सरकार कुछ चीनी कंपनियों पर लगे निवेश प्रतिबंधों को कम करने पर विचार कर रही है ताकि भारत में घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा मिल सके। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सौर मॉड्यूल और महत्वपूर्ण खनिजों जैसे हाई-टेक क्षेत्रों में चीनी कंपनियों को छूट देने की चर्चा हो रही है। एक अधिकारी ने कहा है कि वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय और अन्य सुरक्षा-संबंधित विभाग इस मामले की जांच कर रहे हैं।
यह कदम आर्थिक सर्वेक्षण 2024 के बाद उठाया जा रहा है, जिसे मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंथा नागेश्वरन और उनकी टीम ने तैयार किया है। इस सर्वेक्षण में भारत में चीनी निवेश को प्रोत्साहित करने की बात कही गई है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने के लिए दो रास्ते हैं – या तो आयात बढ़ाना या चीन से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) लाना। नागेश्वरन का मानना है कि चीन से एफडीआई आकर्षित करना भारत के लिए अधिक फायदेमंद होगा, क्योंकि इससे भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा कम हो सकता है और घरेलू तकनीकी विशेषज्ञता को बढ़ावा मिल सकता है।
हालांकि, 2020 में भारत और चीन के बीच सीमा संघर्ष के बाद दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण हो गए थे, जिसके चलते भारत ने चीनी निवेश पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे। मोदी सरकार ने कड़े निवेश नियम लागू किए, कई चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया और वीज़ा स्वीकृतियों में देरी की।
फिर भी, भारत अपनी विनिर्माण आवश्यकताओं के लिए चीनी सामानों पर काफी निर्भर है। अमेरिका और यूरोप चीनी सामानों पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में, भारत के लिए फायदेमंद होगा कि चीनी कंपनियां भारत में निवेश करें और यहां से उत्पाद बनाकर अमेरिका और यूरोप जैसे बाजारों में निर्यात करें। यह मौजूदा प्रथा के विपरीत होगा, जिसमें चीन से सामान आयात करके उस पर मामूली काम करके फिर से निर्यात किया जाता है।
तुर्की और ब्राज़ील जैसे उभरते हुए बाजारों ने चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया है और साथ ही इस क्षेत्र में चीनी एफडीआई को आकर्षित कर रहे हैं। ये कदम चीनी कारखानों में अतिरिक्त क्षमता के कारण पैदा हो रही चिंताओं के जवाब में उठाए गए हैं, जो स्थानीय उद्योगों और रोज़गार के लिए खतरा बन सकते हैं।