Saturday, April 26, 2025

टैरिफ पर ट्रम्प के संकेत से फार्मा शेयरों में आई भारी गिरावट, निवेशकों में बढ़ी चिंता

भारतीय फार्मास्युटिकल कंपनियों के शेयरों में शुक्रवार को जोरदार गिरावट देखी गई, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने संकेत दिया कि फार्मा सेक्टर पर टैरिफ लगाए जा सकते हैं। अरबिंदो फार्मा, लॉरस लैब्स, आईपीसीए लैबोरेटरीज और ल्यूपिन जैसी कंपनियों के शेयरों में 8% तक की गिरावट दर्ज की गई।

टैरिफ का इशारा

एयर फोर्स वन में पत्रकारों से बात करते हुए ट्रम्प ने कहा कि उनका प्रशासन फार्मास्युटिकल्स पर संभावित टैरिफ का मूल्यांकन कर रहा है। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि फार्मा पर टैरिफ उस स्तर पर आएगा, जो पहले कभी नहीं देखा गया।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि फार्मास्युटिकल्स को एक अलग श्रेणी के रूप में देखा जा रहा है और इसकी घोषणा जल्द ही हो सकती है। उन्होंने कहा, “हम फार्मा को एक अलग श्रेणी के रूप में देख रहे हैं। हम निकट भविष्य में इसकी घोषणा करेंगे — दूर के भविष्य में नहीं।”

उलटफेर से बढ़ी असमंजसता

यह टिप्पणी ऐसे समय आई जब ठीक एक दिन पहले फार्मा शेयरों में मजबूती दर्ज की गई थी। गुरुवार को निफ्टी फार्मा इंडेक्स 2.3% बढ़ा था। IPCA लैब्स के शेयरों में 4.6% की उछाल देखी गई थी, जबकि ल्यूपिन, सन फार्मा और सिप्ला जैसे शेयरों में 3-4% की तेजी आई थी। निवेशकों को उम्मीद थी कि फार्मा सेक्टर व्यापार प्रतिबंधों से सुरक्षित रहेगा, लेकिन ट्रम्प के ताजा बयान ने धारणा को बदल दिया।

पहले छूट में था फार्मा

2 अप्रैल को घोषित “लिबरेशन डे” टैरिफ प्लान के तहत अमेरिका ने भारत से आयातित वस्तुओं पर व्यापक रूप से 26% टैरिफ लागू किया था। अमेरिकी प्रशासन का दावा है कि यह कदम भारत द्वारा अमेरिकी कंपनियों पर लगाए गए शुल्क का आधा है। व्हाइट हाउस द्वारा जारी फैक्ट शीट में बताया गया था कि फार्मास्युटिकल्स, तांबा, सेमीकंडक्टर्स और लकड़ी जैसे उत्पादों को शुरुआती चरण में पारस्परिक टैरिफ से बाहर रखा गया था।

अब टैरिफ की आशंका गहराई

हालांकि, विशेषज्ञों का पहले मानना था कि भारत के फार्मास्युटिकल निर्यात — खासकर जेनेरिक दवाओं — पर टैरिफ लगाने की संभावना कम है, क्योंकि इससे अमेरिका की हेल्थकेयर लागत में वृद्धि हो सकती है। लेकिन ट्रम्प के नवीनतम बयान से संकेत मिलता है कि अब यह सेक्टर भी टैरिफ की चपेट में आ सकता है, जिससे निवेशकों में घबराहट फैल गई है।

भारत की बढ़त, फिर भी जोखिम

नुवामा का कहना है कि जेनेरिक दवाएं अभी भी आयात शुल्क के प्रति कम संवेदनशील हैं क्योंकि वे अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को हर साल करीब 400 अरब डॉलर की बचत देती हैं। अमेरिका में जेनेरिक दवाओं के निर्माण की क्षमता सीमित है और यूरोपीय कंपनियां मुख्य रूप से पेटेंट वाली दवाओं पर काम करती हैं। भारत की कम लागत, USFDA से स्वीकृत उत्पादन इकाइयों की अधिकता और बड़े पैमाने पर उत्पादन क्षमता इसे प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त देती हैं। इससे उम्मीद है कि भविष्य में भारत टैरिफ से बच सकता है।

जो कंपनियां सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकती हैं

अमेरिका में अधिक बिक्री हिस्सेदारी रखने वाली भारतीय फार्मा कंपनियों पर टैरिफ का ज्यादा असर पड़ सकता है। इनमें शामिल हैं:

  • ग्लैंड फार्मा: 50%
  • ज़ाइडस लाइफ साइंसेज: 46%
  • अरबिंदो फार्मा: 48%
  • डॉ रेड्डीज: 47%
  • पिरामल फार्मा: 41%
  • सन फार्मा: 32%
  • टोरेंट फार्मा: 10%

विश्लेषकों का मानना है कि यदि टैरिफ लागू होता है तो जेनेरिक दवाओं पर अपेक्षाकृत कम टैरिफ लगाया जाएगा या छूट मिल सकती है, क्योंकि उनकी कीमतें पहले से ही काफी कम हैं और वे कीमतों को थोड़ा बढ़ाकर असर को संतुलित कर सकती हैं।

उपभोक्ताओं पर पड़ेगा बोझ

फार्मा कंपनियों का कहना है कि अगर टैरिफ बढ़ता है तो इसका बोझ अमेरिकी उपभोक्ताओं पर डालना पड़ेगा। जेनेरिक दवाओं के मामले में भारत का स्केल और लागत का मेल कोई और देश प्रदान नहीं कर सकता।

जेफरीज के अनुसार, “कई ग्राहकों के साथ अनुबंधों में ऐसे प्रावधान हैं जिनके तहत इनपुट लागत में वृद्धि को ग्राहकों तक पहुंचाया जा सकता है। इसलिए मौजूदा अनुबंधों के आधार पर टैरिफ का असर ग्राहकों पर डाला जाना संभव है।” उनका कहना है कि जेनेरिक दवा आपूर्ति श्रृंखला में टैरिफ का बोझ खुद उठाने की बहुत सीमित क्षमता है।

ट्रंप के बयान से जहां बाजार में हड़कंप मच गया है, वहीं विश्लेषकों और कंपनियों को उम्मीद है कि जेनेरिक दवाओं की अपरिहार्यता अमेरिका को भारत पर भारी टैरिफ लगाने से रोकेगी। हालांकि, अनिश्चितता ने फार्मा निवेशकों को सतर्क कर दिया है, और बाजार में अस्थिरता बढ़ सकती है।

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