बॉलीवुड और टेलीविज़न दोनों में अपने दमदार अभिनय से एक अलग पहचान बनाने वाली अभिनेत्री दीपशिखा नागपाल ने ‘कोयला’ और ‘बादशाह’ जैसी फिल्मों में अपने प्रभावशाली किरदारों से दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई। अक्सर नकारात्मक और मजबूत भूमिकाएं निभाने वाली दीपशिखा की पर्दे की सफलता के पीछे एक गहरा निजी संघर्ष छिपा हुआ है। एक हालिया बातचीत में उन्होंने खुलकर बताया कि किस तरह उनकी ऑन-स्क्रीन छवि ने न केवल दर्शकों, बल्कि समाज और उनके अपने परिवार से भी कठोर प्रतिक्रियाएं बटोरीं।
नकारात्मक भूमिकाओं के लिए हुईं जज, समाज ने नहीं दिया सम्मान
दीपशिखा ने बताया कि ‘बादशाह’ जैसी फिल्मों में काम करने के बाद उन्हें लगातार नकारात्मक किरदारों की ही पेशकश की जाने लगी। उन्होंने कहा,
“मैं ऐसी भूमिकाएं नहीं करना चाहती थी क्योंकि लोग मुझे जज करने लगे थे। उस दौर में नकारात्मक भूमिकाओं को सम्मान नहीं दिया जाता था। लोग कहते थे – ‘ये तो साइड एक्टर है, बुरे काम करती है।’ जब आप समाज में रहते हैं, तो इस तरह की बातें सुनना बहुत तकलीफदेह होता है।”
टीवी पर भी उन्हें टाइपकास्ट कर दिया गया। दीपशिखा ने कहा कि भले ही ‘कोयला’ में उनका किरदार बिंदिया पूरी तरह से नकारात्मक नहीं था — वह शाहरुख खान के किरदार से प्यार करती थी और माधुरी दीक्षित के किरदार को बचाने की कोशिश करती थी — फिर भी सिर्फ अमरीश पुरी के साथ स्क्रीन शेयर करने की वजह से उन्हें ‘विलेन’ समझा गया। इसी तरह, ‘बादशाह’ में उन्होंने खलनायकों के साथ काम किया, तो उन्हें एक बार फिर नकारात्मक ही समझा गया।
रचनात्मक आज़ादी मिली, लेकिन भावनात्मक कीमत चुकानी पड़ी
दीपशिखा ने यह स्वीकार किया कि इन भूमिकाओं से उन्हें एक्टिंग के नए पहलू खोजने का मौका मिला, लेकिन इसका मानसिक असर गहरा था।
“लोगों ने मुझे जज करना शुरू कर दिया। जब मेरे माता-पिता का निधन हुआ, तो मुझे कोई ऐसा नहीं मिला जो मेरे काम की सराहना करता या मुझे सही दिशा दिखाता। मेरे अपने रिश्तेदार भी मेरे करियर को तुच्छ समझते थे।”
यह आलोचना केवल समाज तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसका असर उनकी बेटी तक भी पहुँचा।
“मुझसे कहा गया – ‘तुमने क्या किया? तुमने उस फिल्म में कपड़े उतारे, तुम्हारे बच्चे तुम्हें सम्मान नहीं देंगे।’ उस वक्त मुझे बेहद शर्मिंदगी महसूस हुई। मैंने खुद से सवाल करना शुरू कर दिया कि मैंने ‘कोयला’ और ‘बादशाह’ जैसी फिल्में क्यों कीं। मैं इतनी उलझन में आ गई कि मैंने लोगों को बताना ही बंद कर दिया कि मैं क्या कर रही हूँ।”
दीपशिखा ने बताया कि उनकी बेटी ने तो एक बार ‘कोयला’ की सीडी तक तोड़ दी थी।
“इस सबने मुझे चुप कर दिया। इसका मुझ पर गहरा मनोवैज्ञानिक असर पड़ा। मैं खुद को हर मोर्चे पर असफल महसूस करने लगी — एक अभिनेत्री के रूप में, एक पत्नी के रूप में, एक इंसान के रूप में। मैं अंदर से पूरी तरह टूट गई थी।”
अभिनय बना शरण, दुखों से निकलने का रास्ता
हालांकि, इन कठिन परिस्थितियों से बाहर निकलने में उन्हें उनके अभिनय ने ही सहारा दिया।
“मैंने सीखा कि आपके दुखों का कोई बाजार नहीं है। आप अगर कलाकार हैं, तो सिर्फ काम ही आपका सबसे बड़ा जवाब बनता है। अभिनय मेरी शरण बन गया।”
दीपशिखा नागपाल का सफर
दीपशिखा नागपाल ने कभी अभिनेता बनने का सपना नहीं देखा था। यह करियर उन्होंने संयोगवश शुरू किया। उन्होंने 1994 में फिल्म ‘गैंगस्टर’ से बॉलीवुड में कदम रखा। इसके बाद वे ‘करण अर्जुन’, ‘बादशाह’, ‘कोयला’, ‘बरसात की रात’, ‘दिल्लगी’, ‘रिश्ते’ और ‘पार्टनर’ जैसी फिल्मों में नजर आईं।
टीवी की दुनिया में भी उन्होंने खुद को सफलतापूर्वक स्थापित किया। ‘सोन परी’, ‘करिश्मा – द मिरेकल ऑफ डेस्टिनी’, ‘बालवीर’, ‘मधुबाला – एक इश्क एक जुनून’ जैसे धारावाहिकों में उन्होंने नकारात्मक लेकिन यादगार किरदार निभाए।
दीपशिखा नागपाल की कहानी न केवल एक अभिनेत्री की संघर्ष गाथा है, बल्कि यह समाज के पूर्वाग्रहों और कलाकारों की मानसिक चुनौतियों की भी झलक देती है — और इस बात का प्रमाण है कि अभिनय केवल एक पेशा नहीं, बल्कि आत्मा की अभिव्यक्ति भी हो सकता है।