सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 9 जून 2025 को तमिलनाडु राज्य की उस मौखिक याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा समग्र शिक्षा योजना के तहत 2000 करोड़ रुपये से अधिक की निधि रोकने पर आपत्ति जताई गई थी। तमिलनाडु ने इस निधि को तत्काल जारी करने की मांग करते हुए अपने मूल मुकदमे की शीघ्र सुनवाई की मांग की थी।
न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की अध्यक्षता वाली अवकाश पीठ ने मामले में कोई विशेष तात्कालिकता नहीं पाई और तत्काल सुनवाई की याचिका को ठुकरा दिया।
सीनियर अधिवक्ता पी. विल्सन ने पीठ के समक्ष यह मुद्दा उठाया और कहा कि इस निधि की अनुपलब्धता के कारण राज्य के लगभग 48 लाख छात्रों का भविष्य खतरे में पड़ सकता है, जबकि नया शैक्षणिक सत्र 3 जून से आरंभ हो चुका है।
जब न्यायमूर्ति मिश्रा ने पूछा कि राज्य को कब से इस धन से वंचित किया गया है, तो अधिवक्ता विल्सन ने बताया कि पिछले वर्ष से यह निधि नहीं दी गई है और राज्य सरकार ने 20 मई 2025 को इस संदर्भ में मुकदमा दायर किया है।
इस पर पीठ ने कहा, “कोई तात्कालिकता नहीं है।”
तमिलनाडु द्वारा अधिवक्ता रिचर्डसन विल्सन और अपूर्व मल्होत्रा के माध्यम से तैयार किए गए मुकदमे में आरोप लगाया गया है कि समग्र शिक्षा योजना के तहत निधि का वितरण न करना एक राजनीतिक दबाव की रणनीति है, ताकि राज्य को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 और उसके तहत लागू पीएम श्री स्कूल योजना को अपनाने के लिए मजबूर किया जा सके।
राज्य ने दावा किया कि समग्र शिक्षा योजना का एनईपी या पीएम श्री स्कूल योजना से कोई सीधा संबंध नहीं है, और केंद्र सरकार द्वारा दोनों को जोड़ना असंवैधानिक, अवैध, मनमाना और अनुचित है।
मुकदमे में कहा गया है कि केंद्र द्वारा 2025-26 के लिए तमिलनाडु को अनुमोदित ₹2151.59 करोड़ की केंद्रीय हिस्सेदारी अब तक जारी नहीं की गई है, जिससे समग्र शिक्षा योजना और शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009 के क्रियान्वयन पर गहरा असर पड़ा है। इससे राज्य के 43,94,906 छात्र, 2,21,817 शिक्षक और 32,701 शिक्षा कर्मचारी प्रभावित हुए हैं।
परियोजना अनुमोदन बोर्ड ने कुल ₹3585.99 करोड़ की योजना को मंजूरी दी थी, जिसमें से केंद्र को 60% भाग देना था।
राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वह स्पष्ट रूप से घोषणा करे कि एनईपी-2020 और पीएम श्री स्कूल योजना तमिलनाडु के लिए बाध्यकारी नहीं हैं। इसके अलावा केंद्र को आदेश दिया जाए कि वह ₹2291 करोड़ की बकाया राशि को ब्याज सहित राज्य को तत्काल जारी करे।
मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इस संबंध में प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर समग्र शिक्षा योजना के फंड को एनईपी और पीएम श्री स्कूलों के साथ जोड़ने पर कड़ी आपत्ति जताई थी। उन्होंने इसे राज्य की स्वायत्तता और सहकारी संघवाद के सिद्धांत के खिलाफ बताया था। उन्होंने कहा था कि यह राज्य को उसकी पारंपरिक नीतियों से हटाकर केंद्र की नीतियों को अपनाने के लिए मजबूर करने की एक जबरदस्ती है।
मुकदमे में यह भी कहा गया है कि तमिलनाडु ने एनईपी के तीन-भाषा फॉर्मूले का लगातार विरोध किया है। राज्य विधानसभा ने जनवरी 1968 में एक प्रस्ताव पारित कर हिंदी को अनिवार्य बनाने वाले केंद्रीय अधिनियम को खारिज कर दिया था, और तमिल तथा अंग्रेज़ी को ही स्कूलों में पढ़ाने का निर्णय लिया था।
राज्य सरकार का कहना है कि उसने “तमिल लर्निंग एक्ट, 2006” के तहत तमिल भाषा को कक्षा 1 से 10 तक अनिवार्य विषय बनाया है। तीसरी भाषा का चयन छात्रों पर छोड़ दिया गया है जिनकी मातृभाषा तमिल या अंग्रेज़ी नहीं है।
तमिलनाडु का तर्क है कि केंद्र सरकार राज्य को वित्तीय सहायता देने की आड़ में अपनी नीतियां थोपने की कोशिश कर रही है, जो कि सहकारी संघवाद और संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन है।