- जम्मू-कश्मीर के 1900 और अन्य राज्यों के 100 भक्त कर पाएंगे वैष्णोदेवी के दर्शन
- करीब 700 साल पहले वैष्णोदेवी के भक्त पं. श्रीधर ने की थी गुफा की खोज
- भक्तों को मास्क पहनना होगा, सोशल डिस्टेंसिंग और सैनिटाइजेशन का पालन करना होगा
कोरोना काल में आम भक्तों के लिए करीब 6 महीने से बंद माता वैष्णोदेवी का मंदिर 16 अगस्त से सभी भक्तों के लिए खुल रहा है। शुरुआती दिनों में केवल 2 हजार लोग ही दर्शन कर पाएंगे। कोरोना से पहले यहां एक दिन में 50-60 हजार लोग रोजाना दर्शन करते थे।
वैष्णोदेवी मंदिर जम्मू-कश्मीर की त्रिकुटा पहाड़ियों पर स्थित है। मंदिर करीब 5200 फीट ऊंचाई पर और जम्मू से 61 किमी और कटरा से 13 किमी दूर है। वैष्णो देवी की तीन पिंडियों में देवी काली, देवी सरस्वती और देवी लक्ष्मी के रूप में गुफा में विराजित हैं। यात्रा शुरू होने के बाद पहले सप्ताह में 1,900 भक्त जम्मू-कश्मीर के और 100 भक्त अन्य राज्यों के रोज दर्शन कर सकेंगे।
श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के सीईओ रमेश कुमार ने बताया कि यात्रा रविवार (16 अगस्त) से शुरू होनी है। दर्शन के लिए भक्तों को ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना होगा। सभी भक्तों के लिए फोन में आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करना अनिवार्य होगा। मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और सैनिटाइजेशन का ध्यान रखना होगा।
यात्रियों की थर्मल स्कैनिंग भी की जाएगी। 10 साल से कम उम्र के बच्चे, गर्भवती महिलाएं, 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को दर्शन करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। साथ ही, जिन लोगों में कोविड-19 से जुड़े कोई भी लक्षण दिखाई देते हैं, उन्हें दर्शन करने से रोक दिया जाएगा।
कटरा से बाणगंगा, अर्द्ध-कुंवारी और सांझीछत के रास्तों से भवन पहुंचा जा सकेगा। इसके बाद भवन से आने के लिए हिमकोटि और ताराकोट मार्ग से लौटना होगा। अन्य राज्यों के दर्शनार्थियों की कोरोनावायरस की निगेटिव रिपोर्ट हेलीपैड और दर्शनी ड्योढ़ी पर चेक की जाएगी।
जिन यात्रियों के पास कोविड-19 की निगेटिव रिपोर्ट होगी, उन्हें ही मंदिर जाने दिया जाएगा। अभी पिट्ठुओं, पालकियों और खच्चरों की व्यवस्था शुरू नहीं की जा रही है। यात्रियों की सुविधा के लिए बैटरी वाले वाहन, रोपवे और हेलीकॉप्टर सेवा शुरू की जाएगी।
मंदिर का प्राचीन महत्व
कटरा में हंसाली गांव है। इस गांव में वैष्णोंदेवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। नवरात्रि में एक दिन उन्होंने पूजा के लिए कुंवारी कन्याओं को आमंत्रित किया। यहां वैष्णोदेवी कन्या वेश में उपस्थित हुई थीं। पूजा के बाद वैष्णो देवी ने श्रीधर से कहा कि गांव के लोगों को अपने घर भंडारे के लिए निमंत्रण दे आओ। श्रीधर ने उस कन्या की बात मानकर गांव के लोगों को भंडारे में बुला लिया।
उस समय गुरु गोरखनाथ के शिष्य भैरवनाथ को भी शिष्यों सहित भोजन का निमंत्रण दिया। गांव के लोग श्रीधर के घर भंडारे के लिए पहुंच गए। तब कन्या रूप में वैष्णो देवी ने भोजन परोसा। कन्या से भैरवनाथ ने खीर-पूरी की जगह मांस और मदिरा मांगी। कन्या ने मना कर दिया। लेकिन, भैरवनाथ नहीं माना। भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब मां रूप बदलकर त्रिकूट पर्वत की ओर उड़ चली।
भैरवनाथ से छिपकर इस दौरान माता ने एक गुफा में प्रवेश कर नौ महीने तक तपस्या की। यह गुफा आज भी आद्यकुमारी, आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है। 9 माह बाद कन्या ने गुफा के बाहर देवी का रूप धारण किया। माता ने भैरवनाथ को वापस जाने के लिए कहा। लेकिन, वो नहीं माना।
तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया। भैरवनाथ का सिर कटकर गुफा से 8 किमी दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा। आज उस स्थान को भैरों नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। जिस स्थान पर मां वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान पवित्र गुफा यानी भवन के नाम से जाना जाता है।
पवित्र गुफा की खोज 700 साल पहले हुई
श्री माता वैष्णो देवी मंदिर की खोज के संबंध कई मान्यताएं हैं। लेकिन, माता वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड की अधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक लगभग 700 साल पहले मंदिर की खोज पं. श्रीधर ने की थी। पं. श्रीधर के यहां भण्डारे में माता ने कृपा की थी। देवी कन्या के रूप मे आई थीं और भैरवनाथ से बचने के लिए भंडारे को बीच में ही छोड़कर चली गई थीं।
तब श्रीधर दुखी रहने लगा और उसने भोजन-जल तक छोड़ दिया। उस समय देवी श्रीधर के सपने में प्रकट हुई और गुफा तक आने का रास्ता बताया। देवी के द्वारा बताए गए रास्ते से श्रीधर वैष्णोदेवी की गुफा तक पहुंच गए थे।
गुफा, रास्ता और मान्यताएं
वैष्णोदेवी एक गुफा में विराजित हैं। जितना महत्व वैष्णो देवी का है, उतना ही महत्व यहां की गुफा का भी है। देवी के दर्शन के लिए अभी जिस रास्ते का इस्तेमाल किया जाता है, वह प्राकृतिक रास्ता नहीं है। नए रास्ते का निर्माण 1977 में किया गया था।
जब मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या कम होती है, तब प्राचीन गुफा का द्वार खोला जाता है और भक्त पुराने रास्ते से माता के दरबार तक पहुंच सकते हैं। प्राचीन गुफा में पवित्र गंगा जल बहता रहता है। वैष्णो देवी मंदिर पहुंचने के लिए आदि कुंवारी या आद्यकुंवारी होकर जाना पड़ता है। यहीं एक और गुफा भी है, जिसे गर्भ-जून कहते हैं।
आरतियों का समय
दिन में दो बार देवी मां की आरती होती है। पहली आरती सूर्योदय से थोड़ी देर पहले होती है। दूसरी आरती शाम को सूर्यास्त के एकदम बाद की जाती है।
कैसे पहुंच सकते हैं?
एयरपोर्ट- वैष्णो देवी मंदिर का करीबी एयरपोर्ट जम्मू के रानीबाग में है। रानीबाग से बस या निजी कार से कटरा पहुंच सकते हैं।
रेलवे स्टेशन – वैष्णो देवी मंदिर के करीबी दो रेलवे स्टेशन हैं, एक जम्मू और दूसरा कटरा है। देशभर के सभी मुख्य शहरों से जम्मू के लिए ट्रैन मिल जाती है। अब कटरा में भी रेलवे स्टेशन बन गया है। अभी कोरोना की वजह से कटरा तक ट्रेनें नहीं शुरू हुई है। इस वजह से जम्मू से प्राइवेट टैक्सी से वैष्णोदेवी तक पहुंचना होगा।
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