भारत की राजधानी दिल्ली में बुधवार को स्थानीय चुनाव हो रहे हैं। ये चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा हैं, क्योंकि उनकी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), पिछले एक दशक से भी अधिक समय से दिल्ली की सत्ता पर कब्जा करने में असफल रही है।
दिल्ली के 1.5 करोड़ से अधिक मतदाता 70 सदस्यीय विधानसभा के लिए अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करेंगे। आम आदमी पार्टी (आप), जो 2015 से सत्ता में है, शिक्षा और चिकित्सा सेवाओं में सुधार के लिए जानी जाती है। इस बार उसे भाजपा से कड़ी चुनौती मिल रही है, जो हाल ही में देश के वार्षिक बजट में की गई रिकॉर्ड कर कटौती के बाद मध्यम वर्ग में अपनी लोकप्रियता बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
दोनों ही पार्टियाँ चुनाव जीतने के लिए विभिन्न लोक-लुभावन वादों पर जोर दे रही हैं, जिसमें महिलाओं को नकद अनुदान और अन्य मुफ्त सुविधाएँ शामिल हैं। आम आदमी पार्टी ने पिछले एक दशक से कल्याणकारी योजनाओं को अपने प्रशासन का केंद्र बिंदु बनाया है, जिससे उसे गरीब और निम्न-मध्यम वर्ग के लोगों का समर्थन मिला है। हालांकि, पार्टी के नेता और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, जो भ्रष्टाचार विरोधी नेता के रूप में जाने जाते हैं, पिछले कुछ वर्षों से रिश्वतखोरी के आरोपों से घिरे हुए हैं। इससे उनकी सरकार की छवि पर असर पड़ा है।
दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज के प्रोफेसर संजय कुमार ने कहा, “भाजपा को फायदा हुआ है, जबकि आप की छवि को नुकसान पहुंचा है।”
कर कटौती से भाजपा को मिलेगा लाभ?
मोदी सरकार द्वारा हाल ही में दी गई कर छूट से भाजपा को दिल्ली में अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद मिल सकती है, जहाँ वह 1998 के बाद से सत्ता में नहीं आई है। रविवार को दिल्ली में एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “पूरा मध्यम वर्ग कह रहा है कि भारत के इतिहास में यह सबसे मध्यम वर्ग के अनुकूल बजट है।” इस दौरान भीड़ ने जोर-जोर से उनके समर्थन में नारे लगाए।
प्रोफेसर कुमार के अनुसार, “दिल्ली एक ऐसा शहर है जहां मध्यम वर्ग की बड़ी आबादी है,” इसलिए कर कटौती का कुछ प्रभाव पड़ेगा। हालांकि, यह भाजपा के लिए निर्णायक साबित नहीं होगा, क्योंकि यह वर्ग पहले से ही भाजपा के समर्थन में झुका हुआ है।
अगर भाजपा दिल्ली में जीतती है, तो यह पिछले चार महीनों में हरियाणा और महाराष्ट्र में जीत के बाद एक और चुनावी सफलता होगी, जिससे उसे पिछले साल के राष्ट्रीय चुनावों में मिली हार से उबरने में मदद मिलेगी। दूसरी ओर, अगर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सत्ता में बनी रहती है, तो इसका मतलब होगा कि उनके कल्याणकारी एजेंडे को अभी भी जनता का समर्थन मिल रहा है, भले ही उनकी पार्टी की छवि हाल के महीनों में खराब हुई हो।
भ्रष्टाचार के आरोप और राजनीतिक संघर्ष
पिछले दस वर्षों से भाजपा और आप के बीच राजनीतिक टकराव जारी है, जिसका असर दिल्ली के प्रशासन पर भी पड़ा है। हाल ही में शराब नीति घोटाले के आरोपों के कारण आप सरकार दबाव में है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया समेत पार्टी के कई नेताओं को महीनों तक जेल में रहना पड़ा है।
सितंबर में केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया, लेकिन उन्होंने इस साल फिर से वापसी करने का वादा किया है। आम आदमी पार्टी ने इन सभी आरोपों को खारिज किया है और दावा किया है कि यह भाजपा की राजनीतिक साजिश है, क्योंकि केंद्र सरकार संघीय जांच एजेंसियों को नियंत्रित करती है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर आम आदमी पार्टी चुनाव जीतती है, तो भाजपा के साथ उसका संघर्ष जारी रहेगा और इससे राजधानी में प्रशासनिक गतिरोध की स्थिति पैदा हो सकती है।
दिल्ली में सत्ता का असली नियंत्रण किसके पास?
हालांकि दिल्ली की सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है, लेकिन इसकी शक्तियाँ सीमित हैं। दिल्ली पुलिस पर राज्य सरकार का नियंत्रण नहीं है, और केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी ही प्रशासनिक निर्णयों और वित्तीय व्यय का नियंत्रण रखते हैं।
अहमदाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नीलांजन सरकार के अनुसार, “भाजपा कभी पीछे नहीं हटती। अगर आम आदमी पार्टी बड़ी जीत हासिल करती है, तो भाजपा और अधिक आक्रामक रुख अपनाएगी।”
नतीजों का प्रभाव
अगर भाजपा इस चुनाव में जीत हासिल करती है, तो यह उसकी हालिया कर कटौती और राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाएगा। वहीं, अगर आम आदमी पार्टी सत्ता में बनी रहती है, तो यह इस बात का प्रमाण होगा कि कल्याणकारी योजनाओं की लोकप्रियता अब भी बनी हुई है, भले ही पार्टी को हाल के महीनों में कई विवादों का सामना करना पड़ा हो।
अब देखना यह होगा कि दिल्ली के मतदाता किन मुद्दों को प्राथमिकता देते हैं – मोदी सरकार द्वारा दी गई कर राहत, भाजपा की राष्ट्रवादी राजनीति, या फिर आम आदमी पार्टी की कल्याणकारी योजनाएँ।