कनाडा के सरे शहर में स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर को 19 अप्रैल को खालिस्तानी चरमपंथियों द्वारा निशाना बनाया गया। मंदिर की दीवारों पर खालिस्तान समर्थक भित्तिचित्र स्प्रे-पेंट किए गए, जिससे कनाडा में बसे हिंदू समुदाय में भारी आक्रोश फैल गया है।
हिंदू चैंबर ऑफ कॉमर्स ने इस घटना की एक वीडियो क्लिप सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म x पर साझा करते हुए इस कृत्य को “हिंदूफोबिया” करार दिया।

एक हिंदू-कनाडाई संसद सदस्य ने भी इस घटना की आलोचना करते हुए कहा कि पिछले कुछ वर्षों से लगातार हिंदू मंदिरों पर हमले हो रहे हैं और यह घटना उसी कड़ी का हिस्सा है। उन्होंने इसे खालिस्तानी उग्रवाद के बढ़ते प्रभाव की भयावह निशानी बताया।
उन्होंने आगे कहा, “खालिस्तानी उग्रवाद अब एक गंभीर खतरा बनता जा रहा है। ये ताकतें सुसंगठित, अच्छी तरह से वित्तपोषित हैं और इनके पास राजनीतिक प्रभाव भी है। इनका मकसद पूरे कनाडा में हिंदू समुदाय की आवाज़ को दबाना और अपना वर्चस्व स्थापित करना है।”
इसी के समानांतर, वैंकूवर में स्थित रॉस स्ट्रीट गुरुद्वारे की दीवारों पर भी खालिस्तान समर्थक नारे जैसे “खालिस्तान जिंदाबाद” लिखे पाए गए। गुरुद्वारे का प्रबंधन करने वाली संस्था खालसा दीवान सोसाइटी (केडीएस) ने इस घटना की कड़ी निंदा की और इसे सिख अलगाववादियों के एक छोटे, कट्टरपंथी समूह का कार्य बताया।
केडीएस ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “यह कृत्य उन चरमपंथी ताकतों की साजिश का हिस्सा है जो कनाडा में सिख समुदाय के भीतर भय और विभाजन फैलाना चाहते हैं।”
हिंदू और सिख दोनों ही पूजा स्थलों पर हुई इस तोड़फोड़ ने दोनों समुदायों के लोगों को एकजुट कर दिया है। दोनों समुदायों ने अधिकारियों से तत्काल और कठोर कार्रवाई की मांग की है।
हिंदू-कनाडाई सांसद ने कहा, “अब समय आ गया है कि हिंदू-कनाडाई अपने सिख-कनाडाई भाइयों और बहनों के साथ मिलकर सरकार और प्रशासन से निर्णायक कदम उठाने की मांग करें।”
इन घटनाओं ने कनाडा में चरमपंथ की बढ़ती समस्या और इसके कारण सामाजिक सौहार्द्र पर पड़ रहे प्रभाव को लेकर गहरी चिंता पैदा कर दी है। हिंदू और सिख दोनों ही नेताओं ने स्पष्ट किया है कि ये घटनाएं डर फैलाने और सांप्रदायिक सद्भाव को कमजोर करने का प्रयास हैं। उन्होंने सरकार से अनुरोध किया है कि वह इस पर सख्ती से कार्रवाई करे ताकि नफरत फैलाने वाले ऐसे कृत्य अनियंत्रित न हो सकें।

