भारतीय लेखिका बानू मुश्ताक ने अपनी अनुवादक दीपा भाष्थी के साथ मिलकर लिखी गई पुस्तक “हार्ट लैंप” के लिए अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीता है। यह पुरस्कार दुनिया भर के अनूदित अंग्रेज़ी साहित्य को दिया जाता है, और इस जीत के साथ मुश्ताक ने भारतीय साहित्य को एक नया गौरव दिलाया है। उनकी लेखनी महिलाओं के जीवन, जाति, सत्ता और उत्पीड़न जैसे जटिल विषयों को मजबूती से प्रस्तुत करती है।
यहाँ बानू मुश्ताक के बारे में 5 महत्वपूर्ण बातें जानिए:
1. अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली कन्नड़ लेखिका
कर्नाटक की 77 वर्षीय बानू मुश्ताक पहली कन्नड़ लेखिका हैं जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीता है। यह पुरस्कार अंग्रेज़ी में अनूदित सर्वश्रेष्ठ कथा साहित्य को प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है।
इस ऐतिहासिक पल को लेकर मुश्ताक ने कहा,
“यह एक हज़ार जुगनुओं की तरह लगता है जो एक ही आकाश को रोशन कर रहे हैं – संक्षिप्त, शानदार और पूरी तरह से सामूहिक।”
इससे पहले 2022 में, लेखिका गीतांजलि श्री और उनकी अनुवादक डेज़ी रॉकवेल को “रेत समाधि” (Tomb of Sand) के लिए यह सम्मान मिल चुका है। मुश्ताक की किताब इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को जीतने वाली दूसरी भारतीय पुस्तक बनी है।
2. महिला अधिकारों की मुखर आवाज़
लेखन के अलावा, बानू मुश्ताक महिला अधिकारों की प्रबल पक्षधर हैं। उन्होंने सामाजिक भेदभाव और धार्मिक पितृसत्ता के खिलाफ़ अपनी कहानियों के माध्यम से सवाल उठाए हैं।
उनका मानना है कि धर्म, समाज और राजनीति स्त्रियों से अंधी आज्ञाकारिता की अपेक्षा करती है और बदले में उन पर क्रूरता करती है।
अपने निजी जीवन में भी उन्होंने पितृसत्तात्मक मूल्यों को चुनौती दी और अपनी मर्ज़ी से विवाह कर सामाजिक रूढ़ियों का विरोध किया।
3. मिडिल स्कूल में शुरू हुई लेखकीय यात्रा
बानू मुश्ताक ने अपनी पहली लघु कहानी मिडिल स्कूल में लिखी थी। हालाँकि उन्होंने बहुत कम उम्र में लिखना शुरू कर दिया था, लेकिन 26 साल की उम्र में उनकी पहली कहानी कन्नड़ की लोकप्रिय पत्रिका प्रजामाता में छपी, जिससे उन्हें साहित्यिक पहचान मिली।
वे एक बड़े मुस्लिम परिवार में पली-बढ़ीं और उनके पिता ने हमेशा उनके लेखन और विचारों का समर्थन किया, यहाँ तक कि जब उन्होंने स्कूल की तानाशाही के खिलाफ़ आवाज़ उठाई।
4. प्रगतिशील आंदोलनों से प्रभावित लेखनी
मुश्ताक की लेखनी कर्नाटक के प्रगतिशील आंदोलनों से प्रेरित है। उन्होंने विभिन्न राज्यों की यात्रा की और खुद को ‘बंदया साहित्य आंदोलन’ से जोड़ा, जो जाति और वर्ग आधारित उत्पीड़न के खिलाफ़ एक साहित्यिक विरोध आंदोलन था।
संघर्षरत समाज के करीब रहने और उन्हें समझने से उन्हें कहानियों का मर्म मिला और उनकी लेखनी को एक सामाजिक दृष्टि प्राप्त हुई।
5. अन्य रचनाएँ और सम्मान
“हार्ट लैंप” के अलावा, बानू मुश्ताक ने अब तक:
- 6 लघु कहानी संग्रह,
- 1 उपन्यास,
- 1 निबंध संग्रह,
- और 1 कविता संग्रह लिखा है।
उन्हें कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार और दाना चिंतामणि अत्तिमब्बे पुरस्कार जैसे सम्मान मिल चुके हैं।
उनकी पाँच शुरुआती कहानियाँ 2013 में “हसीना मट्टू इथारा कथेगलु” नामक संकलन में प्रकाशित हुईं। 2023 में उनका एक और संग्रह “हेन्नु हद्दिना स्वयंवर” भी प्रकाशित हुआ।
बानू मुश्ताक की जीत केवल एक लेखिका की व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं की शक्ति, महिला सशक्तिकरण, और सामाजिक बदलाव की ओर एक बड़ा कदम है। उनकी लेखनी भविष्य की पीढ़ियों को साहस, संवेदना और विचारशीलता का रास्ता दिखाती रहेगी।