29 मार्च, 2025 को म्यांमार में आए 7.7 तीव्रता के विनाशकारी भूकंप के बाद, भारतीय वायु सेना (IAF) ने हिंडन एयरबेस से राहत सामग्री से भरे C-130J हरक्यूलिस विमानों को सहायता के लिए भेजा। इन विमानों के पायलटों के लिए म्यांमार के हवाई क्षेत्र में GPS स्पूफिंग का सामना करना एक अप्रत्याशित और चौंकाने वाला अनुभव रहा। हालांकि, उनकी पेशेवर दक्षता और प्रशिक्षण ने उन्हें संकट के क्षणों में सही निर्णय लेने में मदद की – उन्होंने तुरंत बैकअप नेविगेशन सिस्टम पर स्विच किया और विमान व चालक दल दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित की।
विदेशी स्रोत से इलेक्ट्रॉनिक हस्तक्षेप
इस प्रकार की इलेक्ट्रॉनिक छेड़छाड़ की प्रकृति और समय स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि यह हस्तक्षेप किसी विदेशी स्रोत द्वारा किया गया था। यह एक गंभीर चेतावनी है उन लोगों के लिए जिन्होंने मानवीय सहायता मिशन पर लगे एक सैन्य विमान को बाधित करने की कोशिश की।
म्यांमार में GPS स्पूफिंग की पुष्टि
GPSJam.org वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार, जो दुनियाभर में GPS व्यवधान की जानकारी देता है, 29 मार्च, 2025 को म्यांमार के दक्षिणी हिस्से विशेषकर यांगून और इरावदी डेल्टा क्षेत्र में भारी GPS हस्तक्षेप दर्ज किया गया। स्क्रीनशॉट्स में यह हस्तक्षेप लाल और नीले रंगों से चिह्नित क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जो यह दर्शाता है कि यह एक सामान्य तकनीकी खराबी नहीं थी, बल्कि एक केंद्रित और योजनाबद्ध इलेक्ट्रॉनिक हस्तक्षेप था।
GPS स्पूफिंग, सामान्य GPS जामिंग की तुलना में कहीं अधिक खतरनाक है, क्योंकि इसमें गलत संकेत प्रसारित किए जाते हैं, जिससे विमान की नेविगेशन प्रणाली ग़लत लोकेशन का अनुमान लगाने लगती है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह तकनीक विमान की जड़त्वीय संदर्भ प्रणाली (Inertial Reference System) को भी प्रभावित कर सकती है, जिससे विमान की दिशा और स्थिति निर्धारण की क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है।
कोको द्वीप समूह की भूमिका पर संदेह
दिलचस्प बात यह है कि GPS स्पूफिंग का यह क्षेत्र कोको द्वीप समूह के नजदीक स्थित है, जो भले ही म्यांमार के नियंत्रण में हैं, परंतु लंबे समय से इन द्वीपों पर चीन द्वारा बनाए गए सिग्नल इंटेलिजेंस (SIGINT) और रडार अवसंरचना की अटकलें लगाई जाती रही हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से कुछ ही सौ किलोमीटर उत्तर में स्थित कोको द्वीप, GPS हस्तक्षेप वाले क्षेत्रों से लगभग 300–400 किलोमीटर की दूरी पर है। यदि यहाँ इलेक्ट्रॉनिक युद्धक प्रणाली मौजूद हैं, तो यह म्यांमार के मुख्यभूमि हवाई क्षेत्र को भी प्रभावित कर सकती हैं।
GPSJam.org के डेटा से यह भी संकेत मिलता है कि यह हस्तक्षेप जानबूझकर किया गया है – विशेष रूप से जब आसपास के क्षेत्रों में ऐसा कोई व्यवधान नहीं दिखाई देता। यह दर्शाता है कि यह कोई आकस्मिक घटना नहीं थी, बल्कि एक रणनीतिक और लक्षित प्रयास था, संभवतः किसी सैन्य या खुफिया एजेंसी द्वारा।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में स्पूफिंग
मध्य पूर्व और पूर्वी यूरोप जैसे तनावग्रस्त क्षेत्रों में GPS स्पूफिंग की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। उदाहरणस्वरूप, पश्चिम एशिया में पायलटों ने बताया कि उनके विमान फर्जी GPS संकेतों के कारण सैकड़ों मील तक भटक गए। इसी प्रकार, इज़राइल ने गाजा संघर्ष के दौरान मिसाइल से बचने के लिए GPS स्पूफिंग का इस्तेमाल किया।
उत्तरी यूरोप में, यूक्रेन संघर्ष के संदर्भ में रूस पर GPS स्पूफिंग गतिविधियों का संदेह जताया गया है। टेक्सास विश्वविद्यालय के प्रोफेसर टॉड हम्फ्रीज़ के अनुसार, स्पूफिंग अब सैन्य रणनीति का एक अहम हिस्सा बन चुका है।
IAF की पुष्टि और आगे की चेतावनी
14 अप्रैल, 2025 को भारतीय वायुसेना ने एक आधिकारिक बयान में स्वीकार किया कि 29 मार्च को म्यांमार के पास उड़ान भरते समय उनके एक परिवहन विमान को “अस्थायी नेविगेशनल विसंगतियों” का सामना करना पड़ा था। इस बयान ने उस दिन हुए GPS स्पूफिंग की रिपोर्टों को और अधिक पुष्टि दी। यह तथ्य कि एक सैन्य विमान, जो उन्नत बैकअप सिस्टम से लैस होता है, ऐसी विसंगतियों की पुष्टि करता है – यह दिखाता है कि स्पूफिंग एक बेहद उन्नत और केंद्रित प्रयास था।
इस घटना के आलोक में, यह स्पष्ट है कि कोको द्वीप समूह जैसे रणनीतिक स्थान केवल भू-राजनीतिक रूप से ही महत्वपूर्ण नहीं हैं, बल्कि अब वे इलेक्ट्रॉनिक युद्ध का भी संभावित केंद्र बन चुके हैं। इस प्रकार की गतिविधियां क्षेत्रीय हवाई सुरक्षा के लिए गंभीर खतरे पैदा करती हैं।
म्यांमार में IAF विमान को लक्षित किया गया GPS स्पूफिंग का यह मामला एक व्यापक वैश्विक प्रवृत्ति का हिस्सा है, जहाँ सैन्य और नागरिक नेविगेशन प्रणालियों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से बाधित किया जा रहा है। कोको द्वीप समूह की संभावित भूमिका, स्पूफिंग के क्षेत्रीय और वैश्विक उदाहरणों से मिलता-जुलता पैटर्न, और IAF की पुष्टि – यह सब इस बात की ओर संकेत करता है कि यह कोई अलग-थलग घटना नहीं थी, बल्कि एक बड़ी रणनीतिक योजना का हिस्सा हो सकती है। ऐसे में भारत और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के लिए यह आवश्यक है कि वे न केवल इन तकनीकी खतरों के प्रति सतर्क रहें, बल्कि प्रभावी जवाबी उपायों को भी सक्रिय करें।