Saturday, November 1, 2025

अन्नामाचार्य कीर्तन की आवाज़ खामोश हो गई

प्रसिद्ध संगीतकार और टीटीडी (तिरुमला तिरुपति देवस्थानम) के अस्थायी विद्वान गरिमेला बालकृष्ण प्रसाद का 76 वर्ष की आयु में रविवार शाम हृदयाघात के कारण निधन हो गया। वह अन्नामाचार्य संकीर्तन प्रस्तुत करने में अग्रणी माने जाते थे और शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में उनकी एक विशिष्ट पहचान थी।

बालकृष्ण प्रसाद ने अपना पूरा जीवन संगीत को समर्पित किया और शास्त्रीय संगीत में अमिट विरासत छोड़ी। 76 वर्ष की उम्र में भी वह पूरी तरह सक्रिय थे और हर महीने के तीसरे शुक्रवार को तिरुमाला में सहस्र दीपालंकार सेवा तथा चौथे शुक्रवार को तिरुचनूर में श्री पद्मावती अम्मावारी उनजल सेवा में नियमित रूप से अपनी प्रस्तुति देते थे। टीटीडी के लिए उनका अंतिम प्रदर्शन 28 फरवरी को हुआ था। अपने निधन से कुछ ही दिन पहले उन्होंने हैदराबाद के यदाद्री मंदिर में भी भक्ति संगीत का गायन किया था।

उनके परिवार में उनकी पत्नी राधा और दो बेटे जीएस पवन कुमार तथा जीवीएन अनिला कुमार हैं, जो वर्तमान में अमेरिका में रहते हैं। उनके सोमवार रात तक भारत वापस आने की उम्मीद है।

गरिमेला बालकृष्ण प्रसाद एक प्रतिभाशाली वाग्गेयकारा (गायक-संगीतकार) थे, जिन्होंने 400 से अधिक शास्त्रीय कीर्तन रचे और विशेष रूप से अन्नामाचार्य कीर्तन पर 5,000 से अधिक संगीत कार्यक्रम आयोजित किए। संगीत साहित्य में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा, जिसमें ‘अंजनेय कृति मणिमाला’, ‘श्री गणेश कृति मणिमाला’, और ‘नवग्रहादि कृति मणिमाला’ जैसी कई पुस्तकें शामिल हैं। उन्होंने टीटीडी के लिए 12 महत्वपूर्ण प्रकाशन भी तैयार किए, जिनमें अन्नमय कीर्तन संग्रहित थे।

बालकृष्ण प्रसाद ने ‘अन्नमय्या संकीर्तन संजीवी’ के दो खंड प्रकाशित किए और 1,000 से अधिक संकीर्तनों को संगीतबद्ध किया। उनके इस महत्वपूर्ण योगदान को सम्मानित करते हुए उन्हें फरवरी 2023 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

संगीत की शिक्षा को आगे बढ़ाने और अन्नामाचार्य संकीर्तन परंपरा की निरंतरता बनाए रखने के लिए, उन्होंने टीटीडी के दो-वर्षीय छात्रवृत्ति कार्यक्रम के माध्यम से 50 से अधिक छात्रों को प्रशिक्षित किया। उनके मंत्रमुग्ध कर देने वाले प्रदर्शन दर्शकों को भक्ति रस में डुबो देते थे और उनकी आवाज़ तिरुमाला मंदिर के आध्यात्मिक वातावरण का एक अविभाज्य हिस्सा बन चुकी थी।

गरिमेला बालकृष्ण प्रसाद का निधन न केवल शास्त्रीय संगीत जगत बल्कि भक्तिमय संगीत परंपरा के लिए भी एक अपूरणीय क्षति है।

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