अमेरिका द्वारा लगाए गए आयात शुल्क की उथल-पुथल के बीच, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से बुधवार को ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद की जा रही है। यह वही समय होगा जब अमेरिका के टैरिफ प्रभावी होंगे। इस दोहरे दबाव की स्थिति में निवेशक बाजार में और अधिक अस्थिरता की आशंका जता रहे हैं, वहीं RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा से यह उम्मीद की जा रही है कि वे अर्थव्यवस्था को मंदी से बचाने के लिए ठोस कदम उठाएंगे।
ब्लूमबर्ग द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में शामिल 39 में से अधिकांश अर्थशास्त्रियों ने अनुमान लगाया है कि केंद्रीय बैंक अपनी बेंचमार्क पुनर्खरीद (रेपो) दर में 25 आधार अंकों की कटौती करेगा, जिससे यह घटकर 6% हो जाएगी। कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि कटौती इससे अधिक भी हो सकती है। इसके अलावा, कुछ विश्लेषकों को यह उम्मीद है कि छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (MPC) अपनी मौजूदा ‘तटस्थ’ नीति को बदलकर ‘समायोज्य’ (accommodative) कर सकती है, जिससे विकास-उन्मुख नीति की दिशा में संकेत मिलेगा।
वित्त वर्ष 2024-25 में भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर अनुमानतः 6.5% रहेगी, जो महामारी के बाद सबसे धीमी गति मानी जा रही है। ऐसे में, अमेरिका द्वारा लगाए गए अप्रत्याशित टैरिफ आर्थिक विकास पर अतिरिक्त दबाव डालने का जोखिम रखते हैं।
कई अर्थशास्त्रियों ने इस साल के लिए भारत की विकास दर के पूर्वानुमान को घटाना शुरू कर दिया है। गोल्डमैन सैक्स ग्रुप इंक. ने अपने अनुमान को घटाकर 6.1% कर दिया है, जबकि पहले यह 6.3% था। यह आंकड़ा भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अनुमानित 6.7% विकास दर से काफी कम है।
बढ़ती वैश्विक अनिश्चितताओं और घरेलू आर्थिक सुस्ती के चलते अब यह जरूरी हो गया है कि भारतीय रिजर्व बैंक आगे आकर नीति दरों में ढील दे और एक संतुलित व विकासोन्मुख वातावरण तैयार करे।