केंद्र की NDA सरकार आगामी मानसून सत्र के दौरान दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी में है। यह कदम उनके आधिकारिक आवास से भारी मात्रा में नकदी बरामद होने के गंभीर आरोपों के बाद उठाया जा रहा है। बताया गया है कि 8 अप्रैल की रात उनके आवास पर आग लगने की घटना के बाद यह मामला सामने आया था।
सूत्रों के अनुसार, सरकार इस प्रक्रिया को विधिवत आगे बढ़ाने के लिए संबंधित मंत्रालय के माध्यम से कार्रवाई करने की योजना बना रही है। यह संकेत मिल रहे हैं कि सरकार इस प्रकरण को लेकर बेहद गंभीर है और पारदर्शिता के साथ आगे बढ़ना चाहती है।
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से इस मामले को लेकर महत्वपूर्ण बैठक की। इस मुलाकात के बाद यह अटकलें तेज हो गई हैं कि न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ जल्द ही कार्रवाई शुरू की जा सकती है।
इस बीच, सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय इन-हाउस जांच समिति ने न्यायमूर्ति वर्मा को कथित तौर पर क्लीन चिट नहीं दी है। जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में उनके आवास से बरामद जले हुए नोटों की तस्वीरें और एक वीडियो भी शामिल किया है। इसके बावजूद अब तक न तो कोई प्राथमिकी दर्ज की गई है और न ही न्यायमूर्ति वर्मा ने इस्तीफा दिया है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कानून के शासन को बनाए रखने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता का यह अर्थ नहीं है कि उसे जवाबदेही और कानूनी प्रक्रिया से मुक्त रखा जाए। उन्होंने ऐसे मामलों में FIR दर्ज किए जाने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया।
माना जा रहा है कि जून के दूसरे पखवाड़े में शुरू होने वाले संसद के मानसून सत्र में यह मामला राजनीतिक और कानूनी दोनों मोर्चों पर गरम बहस का विषय रहेगा। न्यायपालिका और कार्यपालिका के संबंधों, न्यायिक जवाबदेही और लोकतांत्रिक व्यवस्था में पारदर्शिता के लिहाज से यह कार्यवाही ऐतिहासिक साबित हो सकती है।
सरकार द्वारा महाभियोग की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की तत्परता यह दर्शाती है कि वह इस मामले को अत्यंत गंभीरता से ले रही है। इसके संभावित परिणाम न्यायिक जवाबदेही के भविष्य और भारतीय लोकतंत्र में संस्थाओं के संतुलन को प्रभावित कर सकते हैं।

