राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लगाए गए भारी शुल्कों की एक नई श्रृंखला बुधवार सुबह से लागू हो गई है, जो दुनिया भर के कई देशों से अमेरिका में किए जाने वाले आयात पर असर डालेगी।
इन तथाकथित पारस्परिक शुल्कों की दर सप्ताहांत में घोषित 10% की आधार दर से कहीं अधिक है। अब कुल मिलाकर 86 देशों से अमेरिका में किए जाने वाले आयात पर 11% से लेकर 84% तक के ऊँचे शुल्क लगाए जा रहे हैं।
इस सूची में चीन सबसे ऊपर है, जिसे अब अमेरिका को किए जाने वाले अपने निर्यात पर कुल 104% का प्रभावी शुल्क देना होगा। यह दर पहले लगाए गए 20% शुल्क, फिर 34% के अतिरिक्त शुल्क और अंततः मंगलवार देर रात राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा हस्ताक्षरित 50% की वृद्धि को मिलाकर तय की गई है।
चीन का तीखा विरोध
सीएनबीसी द्वारा अनुवादित एक बयान में, चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने मंगलवार को कहा, “चीन पर शुल्क बढ़ाने की अमेरिकी धमकी एक बड़ी गलती है।” मंत्रालय ने आगे कहा, “चीन इसे कभी स्वीकार नहीं करेगा। यदि अमेरिका अपने रवैये पर अड़ा रहा, तो चीन इसका डटकर मुकाबला करेगा।”
अन्य देशों पर भी भारी असर
चीन के बाद, लेसोथो को सबसे ऊंचे शुल्कों का सामना करना पड़ रहा है, जहाँ से अमेरिका को किए जाने वाले निर्यात पर अब 50% शुल्क लगेगा। उसके बाद कंबोडिया का स्थान है, जिस पर 49% शुल्क लगाया गया है। दक्षिण-पूर्व एशिया के दो अन्य देशों—लाओस और वियतनाम—पर क्रमशः 48% और 46% की दर से शुल्क लागू किए गए हैं।
शेयर बाजार पर प्रभाव
2 अप्रैल को ट्रम्प द्वारा इन शुल्कों की घोषणा के बाद से अमेरिकी शेयर बाजारों में लगातार चार दिनों तक गिरावट दर्ज की गई। हालांकि व्हाइट हाउस और राष्ट्रपति ट्रम्प ने इस गिरावट को ज्यादा तवज्जो नहीं दी। ट्रम्प ने मंगलवार को व्हाइट हाउस में कहा, “अमेरिका बहुत जल्द फिर से बहुत अमीर बनने जा रहा है।”
एशियाई बाजारों में भी गिरावट
बुधवार को जैसे ही ये नए टैरिफ लागू हुए, एशियाई शेयर बाजारों में भी गिरावट देखी गई। विशेष रूप से दक्षिण कोरिया का प्रमुख बेंचमार्क KOSPI इंडेक्स दबाव में नजर आया।
भारत की प्रतिक्रिया
इन आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए भारत के केंद्रीय बैंक ने भी तत्काल कदम उठाया और अपनी मौद्रिक नीति दर में 25 आधार अंकों की कटौती की, जिससे यह घटकर 6% पर आ गई। वहीं अमेरिका को भारत से किए जाने वाले निर्यात पर अब 26% शुल्क लागू हो गया है।