Tuesday, May 27, 2025

वक्फ कानून पर मुख्य न्यायाधीश की बड़ी टिप्पणी

भारत के मुख्य न्यायाधीश B.R. गवई ने वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि संसद द्वारा पारित किसी भी कानून के पीछे उसकी संवैधानिकता की धारणा होती है और जब तक कोई स्पष्ट और ठोस आधार सामने नहीं आता, तब तक न्यायालयों को उसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश गवई और न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह की पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जो हाल ही में पारित हुए वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती दे रही हैं। न्यायालय इससे पहले तीन अहम मुद्दों की पहचान कर चुका था —

  1. उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ,
  2. वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नामांकन प्रक्रिया, और
  3. वक्फ के तहत सरकारी जमीन की पहचान।

इन मुद्दों पर केंद्र सरकार ने पहले ही अदालत को आश्वासन दिया था कि जब तक मामला सुलझ नहीं जाता, तब तक इन मुद्दों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।

आज की सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि केंद्र सरकार ने इन तीनों मुद्दों पर अपना जवाब दाखिल कर दिया है। उन्होंने कहा, “लेकिन अब याचिकाकर्ताओं की दलीलें इन तीन मुद्दों से आगे बढ़कर कई अन्य पहलुओं तक पहुंच गई हैं। मेरा निवेदन है कि बहस को उन्हीं तीन मुद्दों तक सीमित रखा जाए।”

इस पर याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने विरोध जताया। सिब्बल ने कहा, “तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा था कि अदालत इस मामले की सुनवाई करेगी और देखेगी कि कोई अंतरिम राहत दी जानी चाहिए या नहीं। अब हम सिर्फ तीन मुद्दों तक सीमित नहीं रह सकते।” सिंघवी ने भी कहा कि “टुकड़ों में सुनवाई नहीं हो सकती।”

कपिल सिब्बल ने इस कानून की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसका उद्देश्य वक्फ की जमीनों पर कब्जा करना है। उन्होंने कहा, “यह कानून इस तरह से तैयार किया गया है कि वक्फ संपत्ति को बिना किसी वैध प्रक्रिया के छीन लिया जा सके।” उन्होंने इस शर्त का भी जिक्र किया कि केवल वही व्यक्ति वक्फ बना सकता है जिसने कम से कम पिछले पांच वर्षों तक इस्लाम का पालन किया हो। उन्होंने पूछा, “अगर मैं मृत्युशैया पर हूं और वक्फ बनाना चाहता हूं, तो मुझे पहले यह साबित करना होगा कि मैं मुसलमान हूं? यह तो पूरी तरह असंवैधानिक है।”

जब सिब्बल ने दोहराया कि इस कानून का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों को राज्य के अधीन करना है, तब मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “संसद द्वारा पारित किसी भी कानून को संवैधानिक माना जाता है। न्यायालय तभी हस्तक्षेप कर सकते हैं जब कोई स्पष्ट और ठोस मामला पेश हो। वर्तमान परिस्थिति में हमें और कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है।”

सिब्बल ने आगे कहा कि नए कानून के अनुसार कोई भी ग्राम पंचायत या निजी व्यक्ति शिकायत दर्ज करा सकता है और उस आधार पर संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी। “सरकारी अधिकारी खुद ही फैसला करेगा और खुद ही उस मामले में न्यायाधीश बन जाएगा। कोई प्रश्न नहीं पूछा जाएगा।”

उन्होंने जोर देकर कहा, “वक्फ मेरी व्यक्तिगत संपत्ति से जुड़ा मामला है। यह संपत्ति किसी राज्य की नहीं होती, यह केवल व्यक्ति की होती है। लेकिन अब वही संपत्ति राज्य द्वारा छीन ली गई है।”

सिब्बल ने मस्जिदों और मंदिरों की तुलना करते हुए कहा, “हमारे संविधान के अनुसार, राज्य धार्मिक संस्थाओं को सीधे वित्तीय सहायता नहीं दे सकता। राज्य मस्जिद के रखरखाव के लिए फंड नहीं दे सकता, कब्रिस्तान भी निजी संपत्ति से ही बनाए जाते हैं। इसलिए लोग अक्सर अपनी मृत्यु से पहले अपनी संपत्ति को वक्फ के रूप में समर्पित कर देते हैं। मस्जिदों के पास मंदिरों की तरह करोड़ों के चढ़ावे नहीं होते। मस्जिदों और कब्रिस्तानों के पास 2000-3000 करोड़ रुपये की रकम नहीं होती।”

जब मुख्य न्यायाधीश ने यह कहा कि दरगाहों को भी अनुदान दिया जाता है, तो सिब्बल ने स्पष्ट किया कि वे मस्जिदों की बात कर रहे हैं।

इस तरह आज की सुनवाई में वक्फ संशोधन अधिनियम की संवैधानिकता, संपत्ति के अधिकार, और धर्म-आधारित कानूनों के बीच संतुलन पर गंभीर बहस हुई। अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक कोई ठोस संवैधानिक उल्लंघन नहीं दिखता, तब तक हस्तक्षेप संभव नहीं है।

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