Sunday, October 26, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या निर्वासन रोकने वाली याचिकाओं पर जताई नाराज़गी

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या मुसलमानों के कथित निर्वासन को रोकने के उद्देश्य से बार-बार दायर की जा रही जनहित याचिकाओं पर नाराज़गी जताई। अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस से स्पष्ट रूप से कहा कि वे बिना किसी नए तथ्यों के एक ही मुद्दे पर लगातार याचिकाएं दाखिल नहीं कर सकते, सिर्फ इसलिए कि सुप्रीम कोर्ट के 8 मई के आदेश में बदलाव हो जाए, जिसमें अदालत ने रोहिंग्याओं के निर्वासन पर रोक लगाने से इनकार किया था।

8 मई को जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह की पीठ ने, गोंजाल्विस और अधिवक्ता प्रशांत भूषण की ओर से पेश की गई जोरदार दलीलों के बावजूद, रोहिंग्या मुसलमानों के कथित निर्वासन पर कोई अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था। उस आदेश में कोर्ट ने यह स्पष्ट किया था कि चूंकि रोहिंग्या भारतीय नागरिक नहीं हैं, इसलिए उन्हें भारत में कहीं भी रहने का अधिकार नहीं है।

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी यह तर्क दिया था कि भारत ने शरणार्थियों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं और इसलिए रोहिंग्याओं को शरणार्थी का दर्जा देने वाले संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) की वैधता भी प्रश्नों के घेरे में है। उन्होंने कहा था कि ये लोग म्यांमार से आए हैं और वहां की सेना से जान का खतरा होने के कारण अन्य देशों में शरण ले रहे हैं।

गोंजाल्विस ने शुक्रवार को अदालत को बताया कि ठीक 8 मई को ही केंद्र सरकार ने 28 रोहिंग्या मुसलमानों को निर्वासित किया था। उन्होंने आरोप लगाया कि इन लोगों को हथकड़ियाँ लगाकर अंडमान द्वीप ले जाया गया, उन्हें जीवन रक्षक जैकेट पहनाए गए और म्यांमार की सीमा की ओर धकेल दिया गया। गोंजाल्विस ने दावा किया कि म्यांमार पहुंचने के बाद इन रोहिंग्याओं ने मछुआरों की मदद से दिल्ली में अपने परिजनों से संपर्क किया और बताया कि उन्हें जान का गंभीर खतरा है।

हालांकि, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह की पीठ ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि ये आरोप केवल कोरी बातें हैं और उनके पास इन तथ्यों की पुष्टि करने वाली कोई ठोस सामग्री नहीं है। पीठ ने कहा, “जब देश इस समय गंभीर चुनौतियों से गुजर रहा है, तब आप इस तरह की काल्पनिक जनहित याचिकाएं दाखिल नहीं कर सकते। याचिका में लगाए गए आरोप अस्पष्ट और व्यापक हैं, जिनके समर्थन में कोई प्रमाणिक सामग्री नहीं दी गई है। जब तक याचिकाकर्ता प्रथम दृष्टया विश्वसनीय और पुष्ट जानकारी प्रस्तुत नहीं करता, तब तक 8 मई के आदेश के विरुद्ध कोई अंतरिम आदेश पारित करना कठिन है।”

गोंजाल्विस ने रोहिंग्याओं की सुरक्षा के लिए एक और उदाहरण देते हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णय का हवाला दिया जिसमें चकमा शरणार्थियों को सुरक्षा प्रदान की गई थी। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के एक आदेश के अनुसार रोहिंग्या प्रवासी नहीं बल्कि शरणार्थी हैं, और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी संयुक्त राष्ट्र की है।

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हम आज संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट पर टिप्पणी नहीं करना चाहते। हम इस मुद्दे पर अपना पक्ष 31 जुलाई को रखेंगे, जब इस याचिका के साथ-साथ पहले से लंबित याचिकाओं की भी सुनवाई की जाएगी।”

गोंजाल्विस ने चिंता व्यक्त की कि इस देरी का लाभ सरकार को मिल सकता है, और वह इस बीच देश भर में फैले 8,000 से अधिक रोहिंग्याओं को निर्वासित कर सकती है, जिनमें से करीब 800 अकेले दिल्ली में रहते हैं।

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