महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार से बाहर रखे जाने पर नाराजगी जताने वाले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने मंगलवार को फिर से मंत्री पद की शपथ ली।
77 वर्षीय भुजबल, OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) समुदाय के प्रभावशाली नेता माने जाते हैं और उन्हें अजित पवार का करीबी सहयोगी माना जाता है। जून 2023 में अजित पवार द्वारा राकांपा में विभाजन किए जाने के बाद से भुजबल उनके साथ थे। लेकिन हाल ही में जब उन्हें कैबिनेट से बाहर रखा गया, तो उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपनी नाराजगी जताई और यहां तक कह दिया कि यदि उन्हें महत्व नहीं दिया गया, तो वे पार्टी छोड़ सकते हैं। उन्होंने कहा था, “मैं वहां नहीं रहूंगा, जहां मेरी जरूरत नहीं है।”
मंगलवार को राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने उन्हें मंत्री पद की शपथ दिलाई। यह मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्रियों देवेंद्र फडणवीस व अजित पवार की उपस्थिति में हुआ। यह मंत्रिमंडल विस्तार फडणवीस सरकार के सत्ता में लौटने के बाद दूसरा विस्तार है।
भुजबल को फिर से खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग मिलने की संभावना है, जो पिछली सरकार में भी उनके पास था। शपथ ग्रहण के बाद भुजबल ने कहा, “अंत भला तो सब भला।”
राज्य राकांपा प्रमुख सुनील तटकरे ने कहा कि भुजबल अब नाराज नहीं हैं। उन्होंने कहा, “शुरुआत में उन्होंने अपनी भावनाएं व्यक्त कीं, लेकिन पार्टी के कोर ग्रुप ने बैठक कर उन्हें कैबिनेट में शामिल करने का निर्णय लिया।”
भुजबल को ऐसे समय में कैबिनेट में शामिल किया गया है जब केंद्र सरकार ने यह घोषणा की है कि आगामी दशकीय जनगणना में जाति आधारित गणना भी की जाएगी। इससे ओबीसी समुदाय को विशेष लाभ मिलने की उम्मीद है। इसके अलावा मानसून के बाद राज्य में 687 नगर निकायों और जिला परिषदों के चुनाव होने हैं, जिसमें ओबीसी वर्ग सबसे बड़ा मतदाता समूह है।
भुजबल की राजनीतिक यात्रा उल्लेखनीय रही है। एक सब्जी विक्रेता के बेटे के रूप में जन्मे भुजबल ने मुंबई के वीरमाता जीजाबाई तकनीकी संस्थान से पढ़ाई की। उन्हें राजनीति में लाने का श्रेय शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे को जाता है। भुजबल दो बार मुंबई के मेयर रह चुके हैं और मझगांव से विधायक भी रहे हैं।
1991 में उन्होंने शिवसेना से विद्रोह किया जब ठाकरे ने मनोहर जोशी को विपक्ष का नेता बनाया। 1995 के विधानसभा चुनाव में वे बाला नंदगांवकर से हार गए, लेकिन फिर विधान परिषद के लिए चुने गए और विपक्ष के नेता बने। इसके बाद शरद पवार ने उन्हें एनसीपी का राज्य अध्यक्ष बनाया।
1999 में कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार बनने पर भुजबल उपमुख्यमंत्री बने। हालांकि 2003 में फर्जी स्टांप पेपर घोटाले से जुड़े होने के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
2004 में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के सत्ता में लौटने पर उन्होंने फिर वापसी की। 2009 में वे फिर उपमुख्यमंत्री बने लेकिन एक साल के भीतर उन्होंने यह पद अजीत पवार के हाथों खो दिया। इसके बावजूद वे 2010 से 2014 तक मंत्री बने रहे। इस दौरान उन पर मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप भी लगे।
अब एक बार फिर भुजबल महाराष्ट्र सरकार में मंत्री बनकर लौटे हैं, और राजनीतिक दृष्टि से यह उनकी एक और महत्वपूर्ण वापसी मानी जा रही है।