हारना एक देश के रूप में बहुत महँगा साबित हो सकता है।
नादिया अहमद, जो मिसिसॉगा की एक शिक्षिका हैं, और पहली बार लिबरल को वोट दिया, कहती हैं:
“हमने विदेशों में बहुत अराजकता देखी है। मुझे ऐसा नेता चाहिए जो कनाडा को स्थिर रख सके।”
आगे क्या?
किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के कारण कनाडा अब अल्पमत सरकार के दौर में प्रवेश कर रहा है। मार्क कार्नी के नेतृत्व में लिबरल पार्टी संभवतः छोटी पार्टियों के साथ सहयोग कर सरकार बनाएगी। यह गठबंधन निर्माण की एक जटिल लेकिन अनिवार्य प्रक्रिया होगी।
2025 का कनाडाई संघीय चुनाव दिखाता है कि जब पूरी दुनिया उथल-पुथल में हो, तो लोग तेज़ आवाज़ों और वादों से ज़्यादा स्थिरता, विवेक और आत्म-सम्मान को चुनते हैं। ट्रम्प की धमकियों के बावजूद, कनाडाई मतदाताओं ने संप्रभुता और शांति को चुना। यह लोकतंत्र की परिपक्वता और समझदारी की एक उल्लेखनीय मिसाल है।