Sunday, November 16, 2025

विश्व बैंक ने वित्त वर्ष 2026 के लिए भारत की वृद्धि दर घटाकर 6.3% की

विश्व बैंक ने बुधवार को कहा कि वैश्विक आर्थिक कमजोरी और नीति संबंधी अनिश्चितताओं के चलते वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर के पूर्वानुमान को घटाकर 6.3% कर दिया गया है। इससे पहले, बैंक ने इस अवधि के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.7% रहने का अनुमान लगाया था।

विश्व बैंक की दक्षिण एशिया विकास अपडेट रिपोर्ट, जिसका शीर्षक “Taxing Times” है, में बताया गया है कि वित्त वर्ष 2024-25 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर अपेक्षा के अनुरूप नहीं रही। इसके पीछे मुख्य कारण निजी निवेश की धीमी वृद्धि और सरकारी पूंजीगत व्यय में लक्ष्यों की पूर्ति न होना है।

रिपोर्ट में कहा गया है, “भारत में मौद्रिक सहजता (monetary easing) और विनियामक सरलीकरण (regulatory streamlining) से निजी निवेश को जो लाभ होने थे, वे वैश्विक आर्थिक कमजोरी और नीति अनिश्चितता के कारण सीमित हो गए हैं।” इसके चलते, वित्त वर्ष 2024-25 की अनुमानित वृद्धि दर 6.5% से घटकर वित्त वर्ष 2025-26 में 6.3% रहने की उम्मीद है।

इससे एक दिन पहले, मंगलवार (22 अप्रैल) को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भी भारत की चालू वित्त वर्ष की जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान को घटा दिया था। पहले यह 6.5% था, जिसे घटाकर अब 6.2% कर दिया गया है।

विश्व बैंक की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कर कटौती से निजी खपत को कुछ समर्थन मिल सकता है, और अगर सार्वजनिक निवेश योजनाओं का बेहतर कार्यान्वयन होता है, तो इससे सरकारी निवेश को भी बल मिलेगा। हालांकि, व्यापार नीति में बदलाव और वैश्विक मांग में गिरावट के कारण निर्यात को नुकसान हो सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण एशिया में समग्र विकास की संभावनाएं भी कमज़ोर हुई हैं, और क्षेत्र के अधिकांश देशों के आर्थिक अनुमानों में गिरावट आई है। वैश्विक अनिश्चितता के चलते ये आंकड़े संशोधित किए गए हैं।

विश्व बैंक ने क्षेत्रीय विकास दर को लेकर भी अनुमान प्रस्तुत किया है। वर्ष 2025 में दक्षिण एशिया की समग्र वृद्धि दर 5.8% रहने की उम्मीद है, जो पिछले अक्टूबर के अनुमान से 0.4 प्रतिशत कम है। वर्ष 2026 में यह दर बढ़कर 6.1% हो सकती है। हालांकि, यह वृद्धि अत्यधिक अनिश्चित वैश्विक परिदृश्य, सीमित राजकोषीय संसाधनों और घरेलू आर्थिक कमजोरियों के जोखिमों से प्रभावित हो सकती है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि दक्षिण एशिया में औसतन कर दरें विकासशील देशों की तुलना में अधिक हैं, लेकिन कर राजस्व अपेक्षाकृत कम है। वर्ष 2019 से 2023 के बीच, इस क्षेत्र में सरकारी राजस्व सकल घरेलू उत्पाद का औसतन 18% रहा, जबकि अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में यह 24% था। रिपोर्ट में उपभोग कर, कॉर्पोरेट कर और व्यक्तिगत आय करों में कमी को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है।

अन्य दक्षिण एशियाई देशों की स्थिति भी रिपोर्ट में उजागर की गई है:

  • बांग्लादेश: राजनीतिक अनिश्चितता और आर्थिक चुनौतियों के चलते वित्त वर्ष 2024-25 में वृद्धि दर 3.3% रहने की उम्मीद है, और 2025-26 में यह 4.9% तक सीमित रह सकती है।
  • पाकिस्तान: प्राकृतिक आपदाओं, बाहरी आर्थिक दबावों और मुद्रास्फीति के बीच संघर्ष करते हुए पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था वर्ष 2024-25 में 2.7% और 2025-26 में 3.1% की वृद्धि कर सकती है।
  • श्रीलंका: ऋण पुनर्गठन में प्रगति और बढ़ते निवेश के चलते 2025 में श्रीलंका की विकास दर 3.5% तक पहुँच सकती है, हालांकि 2026 में यह घटकर 3.1% रह जाने का अनुमान है।

इस रिपोर्ट से यह स्पष्ट होता है कि दक्षिण एशिया के देशों के लिए वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता और घरेलू चुनौतियाँ प्रमुख चिंता के विषय बने हुए हैं। इनसे निपटने के लिए राजस्व संग्रहण में सुधार और मजबूत नीति उपायों की आवश्यकता है।

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