12 जून को इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने यरुशलम की पवित्र पश्चिमी दीवार पर एक छोटा सा हाथ से लिखा नोट रखा। उसमें लिखा था:
“लोग एक महान शेर की तरह उठेंगे। वह तब तक नहीं रुकेगा जब तक अपने दुश्मनों से बदला नहीं ले लेता।”
पहले इस संदेश को ऐसा समझा गया कि नेतन्याहू ईरानी शासन के खिलाफ इजरायली लोगों को प्रेरित कर रहे हैं। लेकिन अब कुछ लोग मानते हैं कि यह संदेश ईरान के आम लोगों के लिए भी हो सकता है – कि वे अपने ही तानाशाह शासन के खिलाफ खड़े हों।
13 जून को शुरू हुआ ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’
नेतन्याहू के इस संदेश के ठीक अगले दिन, इजरायल ने “ऑपरेशन राइजिंग लायन” शुरू किया। इसमें 200 से ज्यादा युद्धक विमान और ड्रोन ने ईरान के कई शहरों – तेहरान, नतांज, शिराज, इस्फ़हान, केरमानशाह – पर हमले किए। ये हमले ईरान की परमाणु और सैन्य सुविधाओं पर हुए।
इसके बाद दोनों देशों के बीच कई और हमले हुए।
ईरान के एक टॉप जनरल की मौत
17 जून को इजरायली सेना ने दावा किया कि उन्होंने ईरान के एक बड़े सैन्य अधिकारी अली शादमानी को तेहरान में मार गिराया है। हालांकि ईरान ने इसकी पुष्टि नहीं की।
नेतन्याहू की बड़ी योजना – शासन परिवर्तन?
नेतन्याहू ने कहा, “हमें संकेत मिले हैं कि ईरान के शीर्ष नेता अपना सामान समेट रहे हैं। उन्हें पता चल गया है कि क्या होने वाला है।” इसका मतलब यह निकाला जा रहा है कि इजरायल अब सिर्फ सैन्य कार्रवाई नहीं कर रहा, बल्कि वह ईरान में शासन को पूरी तरह बदलने की कोशिश कर रहा है।
अब सवाल उठता है – क्या ईरानी लोग खुद ही इस्लामी शासन को गिरा सकते हैं?
‘राइजिंग लायन’ – ईरानी लोग खुद?
कुछ लोग अब मानने लगे हैं कि “राइजिंग लायन” सिर्फ इजरायली सेना के लिए नहीं है – बल्कि यह ईरान के आम लोगों के लिए एक संदेश है कि वे खुद एक “उठते हुए शेर” की तरह अपने अत्याचारी शासन के खिलाफ उठें।
ईरानी विश्लेषक नवीद मोहेबी ने लिखा,
“कभी फारसी राजा साइरस ने यहूदियों को आज़ादी दी थी। अब शायद इजरायल को ईरानियों को आज़ादी दिलाने में मदद करनी चाहिए।”
कुछ अन्य लोगों ने भी कहा कि यह ऑपरेशन ईरानियों को याद दिला रहा है कि इजरायल उनका दुश्मन नहीं, बल्कि एक संभावित मित्र है।
ईरान के अंदर गुस्सा है, लेकिन डर भी
ईरान में बहुत सारे लोग, खासकर युवा, इस्लामिक शासन से तंग आ चुके हैं। 2022 में महसा अमिनी की मौत के बाद जो विरोध हुआ, उसने दिखाया कि लोग कितने नाराज़ हैं।
महिलाओं पर पाबंदियाँ, धार्मिक सख्ती, आर्थिक मुश्किलें और भ्रष्टाचार ने लोगों की ज़िंदगी कठिन बना दी है। बहुत से लोग अब मानते हैं कि मौजूदा सरकार का नैतिक अधिकार खत्म हो गया है।
इजरायल को अंदर से भी मिल रही मदद?
पूर्व इजरायली सुरक्षा प्रमुख जियोरा एलैंड का मानना है कि इजरायल को ईरान के कुछ आम लोगों और सैनिकों से मदद मिल रही है। उन्होंने कहा:
- कुछ स्थानीय लोगों ने शायद इजरायली ड्रोन की मदद की होगी।
- कुछ पारंपरिक ईरानी सैनिक भी बदलाव चाहते हैं।
- इजरायल अब खुलकर ईरानियों से कह रहा है कि वे शासन के खिलाफ उठ खड़े हों।
निर्वासित ईरानी नेता भी आगे आए
ईरान के पूर्व शाह के बेटे रेजा पहलवी और मोजाहिदीन-ए-खल्क (MeK) जैसे निर्वासित समूहों ने इस समय को बदलाव का मौका बताया है। लेकिन ये सभी विदेश में हैं और इनका असर सीमित है।
लेकिन क्या वास्तव में कुछ बदल सकता है?
बहुत से विशेषज्ञ मानते हैं कि बदलाव इतनी आसानी से नहीं होगा:
- ईरान के अंदर विरोध करने वाले लोग बिखरे हुए हैं – कोई धर्मनिरपेक्ष है, कोई शाही समर्थक, तो कोई अलगाववादी।
- शासन इन पर बहुत सख्ती से कार्रवाई करता है।
- बाहर से आए शासन परिवर्तन अक्सर अस्थिरता, गृहयुद्ध या नई तानाशाही लेकर आते हैं।
एक्सपर्ट सनम वकील का कहना है:
“अगर अमेरिका जैसे देश जमीनी युद्ध में शामिल नहीं होते, तो सिर्फ हवाई हमलों से शासन नहीं बदलेगा। और अगर शासन गिर भी गया, तो आगे क्या होगा – यह भी एक बड़ा सवाल है।”
नतीजा: उम्मीदें हैं, लेकिन रास्ता कठिन है
इस समय इजरायल और ईरान के बीच युद्ध छिड़ा हुआ है। बाहर से आ रहे संदेश, प्रतीक और ऑपरेशन “राइजिंग लायन” कुछ लोगों में उम्मीद जगा रहे हैं। लेकिन असली बदलाव – अगर होगा – तो वह ईरान के लोगों के अंदर से ही आएगा। और यह रास्ता आसान नहीं होगा।