भारत का इलेक्ट्रिक वाहन (EV) क्षेत्र एक गंभीर आपूर्ति संकट की ओर बढ़ रहा है, जिसका मुख्य कारण दुर्लभ पृथ्वी चुम्बकों (Rare Earth Magnets) की कमी है। क्रिसिल रेटिंग्स की हालिया रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यदि चीन द्वारा लगाए गए निर्यात प्रतिबंध और शिपमेंट क्लीयरेंस में देरी का सिलसिला जारी रहा, तो भारत के ऑटोमोटिव क्षेत्र को बड़ा झटका लग सकता है।
हालात पहले से ही चिंताजनक हैं। यदि व्यवधान एक महीने से अधिक चला, तो इससे EV लॉन्च में देरी हो सकती है, उत्पादन बाधित हो सकता है और समग्र विकास की रफ्तार धीमी पड़ सकती है। दुर्लभ पृथ्वी चुम्बक लागत में भले ही कम हों, पर इनका योगदान स्थायी चुम्बक तुल्यकालिक मोटर्स (PMSM) में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। PMSM मोटरें उच्च टॉर्क, ऊर्जा दक्षता और छोटे आकार के कारण ईवी के लिए अनिवार्य हैं। हाइब्रिड वाहन भी प्रभावी प्रदर्शन के लिए इन पर निर्भर करते हैं।
दूसरी ओर, पारंपरिक आंतरिक दहन इंजन (ICE) वाहनों में इन चुम्बकों का उपयोग अपेक्षाकृत सीमित होता है — मुख्य रूप से इलेक्ट्रिक पावर स्टीयरिंग और अन्य मोटर चालित प्रणालियों में।
चीन की नई नीति और उसका असर
अप्रैल 2025 में चीन, जो दुनिया का सबसे बड़ा दुर्लभ पृथ्वी चुम्बक निर्यातक है, ने सात प्रमुख दुर्लभ पृथ्वी तत्वों और तैयार चुम्बकों पर निर्यात प्रतिबंध लगा दिए। अब इनका निर्यात केवल विशेष लाइसेंस के तहत संभव है। इन लाइसेंसों के लिए विस्तृत अंतिम उपयोग विवरण, ग्राहक घोषणा, और यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि उत्पादों का प्रयोग रक्षा क्षेत्र में नहीं होगा या अमेरिका को पुनः निर्यात नहीं किया जाएगा।
इस मंजूरी प्रक्रिया में कम से कम 45 दिन का समय लग रहा है। क्रिसिल ने बताया कि इस प्रक्रिया की जटिलता और बैकलॉग के चलते वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं पहले से ही दबाव में हैं।
भारत, जिसने 2024-25 में 540 टन चुम्बकों का 80% से अधिक चीन से आयात किया, अब इसका प्रभाव झेल रहा है। मई 2025 के अंत तक भारत सरकार ने करीब 30 आयात अनुरोधों को स्वीकृति दी, लेकिन एक भी अनुरोध को अभी तक चीन की ओर से मंजूरी नहीं मिली और कोई शिपमेंट भारत नहीं पहुंचा।
क्रिसिल के वरिष्ठ निदेशक अनुज सेठी ने बताया कि यह आपूर्ति संकट ऐसे समय में आया है जब ऑटो उद्योग ईवी रोलआउट को लेकर आक्रामक योजना बना रहा है। एक दर्जन से अधिक नए ईवी मॉडल लॉन्च के लिए तैयार हैं, जिनमें से अधिकांश PMSM प्लेटफॉर्म पर आधारित हैं। भले ही ऑटो कंपनियों के पास फिलहाल 4 से 6 सप्ताह की इन्वेंट्री हो, लेकिन अगर स्थिति लंबी खिंचती है तो जुलाई 2025 से नए ईवी मॉडल्स के लॉन्च में देरी हो सकती है या उन्हें टालना पड़ सकता है।
यदि आपूर्ति संकट लंबा चलता है, तो इसका असर दोपहिया वाहनों (2W) और आंतरिक दहन इंजन वाले यात्री वाहनों (ICE PVs) तक भी पहुंच सकता है।
सेक्टर की विकास दर और संभावित जोखिम
वित्त वर्ष 2025-26 में घरेलू यात्री वाहनों की बिक्री में 2-4% की वृद्धि की संभावना है, वहीं ईवी यात्री वाहनों की वृद्धि दर 35-40% तक हो सकती है, हालांकि यह कम आधार के कारण है। इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों की वृद्धि दर 27% तक पहुंच सकती है, जो समग्र 2W श्रेणी की 8-10% वृद्धि दर से कहीं अधिक होगी। हालांकि, यदि दुर्लभ पृथ्वी की आपूर्ति में बाधाएं बनी रहीं, तो इस तेजी को भी झटका लग सकता है।
सरकार और उद्योग की प्रतिक्रिया
आपूर्ति संकट की गंभीरता को देखते हुए सरकार और ऑटोमोबाइल कंपनियां दो स्तरों पर कदम उठा रही हैं।
अल्पकालिक उपायों में शामिल हैं:
- रणनीतिक इन्वेंट्री का निर्माण
- वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की खोज
- घरेलू असेंबली को प्रोत्साहन देने वाली PLI (उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन) योजनाओं को गति देना
दीर्घकालिक उपायों में शामिल हैं:
- दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की घरेलू खोज को तेज़ करना
- स्थानीय उत्पादन क्षमता को विकसित करना
- पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग) अवसंरचना में निवेश करना
भारत-चीन वार्ता और कूटनीतिक प्रयास
भारत सरकार ने इस मसले को लेकर चीन के साथ बातचीत शुरू कर दी है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बताया कि भारत, चीन के साथ दिल्ली और बीजिंग दोनों स्तरों पर संपर्क में है ताकि आपूर्ति श्रृंखला में पूर्वानुमान लाया जा सके और व्यापार में पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने भी चीन के निर्यात प्रतिबंधों को वैश्विक “चेतावनी संकेत” करार दिया और कहा कि भारत न केवल अपनी निर्भरता कम करने की दिशा में काम कर रहा है, बल्कि उन अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के लिए भरोसेमंद साझेदार बनना चाहता है जो चीन से बाहर वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखला तलाश रही हैं। स्विट्जरलैंड की आधिकारिक यात्रा के दौरान गोयल ने यह भी स्वीकार किया कि चीन के प्रतिबंध भारत के ऑटोमोबाइल और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स (व्हाइट गुड्स) सेक्टर के लिए निकट भविष्य में चुनौतियां पैदा करेंगे।
गौरतलब है कि चीन वर्तमान में वैश्विक दुर्लभ पृथ्वी चुम्बकों की 90% से अधिक उत्पादन क्षमता को नियंत्रित करता है, जिससे पूरी दुनिया की सप्लाई चेन इसकी पकड़ में है।
भारत की अंतरराष्ट्रीय रणनीति
भारत ने हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित भारत-मध्य एशिया संवाद के दौरान कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के साथ दुर्लभ पृथ्वी खनिजों और महत्वपूर्ण खनिज संसाधनों की संयुक्त खोज में रुचि जताई है।
दुर्लभ पृथ्वी चुम्बकों की मौजूदा आपूर्ति संकट ने भारत के इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। यदि भारत इस अवसर का लाभ उठाकर वैकल्पिक आपूर्ति स्रोतों और घरेलू क्षमताओं को विकसित कर सके, तो यह संकट एक स्थायी समाधान की दिशा में पहला कदम बन सकता है।