Thursday, October 23, 2025

‘भूल चूक माफ़’ रिव्यु : राजकुमार राव एक अधूरी प्रेम कहानी और समय चक्र में उलझे हुए

एक अधूरी प्रेम कहानी, समय में फंसी ज़िंदगी, आस्था की गहराइयाँ, और राजकुमार राव का हमेशा की तरह दिल जीतने वाला छोटा शहर वाला हास्य — ‘भूल चूक माफ़’ इन सभी तत्वों को अपने में समेटे हुए है। कागज़ पर यह फिल्म एक मजबूत और दिलचस्प अवधारणा प्रतीत होती है, लेकिन परदे पर इसका क्रियान्वयन उतना ही बिखरा हुआ और निराशाजनक लगता है।

यह फिल्म समय चक्र यानी टाइम लूप, स्त्री-पुरुष संबंधों की असमानता, और एकतरफा प्रेम जैसे विचारों को जोड़ने का प्रयास करती है, लेकिन इसकी स्क्रिप्ट और निर्देशन इतने उलझे हुए हैं कि न तो कोई भावनात्मक गहराई महसूस होती है और न ही कोई सिनेमाई संतुलन।

कहानी की परतें और उनकी उलझन

फिल्म की कहानी वाराणसी में रहने वाले रंजन तिवारी (राजकुमार राव) और तितली (वामिका गब्बी) की है, जो एक-दूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं। तितली के पिता एक शर्त रखते हैं — रंजन को दो महीने में सरकारी नौकरी पानी होगी, वरना शादी का सपना छोड़ना पड़ेगा।

रंजन बार-बार कोशिश करता है लेकिन सफलता नहीं मिलती। फिर वह भ्रष्टाचार का सहारा लेने की सोचता है, और जब वह रास्ता भी बंद हो जाता है, तो आस्था की ओर रुख करता है। शिव मंदिर में प्रतिज्ञा करता है कि यदि उसे नौकरी मिल जाए तो वह एक नेक काम करेगा।

कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब रंजन शादी के एक दिन पहले खुद को एक रहस्यमयी टाइम लूप में फंसा हुआ पाता है, जिससे बाहर निकलने के लिए उसे अपने किए गए वादों और कर्मों का सामना करना पड़ता है।

एक दिलचस्प आइडिया, लेकिन अधूरा निष्पादन

टाइम लूप भारतीय सिनेमा में एक नया और रोमांचक विषय है, और वाराणसी जैसे आध्यात्मिक शहर में इस कहानी को सेट करना एक बढ़िया विकल्प था। लेकिन इन दोनों ही तत्त्वों का उपयोग सतही रह गया है।

फिल्म अपने केंद्रीय संघर्ष को स्थापित करने में एक घंटे से भी अधिक समय लेती है, जबकि ट्रेलर देखकर ही दर्शकों को यह पहले से पता होता है। इससे कहानी की गति में बाधा आती है और दर्शकों का धैर्य टूटता है।

स्त्री पात्र का कमजोर चित्रण

तितली के किरदार को जिस तरह से प्रस्तुत किया गया है, वह आज की आत्मनिर्भर और जागरूक महिलाओं के बिल्कुल विपरीत लगता है। एक शिक्षित और आत्मविश्वासी लड़की जो अपनी मां के गहने बेच देती है, सिर्फ उस आदमी से शादी करने के लिए जो खुद अपनी ज़िंदगी में स्पष्टता नहीं ला पाया है — यह दर्शकों को खटकता है।

तितली और रंजन की केमिस्ट्री में कोई गहराई नहीं है। उनके बीच न संवाद में भावनाएं हैं, न झगड़ों में कोई गर्माहट, और न ही दर्शक कभी उनके रिश्ते के लिए उत्साहित महसूस करते हैं। यह प्रेम कहानी असमान, एकतरफा और बेजान लगती है।

लैंगिक रूढ़ियों और स्त्री-द्वेष की झलक

फिल्म में ऐसे कई दृश्य और संवाद हैं जो स्त्री-द्वेषपूर्ण और लैंगिक भेदभाव से भरे हुए हैं। “बच्चा पैदा करना दुनिया का सबसे आसान काम है…” जैसे संवादों का दोहराव, और एक महिला के छोटे से अचार के व्यवसाय का मज़ाक उड़ाया जाना — यह फिल्म को ना सिर्फ असंवेदनशील बनाते हैं बल्कि यह दर्शाते हैं कि लेखन में कितनी गहराई की कमी है।

अभिनय और तकनीकी पक्ष

राजकुमार राव हमेशा की तरह अपने किरदार को ईमानदारी से निभाते हैं। उनका ह्यूमर, उनकी मासूमियत और टाइम लूप में फंसे इंसान की घबराहट बखूबी दर्शाई गई है। लेकिन स्क्रिप्ट और निर्देशन की कमज़ोरियाँ उनकी मेहनत को रंग नहीं ला पातीं।

वामिका गब्बी का अभिनय ज़रूरत से ज़्यादा नाटकीय और बनावटी लगता है, जो उनके किरदार को और भी अविश्वसनीय बना देता है। सिनेमाटोग्राफी और बैकग्राउंड म्यूज़िक औसत हैं, जो फिल्म को किसी विशेष ऊँचाई तक नहीं ले जाते।

‘भूल चूक माफ़’ एक दिलचस्प विचार था जो सही मार्गदर्शन और गहराई के साथ एक यादगार फिल्म बन सकता था। लेकिन यह फिल्म एक खोखली प्रेम कहानी, थकी हुई स्क्रिप्ट और रूढ़िवादी सोच के कारण अपने वादे पर खरी नहीं उतरती।

समय बदल रहा है, सिनेमा बदल रहा है, और दर्शकों की सोच भी। लेकिन यह फिल्म आज के दौर की कहानी नहीं लगती — बल्कि यह पीछे की ओर ले जाती है।

रेटिंग: ⭐⭐ (5 में से 2 स्टार)
एक सितारा राजकुमार राव के लिए, दूसरा वाराणसी के लिए। बाकी फिल्म, भूल जाना बेहतर है।

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