आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में सिंगल स्क्रीन थिएटर चलाने वाले प्रदर्शक इन दिनों विरोध के मूड में हैं। वे तेलुगु फिल्म निर्माताओं और वितरकों के साथ टकराव की स्थिति में आ गए हैं। दोनों राज्यों में ऐसे करीब 1500 सिंगल स्क्रीन थिएटर हैं, हालांकि मल्टीप्लेक्स की संख्या भी कम नहीं है। पिछले बीस वर्षों में कई छोटे थिएटर या तो मल्टीप्लेक्स में तब्दील हो चुके हैं या पूरी तरह से बंद हो गए हैं। मौजूदा समय में सिंगल स्क्रीन थिएटर खुद को अस्तित्व के संकट में पा रहे हैं और इसी वजह से वे राजस्व मॉडल में बदलाव की मांग कर रहे हैं।
वर्तमान व्यवस्था के तहत, सिंगल स्क्रीन थिएटर को एक निश्चित अवधि के लिए फिल्मों की स्क्रीनिंग का अधिकार देने के बदले एक तय किराया देना होता है। वहीं दूसरी ओर, मल्टीप्लेक्स में टिकट बिक्री से होने वाली कमाई का एक प्रतिशत वितरकों और निर्माताओं को जाता है। अब सिंगल स्क्रीन थिएटर मालिक भी यही राजस्व-साझाकरण (Revenue Sharing) मॉडल अपनाने की मांग कर रहे हैं। हाल ही में प्रदर्शकों की एक बैठक हुई, जिसमें इस मांग को प्रमुखता से उठाया गया। उन्होंने फिल्म निर्माताओं और वितरकों के साथ बातचीत की शुरुआत भी कर दी है। हालांकि, इंडस्ट्री के कुछ अनुभवी लोगों का मानना है कि यह समाधान सिर्फ अस्थायी होगा और लंबे समय में इससे कोई ठोस फायदा नहीं होगा।
प्रदर्शकों का कहना है कि वे इस मॉडल को इसलिए अपनाना चाहते हैं क्योंकि अब ज्यादा बड़ी फिल्में नहीं बन रहीं। जब कोई स्टार वाली फिल्म रिलीज होती है, तो उससे उन्हें अच्छी कमाई हो जाती है। स्टार फिल्मों को न सिर्फ बेहतर शोज़ मिलते हैं, बल्कि उनका कलेक्शन भी मजबूत होता है। ऐसे में अगर राजस्व साझाकरण मॉडल लागू होता है तो सिंगल स्क्रीन थिएटर को राहत मिल सकती है। लेकिन इस मॉडल का एक नुकसान यह भी है कि छोटी और कम बजट वाली फिल्मों को इसका फायदा नहीं मिलेगा, क्योंकि उनका कलेक्शन बहुत कम होता है। इसके चलते सिंगल स्क्रीन थिएटर सिर्फ स्टार-ड्रिवन फिल्मों को तरजीह देंगे और छोटी फिल्में हाशिए पर चली जाएंगी। एक फिल्म इंडस्ट्री सूत्र ने कहा, “अगर ऐसा हुआ तो सिंगल स्क्रीन अब बराबरी का खेल नहीं रह जाएगा।”
प्रदर्शकों की एक और चिंता ओटीटी प्लेटफॉर्म्स से जुड़ी है। उनका कहना है कि ओटीटी रिलीज के चलते सिनेमाघरों में फिल्मों की स्क्रीनिंग अवधि कम कर दी जाती है, जिससे थिएटर को नुकसान होता है। वे इस प्रथा का विरोध कर रहे हैं और चाहते हैं कि इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा हो।
इसी विरोध के तहत आंध्र प्रदेश के कई प्रदर्शकों ने ऐलान किया है कि अगर उनकी मांगों को पूरा नहीं किया गया तो वे 1 जून से थिएटर बंद कर देंगे। ऐसा हुआ तो आने वाले दिनों में अन्य थिएटर मालिक भी इस आंदोलन में शामिल हो सकते हैं। अगर यह आंदोलन लंबा चला, तो जून के दूसरे सप्ताह में रिलीज होने वाली अभिनेता और उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण की फिल्म ‘हरि हर वीरा मल्लू’ पर भी इसका असर पड़ सकता है।
इस पूरे घटनाक्रम से साफ है कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की फिल्म इंडस्ट्री में एक बड़ा बदलाव दस्तक दे रहा है। अब देखना होगा कि फिल्म निर्माता, वितरक और प्रदर्शक मिलकर कोई साझा हल निकाल पाते हैं या नहीं।