Thursday, July 10, 2025

प्रधानमंत्री मोदी ने 1975 के आपातकाल के लिए कांग्रेस की आलोचना की

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 जून, 1975 को देश में लगाए गए आपातकाल को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का “सबसे काला अध्याय” बताया। उन्होंने कहा कि उस दौर में संविधान में निहित मूल्यों को दरकिनार कर दिया गया, लोगों के मौलिक अधिकारों को छीना गया और लाखों निर्दोष नागरिकों को जेल में डाल दिया गया।

आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने x (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा,

“25 जून, 1975 को लगाया गया आपातकाल भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय था। इस दिन को भारत के लोग ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में याद करते हैं। उस दिन संविधान की भावना को रौंद दिया गया, प्रेस की स्वतंत्रता को कुचला गया और विपक्ष के नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्रों और आम नागरिकों को जेल में डाला गया। ऐसा लग रहा था मानो कांग्रेस ने लोकतंत्र को बंधक बना लिया हो।”

उन्होंने आपातकाल के खिलाफ लड़ने वालों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा:

“हम उन सभी लोगों को सलाम करते हैं जिन्होंने उस अंधेरे दौर में भी लोकतंत्र के पक्ष में डटकर लड़ाई लड़ी। ये लोग भारत के हर कोने से, हर वर्ग और विचारधारा से आए थे, लेकिन उनका उद्देश्य एक था — भारतीय लोकतंत्र की रक्षा करना।”

प्रधानमंत्री ने कांग्रेस सरकार द्वारा लाए गए 42वें संविधान संशोधन को लोकतंत्र के खिलाफ उठाया गया एक प्रमुख कदम बताया और कहा कि इस तरह के फैसलों ने संविधान की आत्मा को गहरी चोट पहुंचाई।

‘आपातकालीन डायरी’ पुस्तक का विमोचन

प्रधानमंत्री मोदी ने ब्लूक्राफ्ट द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘आपातकालीन डायरी: वह वर्ष जिसने एक नेता को जन्म दिया’ का जिक्र करते हुए कहा कि यह किताब उनके जीवन के उस दौर को दर्शाती है जब वे एक युवा आरएसएस प्रचारक के रूप में आपातकाल के खिलाफ सक्रिय थे।

ब्लूक्राफ्ट पब्लिशर्स के अनुसार, यह पुस्तक उन असंख्य लोगों के साहस को समर्पित है जिन्होंने आपातकाल के दौरान चुप रहने से इनकार किया और देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खड़े रहे।

प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों से अपील की कि अगर उन्होंने या उनके परिवार ने आपातकाल के दौरान अत्याचार झेले हैं, तो वे सोशल मीडिया पर अपने अनुभव साझा करें, ताकि युवा पीढ़ी को इस शर्मनाक दौर के बारे में जानकारी मिल सके।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की टिप्पणी

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कांग्रेस सरकार की आलोचना करते हुए लिखा:

“25 जून, 1975 को भारत के लोकतंत्र का गला घोंटने का नापाक प्रयास किया गया। देश पर आपातकाल थोपा गया, संविधान को दरकिनार कर दिया गया और सभी विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। कोई भी संवैधानिक संस्था उस समय के दुरुपयोग से अछूती नहीं रही।”

उन्होंने कहा कि आज देश में लोकतंत्र जिंदा है तो वह आपातकाल के दौरान संघर्ष करने वालों की वजह से है। प्रधानमंत्री मोदी के ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाने के फैसले को उचित बताते हुए उन्होंने कहा कि इससे नई पीढ़ी को तानाशाही और लोकतंत्र की अहमियत का अंतर समझ में आएगा।

जे. पी. नड्डा: “यह लोकतंत्र पर सीधा हमला था”

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे. पी. नड्डा ने आपातकाल को भारत के लोकतंत्र पर सीधा हमला बताया और कांग्रेस पर आज भी तानाशाही मानसिकता से काम करने का आरोप लगाया।

उन्होंने कहा:

“25 जून 1975 की मध्यरात्रि को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आंतरिक अशांति का बहाना बनाकर आपातकाल लागू कर दिया। यह संविधान की हत्या थी। आज 50 साल बाद भी कांग्रेस की सोच नहीं बदली है। सत्ता में आने पर वो पत्रकारों को डराती है और विपक्ष में रहते हुए उनका बहिष्कार करती है।”

नड्डा ने लोगों से ‘द इमरजेंसी डायरीज – इयर्स दैट फोर्ज्ड ए लीडर’ पुस्तक पढ़ने का अनुरोध किया, जिसमें नरेंद्र मोदी की आपातकाल विरोधी भूमिका को उजागर किया गया है।=

विदेश मंत्री एस. जयशंकर: “दुखद अध्याय की याद”

एस. जयशंकर, विदेश मंत्री, ने कहा कि यह दिन भारत के इतिहास के एक “दर्दनाक अध्याय” की याद दिलाता है।

“संस्थानों को कमजोर किया गया, नागरिक अधिकारों को निलंबित किया गया और शासन में जवाबदेही की भावना खत्म कर दी गई थी। यह दिन संविधानिक मूल्यों की रक्षा करने के हमारे कर्तव्य की भी याद दिलाता है।”

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की टिप्पणी

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा:

“आपातकाल की काली छाया में लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचला गया। यह भारत के इतिहास का सबसे निराशाजनक दौर था। इस दिन को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लोकतंत्र के संरक्षण के लिए जरूरी है।”

उन्होंने बिहार की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि जयप्रकाश नारायण द्वारा छेड़ा गया ‘संपूर्ण क्रांति’ आंदोलन इसी राज्य से आरंभ हुआ था।

गृह मंत्री अमित शाह: “देश तानाशाही के आगे नहीं झुकता”

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री संग्रहालय में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि

“हमने आपातकाल जैसे काले अध्याय पर विजय प्राप्त की क्योंकि भारत कभी तानाशाही के आगे नहीं झुकता।”

उन्होंने कहा कि जब कोई राष्ट्रीय घटना 50 साल पूरे करती है, तो उसे याद रखना जरूरी हो जाता है — खासकर जब वह घटना लोकतंत्र को हिलाने वाली हो।

“अगर आपातकाल जैसे अत्याचारों को भूल जाएं, तो लोकतंत्र फिर खतरे में पड़ सकता है। यही कारण है कि मोदी सरकार ने 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।”

25 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक चला आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक ऐसा समय था जब नागरिक स्वतंत्रताएं सीमित हो गई थीं, प्रेस सेंसरशिप लागू थी, और सरकार के विरोध को अपराध की तरह देखा जाता था। आज जब इसके 50 साल पूरे हो रहे हैं, तब एक बार फिर यह राष्ट्रीय विमर्श का विषय बन गया है। सरकार का यह प्रयास है कि नई पीढ़ी को इस इतिहास से सबक मिले और लोकतंत्र की महत्ता हमेशा बनी रहे।

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