संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने टैरिफ नीति की खुलकर प्रशंसा करते हुए कहा कि प्रतिशोधात्मक शुल्क एक “सुंदर चीज़” है, जिसका महत्व अमेरिकी नागरिकों को “किसी दिन समझ में आएगा।”
ट्रम्प की यह टिप्पणी ऐसे समय पर आई जब वैश्विक वित्तीय बाजार भारी गिरावट से गुजर रहे हैं और सोमवार को बाजार खुलने पर और नुकसान की आशंका जताई जा रही थी। इस उथल-पुथल के बीच, व्हाइट हाउस के सहयोगियों ने निवेशकों की चिंताओं को शांत करने की कोशिश की और दावा किया कि 50 से अधिक देशों ने टैरिफ हटाने को लेकर अमेरिका से बातचीत में रुचि दिखाई है।
ट्रम्प का तर्क: “टैरिफ एक समाधान है”
ट्रम्प ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथसोशल (Truth Social) पर लिखा,
“चीन, यूरोपीय संघ और कई अन्य देशों के साथ हमारा भारी वित्तीय घाटा है। इस समस्या का समाधान केवल टैरिफ के माध्यम से हो सकता है, जो अब यू.एस.ए. में दसियों अरब डॉलर ला रहे हैं। वे पहले से ही प्रभावी हैं और देखने में एक सुंदर चीज़ हैं।”
उन्होंने आगे कहा,
“स्लीपी जो बिडेन की ‘प्रेसीडेंसी’ के दौरान इन देशों के साथ अधिशेष बढ़ गया है। हम इसे पलट देंगे—और जल्दी पलट देंगे। किसी दिन लोगों को एहसास होगा कि टैरिफ अमेरिका के लिए एक बहुत ही सुंदर चीज़ है!”

टैरिफ नीतियों की समयरेखा और दायरा
2 अप्रैल को ट्रम्प ने अमेरिका के व्यापारिक ढांचे को पुनर्गठित करने और घरेलू उद्योगों को संरक्षण देने के उद्देश्य से टैरिफ की एक श्रृंखला लागू की।
इस दिन को उन्होंने “मुक्ति दिवस” (Liberation Day) करार दिया।
- इस दिन से अमेरिका में प्रवेश करने वाले सभी उत्पादों पर 10% का सार्वभौमिक आयात शुल्क लगाया गया।
- चीन, कनाडा और मैक्सिको सहित 57 देशों पर इससे भी उच्च दरों से टैरिफ लगाए गए।
- टैरिफ की गणना हर देश के साथ अमेरिका के मौजूदा व्यापार घाटे के आधार पर की गई, जिससे लक्ष्य यह था कि इन घाटों को धीरे-धीरे शून्य किया जा सके।
इसके अतिरिक्त:
- 3 अप्रैल को आयातित ऑटोमोबाइल पर 25% टैरिफ लगाया गया, जिससे जर्मनी, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे ऑटो निर्यातक देशों को झटका लगा।
- 9 अप्रैल से चीनी आयात पर प्रभावी टैरिफ 54% तक बढ़ा दिया गया, जिससे अमेरिका और चीन के बीच व्यापार तनाव और गहराया।
आलोचना और वैश्विक प्रतिक्रिया
हालांकि प्रशासन का तर्क है कि ये कदम व्यापार असंतुलन दूर करने, राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करने और तस्करी पर अंकुश लगाने के लिए ज़रूरी हैं, लेकिन कई अर्थशास्त्री और विश्लेषक इस पर सवाल उठा रहे हैं।
प्रमुख आलोचनाएँ:
- उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि
- आयात-निर्भर उद्योगों में नौकरियों की संभावित छंटनी
- प्रमुख व्यापारिक भागीदारों के साथ संबंधों में तनाव
- उपभोक्ता विश्वास में गिरावट और उत्पादन लागत में बढ़ोतरी के चलते संभावित मंदी का जोखिम
प्रतिक्रियास्वरूप, कनाडा, चीन, और यूरोपीय संघ जैसे देशों ने भी जवाबी टैरिफ की घोषणा की है, जिससे वैश्विक व्यापार तनाव और बढ़ गया है।
इसके अलावा, इन टैरिफों को लेकर कानूनी चुनौतियाँ भी उभर रही हैं, जो अमेरिकी कार्यकारी शक्ति की सीमा और अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों के अनुरूपता पर सवाल उठा रही हैं।
जैसे-जैसे ट्रम्प प्रशासन की यह आक्रामक व्यापार नीति आगे बढ़ रही है, विश्लेषक और अर्थशास्त्री इसके दीर्घकालिक प्रभाव पर नज़र रखे हुए हैं। यह देखना बाकी है कि क्या यह रणनीति अमेरिकी उद्योगों को लाभ पहुंचाएगी या वैश्विक अर्थव्यवस्था में और अस्थिरता लाएगी।