महाराष्ट्र के पालघर जिले में एक 26 वर्षीय गर्भवती महिला, पिंकी डोंगरकर, की अस्पताल ले जाते समय ऑक्सीजन और चिकित्सा सुविधाओं की कमी के कारण मौत हो गई। इस घटना में उनका अजन्मा शिशु भी नहीं बच सका। अधिकारियों ने बुधवार को इसकी पुष्टि की। यह दर्दनाक घटना मंगलवार शाम को हुई और एक बार फिर आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवाओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है।
पिंकी डोंगरकर, जो पालघर के सारनी गांव की निवासी थीं, की तबीयत गंभीर होने पर उनके परिवार ने उन्हें कासा ग्रामीण अस्पताल पहुंचाया। अस्पताल में जांच के बाद यह पता चला कि महिला को अंतर्गर्भाशयी भ्रूण मृत्यु (IUFD) जैसी जटिल समस्या थी, जिसमें भ्रूण गर्भ में ही मर जाता है। इसके कारण, अस्पताल के कर्मचारियों ने उन्हें बेहतर इलाज के लिए पड़ोसी केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली के सिलवासा रेफर कर दिया।
आपातकालीन एम्बुलेंस की कमी
महिला के परिवार ने ‘108’ आपातकालीन सेवा से ऑक्सीजन और चिकित्सा उपकरणों से लैस विशेष एम्बुलेंस की मांग की। हालांकि, उनके प्रयास असफल रहे। अंततः, कासा अस्पताल ने उन्हें एक सामान्य एम्बुलेंस उपलब्ध कराई। सिलवासा ले जाते समय महिला की हालत और बिगड़ गई और उन्होंने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। उनके अजन्मे बच्चे की भी जान नहीं बच सकी।
अधिकारियों की प्रतिक्रिया
पालघर के सिविल सर्जन, डॉ. रामदास मराड, ने इस घटना पर गहरा खेद व्यक्त करते हुए कहा कि यदि महिला को समय पर इलाज मिलता तो उनकी जान बचाई जा सकती थी। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि क्षेत्र में ऑक्सीजन और हृदय संबंधी सहायता से सुसज्जित एम्बुलेंस की कमी लंबे समय से एक गंभीर समस्या है।
डॉ. मराड ने बताया कि कासा अस्पताल पहुंचने पर महिला अर्ध-चेतन अवस्था में थीं और उनमें गंभीर संक्रमण के लक्षण दिखाई दे रहे थे। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि निजी तौर पर संचालित ‘108’ आपातकालीन सेवा की अधिक मांग के कारण अक्सर मरीजों को समय पर मदद नहीं मिल पाती।
नेताओं की नाराजगी और सुधार की मांग
पालघर के भाजपा सांसद, डॉ. हेमंत सवारा, ने इस घटना को “बेहद दुखद” बताया और स्वास्थ्य सेवाओं में तत्काल सुधार की मांग की। उन्होंने कहा, “एम्बुलेंस सेवाओं में ऑक्सीजन और अन्य चिकित्सा सुविधाएं होनी चाहिए। साथ ही, मरीज के साथ एक डॉक्टर होना चाहिए, ताकि उसे समय पर उचित इलाज मिल सके। मैं इस मुद्दे को लेकर सरकार से चर्चा करूंगा।”
सीपीआई(एम) नेता और दहानू के विधायक, विनोद निकोले, ने भी इस घटना पर राज्य सरकार की आलोचना की। उन्होंने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के लिए बार-बार मांग करने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार स्वास्थ्य सेवा जैसी आवश्यकताओं को नजरअंदाज कर अन्य योजनाओं को प्राथमिकता दे रही है।
प्रणालीगत सुधारों की आवश्यकता
यह घटना ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ताहाल स्थिति को उजागर करती है। सुसज्जित एम्बुलेंस और आपातकालीन सेवाओं की कमी ने एक महिला और उसके अजन्मे बच्चे की जान ले ली, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की गंभीर खामियां सामने आई हैं।
स्थानीय अधिकारियों, राजनेताओं और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे पर तत्काल कदम उठाने का आह्वान किया है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि भविष्य में किसी भी परिवार को ऐसी त्रासदी का सामना न करना पड़े।