प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया साइप्रस यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण रही। यह पिछले 23 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली साइप्रस यात्रा है, जिसे वैश्विक मंच पर भारत की बदलती भूमिका और रणनीतिक दृष्टिकोण के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है। यह यात्रा न केवल भारत-साइप्रस संबंधों को मजबूती प्रदान करती है, बल्कि तुर्की और पाकिस्तान के बढ़ते गठजोड़ के विरुद्ध एक स्पष्ट कूटनीतिक संदेश भी देती है।
दो दशकों में पहली उच्चस्तरीय भारतीय उपस्थिति
प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिडेस के निमंत्रण पर हो रही है और इसमें लगभग 100 अधिकारियों का एक बड़ा प्रतिनिधिमंडल भी शामिल है। इस दौरे के तहत साइप्रस, क्रोएशिया और कनाडा की तीन देशों की यात्रा शामिल है, जिसमें जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग लेना भी शामिल है।
साइप्रस की यह यात्रा 20 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा है — इससे पहले इंदिरा गांधी ने 1982 में और अटल बिहारी वाजपेयी ने 2002 में साइप्रस का दौरा किया था। यह दौरा भारत-साइप्रस द्विपक्षीय संबंधों को पुनर्जीवित करने और रणनीतिक साझेदारी को विस्तार देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
तुर्की और पाकिस्तान को स्पष्ट संकेत
साइप्रस यात्रा को तुर्की-पाकिस्तान धुरी के विरुद्ध एक सुनियोजित कूटनीतिक प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। तुर्की ने हाल ही में पाकिस्तान के साथ संबंधों को प्रगाढ़ किया है और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान का समर्थन किया था। ऐसे में पीएम मोदी की साइप्रस यात्रा तुर्की के विस्तारवाद के विरुद्ध साइप्रस के साथ एकजुटता प्रदर्शित करती है।
1974 में तुर्की द्वारा साइप्रस के एक-तिहाई हिस्से पर कब्जे के बाद से दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण हैं। तुर्की केवल उत्तरी साइप्रस के तुर्की गणराज्य (TRNC) को मान्यता देता है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवादित है। भारत द्वारा साइप्रस की यात्रा करना, विशेषकर यदि पीएम मोदी संयुक्त राष्ट्र-नियंत्रित ‘ग्रीन लाइन’ या बफर ज़ोन का दौरा करते हैं, तो यह तुर्की के विस्तारवादी रवैये के खिलाफ एक स्पष्ट विरोध और रणनीतिक गठबंधन का प्रतीक होगा।
आतंकवाद पर एकजुटता और पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति
साइप्रस ने बार-बार आतंकवाद के खिलाफ भारत के रुख का समर्थन किया है। 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद, साइप्रस ने इसकी कड़ी निंदा की और यूरोपीय संघ में इस विषय को पाकिस्तान के विरुद्ध उठाने की प्रतिबद्धता जताई। यह भारत के लिए एक मजबूत नैतिक और कूटनीतिक समर्थन है, जो पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर अलग-थलग करने की उसकी रणनीति को बल देता है।
रणनीतिक भौगोलिक स्थिति: यूरोप के लिए प्रवेश द्वार
साइप्रस, जो भौगोलिक रूप से एशिया में स्थित है लेकिन यूरोपीय संघ का सदस्य है, भारत के लिए पूर्वी भूमध्यसागर और यूरोप तक पहुंचने का एक रणनीतिक द्वार बनता जा रहा है। यह तुर्की और सीरिया के समीप है, जो इसे और भी महत्वपूर्ण बनाता है।
हाल ही में साइप्रस के प्रमुख बैंक ‘यूरोबैंक’ ने मुंबई में अपना प्रतिनिधि कार्यालय खोलने की घोषणा की है। इसका उद्देश्य भारतीय व्यवसायों को यूरोपीय संघ, मध्य-पूर्व, अफ्रीका और दक्षिण एशिया के बीच व्यापार और पूंजी प्रवाह के लिए एक पुल प्रदान करना है। इसके अतिरिक्त, साइप्रस का उन्नत वित्तीय सेवा क्षेत्र, कर-हितकारी नीति और शक्तिशाली शिपिंग उद्योग भारत के उद्यमियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है।
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC)
साइप्रस भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) का एक प्रमुख हिस्सा है। यह गलियारा भारत को यूरोप से जोड़ने वाला एक रणनीतिक संपर्क मार्ग है, जिसका उद्देश्य पूर्व-पश्चिम व्यापार को और अधिक सुगम और सुरक्षित बनाना है। पीएम मोदी की इस यात्रा का उद्देश्य साइप्रस को इस महत्वपूर्ण आर्थिक परियोजना में और अधिक मजबूती से शामिल करना है।
यूरोपीय संघ में भारत के हितों की वकालत
साइप्रस 2026 में यूरोपीय संघ परिषद की अध्यक्षता करेगा। पीएम मोदी की यात्रा इस पृष्ठभूमि में अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारत और यूरोपीय संघ के बीच व्यापार, वैश्विक शासन, सुरक्षा और रणनीतिक सहयोग को नई दिशा देने में मदद करेगी। इसके साथ ही, भारत द्वारा यूरोपीय संघ के साथ प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के संदर्भ में भी साइप्रस की भूमिका निर्णायक हो सकती है।
आर्थिक सहयोग और निवेश के नए आयाम
साइप्रस भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है। दोनों देशों के बीच दोहरे कराधान से बचाव समझौता (DTAA) आर्थिक संबंधों को और भी सुगम बनाता है। अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने लिमासोल में आयोजित एक व्यापार गोलमेज सम्मेलन को संबोधित किया, जिसमें उन्होंने भारत की आर्थिक प्रगति और वैश्विक निवेश अवसरों को उजागर किया।
प्रधानमंत्री ने साइप्रस के उद्योगपतियों को ऊर्जा, नवाचार, तकनीक और डिजिटल बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में निवेश के लिए आमंत्रित किया और यह विश्वास व्यक्त किया कि भारत जल्द ही विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है।
ऊर्जा सुरक्षा और गैस अन्वेषण में साझेदारी
पूर्वी भूमध्य सागर में प्राकृतिक गैस अन्वेषण को लेकर साइप्रस एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह क्षेत्र पहले से ही तुर्की की आक्रामक ड्रिलिंग गतिविधियों के चलते तनावग्रस्त है। भारत, जो अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने की दिशा में प्रयासरत है, साइप्रस के साथ ऊर्जा सुरक्षा और गैस अन्वेषण में सहयोग की संभावना तलाश रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साइप्रस यात्रा भारत की वैश्विक रणनीति, भू-राजनीतिक प्राथमिकताओं और आर्थिक दृष्टिकोण को दर्शाती है। यह केवल एक द्विपक्षीय दौरा नहीं, बल्कि एक व्यापक कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य भारत को वैश्विक शक्ति केंद्रों से अधिक जोड़ना, विरोधी धुरियों का संतुलन बदलना और भारत को वैश्विक नेतृत्व की ओर एक कदम और आगे ले जाना है।