भारत और चीन के बीच व्यापार असंतुलन लगातार बढ़ता जा रहा है, और अब बीजिंग ने इस पर चिंता जताते हुए भारत के व्यापार घाटे को कम करने के संकेत दिए हैं। बताया जा रहा है कि वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का व्यापार घाटा चीन के साथ 100 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकता है। इस बढ़ते अंतर को कम करने के लिए चीन ने संकेत दिया है कि वह भारतीय वस्तुओं के आयात में वृद्धि करने और भारत को व्यापार में राहत देने की दिशा में प्रयास कर सकता है।
मामले से जुड़े लोगों ने जानकारी दी है कि चीन ने अनौपचारिक रूप से यह संकेत भेजा है कि वह टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को हटाकर भारत से अधिक वस्तुओं का आयात करने को तैयार है। यह कदम ऐसे समय में आया है जब चीन अमेरिका द्वारा लगाए गए 145% टैरिफ के कारण व्यापारिक दबाव में है।
हालांकि भारत ने इस मामले में कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। भारतीय अधिकारियों को आशंका है कि अगर व्यापार बाधाएं घटती हैं तो चीन से आयात और बढ़ेगा, जिससे भारतीय बाजार में चीनी वस्तुओं की डंपिंग और तेज़ हो सकती है।
इसके अतिरिक्त, चीन के राजदूत जू फेइहोंग ने हाल ही में दिए गए एक साक्षात्कार में कहा कि चीन भारत से अधिक उत्पाद खरीदने और भारतीय कंपनियों को अपने देश में निवेश के लिए प्रोत्साहित करने की दिशा में काम करना चाहता है। उन्होंने कहा कि भारत और चीन के बीच संबंध एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं और भारत को चीनी कंपनियों के लिए एक निष्पक्ष और पारदर्शी कारोबारी वातावरण तैयार करना चाहिए।
जानकारों ने यह भी बताया कि व्यापार बाधाओं में ढील से चीन को भारत की तुलना में अधिक लाभ मिल सकता है। इससे चीन की उन वस्तुओं का सीधा आयात संभव हो जाएगा जो अब तक तीसरे देशों के रास्ते भारत में आ रही थीं, विशेषकर उन देशों से जिनके साथ भारत का मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है, जैसे कि आसियान देशों का समूह।
एक विशेषज्ञ ने कहा, “चीन ने दुनिया भर में अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान और भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की कीमत पर लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर का व्यापार अधिशेष जमा किया है। चीन मौन सब्सिडी और शिकारी मूल्य निर्धारण जैसी रणनीतियों का सहारा लेता है ताकि वह प्रतिस्पर्धा को खत्म कर सके।” उन्होंने आगे कहा, “यही व्यापार घाटा अमेरिका द्वारा चीन पर लगाए गए 125% प्रतिशोधी शुल्क का मुख्य कारण था।”
भारत-चीन व्यापार का विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट है कि घाटा लगातार बढ़ रहा है। वाणिज्यिक खुफिया और सांख्यिकी महानिदेशालय (DGCIS) के आंकड़ों के अनुसार, भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा वित्त वर्ष 2019-20 में 48.65 बिलियन डॉलर था। 2020-21 में यह मामूली घटकर 44 बिलियन डॉलर हुआ, लेकिन इसके बाद लगातार बढ़ता गया। 2021-22 में यह 73.31 बिलियन डॉलर, 2022-23 में 83.2 बिलियन डॉलर और 2023-24 में 85.08 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया।
भारतीय पक्ष ने चीन के सामने दो प्रमुख मुद्दों को उठाया है—पहला, भारी व्यापार घाटा और दूसरा, पूर्वानुमानित व्यापार व्यवस्थाओं की कमी। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “व्यापार में स्थिरता और पूर्वानुमान जरूरी हैं। जब व्यापार को राजनीति से प्रभावित किया जाता है, तो यह दीर्घकालिक रूप से लाभकारी नहीं होता।”
राजदूत जू ने अपने हालिया बयान में कहा कि भारत और चीन को “विकास” को एक साझा कारक मानकर सहयोग बढ़ाना चाहिए। उन्होंने कहा, “हम चीन में भारतीय उत्पादों के आयात को बढ़ाने और अधिक भारतीय कंपनियों का चीन में स्वागत करने को इच्छुक हैं। हम चाहते हैं कि भारत, चीनी कंपनियों के लिए पारदर्शी माहौल बनाए और आपसी लाभ की दिशा में काम करे।”
हालांकि, भारत का दृष्टिकोण अब भी सतर्क बना हुआ है। अप्रैल-मई 2020 में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर सैन्य गतिरोध के बाद भारत ने चीनी निवेश पर अंकुश लगाया, कई चीनी ऐप्स को प्रतिबंधित किया और चीनी कंपनियों के लिए नियामकीय सख्ती बढ़ा दी। इससे द्विपक्षीय संबंध बेहद निचले स्तर पर चले गए।
हालांकि पिछले कुछ समय में दोनों देशों ने सैनिकों की वापसी और अन्य संवाद तंत्रों के ज़रिये संबंधों में सुधार लाने की कोशिश की है, लेकिन भारत अभी भी “राष्ट्रीय सुरक्षा फ़िल्टर” को निवेश नीति का हिस्सा बनाए हुए है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी इस दृष्टिकोण को दोहराया है।
2024-25 के पहले 11 महीनों में भारत से चीन को निर्यात में 15.66% की गिरावट देखी गई, जो 12.74 बिलियन डॉलर तक सीमित रहा। वहीं, इसी अवधि में चीन से आयात 10.41% बढ़कर 103.78 बिलियन डॉलर हो गया, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में 93.99 बिलियन डॉलर था। इस दौरान चीन ने भारत के साथ 91 बिलियन डॉलर से अधिक का व्यापार अधिशेष अर्जित किया, और यह वर्षांत तक 100 बिलियन डॉलर को पार कर सकता है।
भारत लंबे समय से चीन से आयातित वस्तुओं पर निर्भर है, जिनमें इलेक्ट्रॉनिक पुर्जे, कंप्यूटर हार्डवेयर, दूरसंचार उपकरण, कार्बनिक रसायन, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, प्लास्टिक कच्चा माल और दवा उद्योग की सामग्री शामिल हैं। वहीं भारत चीन को लौह अयस्क, समुद्री उत्पाद, पेट्रोलियम उत्पाद, मसाले और कुछ दूरसंचार उपकरण निर्यात करता है।
भारतीय अधिकारियों का मानना है कि जब तक चीनी बाज़ारों तक भारतीय उत्पादों की पहुंच सहज नहीं होती और गैर-टैरिफ बाधाओं को वास्तविक रूप से नहीं हटाया जाता, तब तक व्यापार संतुलन की दिशा में ठोस प्रगति संभव नहीं है।
