Sunday, April 27, 2025

द्वारका पर ASI की नई खोज: समुद्र के भीतर से उठते इतिहास के रहस्य

भारत के समृद्ध “सांस्कृतिक इतिहास” का एक महत्वपूर्ण अध्याय मानी जाने वाली द्वारका नगरी पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने एक नई रोशनी डालने का प्रयास शुरू किया है। यह पहल पानी के भीतर अभियान चलाकर तथा बरामद पुरावशेषों के वैज्ञानिक विश्लेषण के माध्यम से वहां की प्राचीनता का पता लगाने के लिए की जा रही है।

ASI के अंडरवाटर आर्कियोलॉजी विंग (UAW) की नौ सदस्यीय टीम ने हाल ही में गुजरात स्थित द्वारका और बेत द्वारका में तटवर्ती व अपतटीय अभियान चलाए हैं। इस अध्ययन का उद्देश्य इन क्षेत्रों में जलमग्न पुरातात्विक अवशेषों की खोज, दस्तावेजीकरण और अध्ययन करना है। साथ ही, समुद्री तलछट, पुरातात्विक तथा अन्य जमा के वैज्ञानिक विश्लेषण के माध्यम से इन वस्तुओं की प्राचीनता को समझने का प्रयास किया जा रहा है।

बेत द्वारका, जिसे भगवान श्रीकृष्ण का प्राचीन निवास स्थान माना जाता है, गुजरात के तट से दूर एक द्वीप पर स्थित है और यहां प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर भी है।

इस वर्ष फरवरी में ASI की पांच सदस्यीय टीम ने द्वारका के पूर्वी हिस्से में स्थित गोमती क्रीक के दक्षिण में एक संक्षिप्त फील्डवर्क किया था। इस अभियान का उद्देश्य पहले से पहचाने गए क्षेत्रों की वर्तमान स्थिति का निरीक्षण करना और आगे की खोज के लिए संभावित स्थानों की पहचान करना था। चयनित क्षेत्रों का दस्तावेजीकरण किया गया और प्रमुख विशेषताओं की फोटोग्राफी की गई।

ASI के अतिरिक्त महानिदेशक प्रोफेसर आलोक त्रिपाठी, जो इस परियोजना का नेतृत्व कर रहे हैं, ने बताया, “द्वारका ऐतिहासिक, पुरातात्विक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसका उल्लेख प्राचीन साहित्य में मिलता है और यह सदैव से अनुसंधान का केंद्र रहा है।”

पहले के प्रयास

2005 से 2007 के बीच, ASI के अंडरवाटर विंग ने द्वारका में व्यवस्थित पुरातात्विक जांच की थी। तटवर्ती और अपतटीय दोनों क्षेत्रों में की गई इन खुदाइयों से प्राचीन मूर्तियां, पत्थर के लंगर और अन्य ऐतिहासिक महत्व की वस्तुएं प्राप्त हुई थीं।

इन अभियानों में भारतीय नौसेना के गोताखोरों के सहयोग से जलमग्न क्षेत्रों में सीमित दायरे में खुदाई की गई थी। खुदाई के लिए क्षेत्र को विधिवत चिह्नित किया गया और योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया गया। खुदाई के दौरान जलमग्न अवशेषों को मोटी कैल्केरियस और वनस्पति जमा से सावधानीपूर्वक साफ किया गया।

2007 में, द्वारकाधीश मंदिर के उत्तरी द्वार के पास एक छोटे क्षेत्र की खुदाई की गई थी। इस दौरान लगभग 10 मीटर गहराई तक 26 परतों में खुदाई की गई, जिसमें लोहे और तांबे की वस्तुएं, मनके, अंगूठियां और मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए। इन पुरावशेषों का गहन अध्ययन किया गया।

वर्तमान परियोजना

वर्तमान अध्ययन में ओखामंडल क्षेत्र के विस्तृत क्षेत्र को कवर करने की योजना है। पुरातत्वविद संभावित नए स्थलों की तलाश कर रहे हैं ताकि द्वारका के इतिहास को और बेहतर समझा जा सके। प्रो. त्रिपाठी के अनुसार, यह अध्ययन पुरातात्विक अन्वेषण, स्थलों की पहचान, वैज्ञानिक विश्लेषण, गोताखोरी अभियान, संग्रहण और दस्तावेजीकरण को शामिल करता है।

इस अभियान के महत्व को और अधिक बल उस समय मिला जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी में गहरे समुद्र में गोता लगाकर द्वारकाधीश मंदिर में पूजा की और इसे “दिव्य अनुभव” बताया। इसके अलावा, उन्होंने ओखा को बेत द्वारका से जोड़ने वाले चार लेन के केबल-स्टेड ब्रिज “सुदर्शन सेतु” का उद्घाटन भी किया।

भविष्य को देखते हुए, गुजरात सरकार ने भी द्वारका में एक पनडुब्बी सेवा शुरू करने की योजना बनाई है, जिससे श्रद्धालु प्राचीन नगरी के जलमग्न अवशेषों को स्वयं देख सकें।

द्वारका की यह नई खोज परियोजना केवल अतीत को जानने का ही प्रयास नहीं है, बल्कि यह भारत के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक गौरव को नए सिरे से प्रस्तुत करने का भी माध्यम बन रही है। जैसे-जैसे समुद्र की गहराइयों से इतिहास बाहर आएगा, वैसे-वैसे भारत की प्राचीन सभ्यता की कहानी और अधिक समृद्ध होती जाएगी।

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