वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की चुनौतियों से जूझ रही भारतीय एयरलाइनों को अब एक नया अवसर मिल सकता है। चीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लगाए गए 145% टैरिफ के जवाब में अपनी एयरलाइनों को बोइंग विमान खरीदने से परहेज करने के निर्देश दिए हैं। इस कदम से भारतीय एयरलाइनों, खासकर एयर इंडिया एक्सप्रेस और अकासा एयर को अप्रत्याशित लाभ मिल सकता है।
चीन के पास अटके हैं सैकड़ों बोइंग विमान
फिलहाल चीन की एयरलाइनों ने लगभग 100 बोइंग 737 मैक्स जेट्स और 11 बोइंग 787 ड्रीमलाइनर विमानों का ऑर्डर दिया हुआ है, जिनकी डिलीवरी लंबित है। यही विमान एयर इंडिया और अकासा एयर जैसी भारतीय कंपनियों की प्राथमिकताओं में भी शामिल हैं।
भारतीय एयरलाइनों को मिल सकते हैं ‘व्हाइट टेल’ विमान
विमानन क्षेत्र के विशेषज्ञों के अनुसार, जो विमान पहले चीनी ग्राहकों के लिए बनाए गए थे, वे अब भारतीय कंपनियों को दिए जा सकते हैं। पहले भी ऐसा उदाहरण देखा गया है जब “व्हाइट टेल” (वे विमान जो किसी खास ग्राहक के लिए बनाए गए थे, लेकिन बाद में किसी अन्य को बेचे गए) एयर इंडिया एक्सप्रेस और अकासा को दिए गए थे। 2023 में, एयर इंडिया एक्सप्रेस ने 25 व्हाइट टेल मैक्स विमान खरीदे थे और उसे 25 और मिलने वाले हैं।
सिएटल असेंबली लाइन से लाभ उठाएंगी भारतीय कंपनियां
अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ विवाद के कारण सिएटल में बोइंग की अंतिम असेंबली लाइन की उत्पादन क्षमता अब अप्रयुक्त हो सकती है। इस स्थिति का फायदा उठाकर एयर इंडिया एक्सप्रेस और अकासा जैसी कंपनियां अतिरिक्त विमान खरीद सकती हैं – चाहे वे विशेष रूप से बनाए गए हों या व्हाइट टेल हों।
एयरबस से चीन की बढ़ती मांग
दूसरी ओर, एयरबस के पास A320 जैसे लोकप्रिय मॉडलों के लिए दो असेंबली लाइनें हैं। चीन अब एयरबस से अपनी एयरलाइनों के लिए विमान आपूर्ति बढ़ाने का अनुरोध कर सकता है, जिससे एयरबस की वैश्विक डिलीवरी प्रणाली पर दबाव बढ़ सकता है।
बोइंग की देरी और अकासा की परेशानियां
बोइंग की डिलीवरी में हो रही देरी ने अकासा को काफी प्रभावित किया है। अकासा ने जितने पायलट रखे हैं, उनके अनुपात में विमान कम हैं, जिससे कई कॉकपिट क्रू बेकार बैठे हैं और असंतोष की स्थिति बनी हुई है।
टाटा समूह की वित्तीय क्षमता
टाटा समूह के पास एयर इंडिया एक्सप्रेस और अकासा दोनों को अतिरिक्त विमान उपलब्ध कराने की पर्याप्त वित्तीय क्षमता है। इन दोनों बजट एयरलाइनों ने व्हाइट टेल विमानों को भी अपनी सेवाओं में शामिल किया है, जिनमें कुछ में 2×2 बिजनेस क्लास सीटिंग की विशेष व्यवस्था भी थी।
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध का असर
अमेरिका और चीन के बीच का व्यापार युद्ध अब एयरोस्पेस उद्योग को भी अपनी चपेट में ले रहा है। हाउमेट एयरोस्पेस जैसे अमेरिकी आपूर्तिकर्ताओं द्वारा टैरिफ की लागत को लेकर उठाए गए सवालों के कारण अरबों डॉलर के अनुबंधों की समीक्षा हो रही है। कई एयरलाइन सीईओ का कहना है कि वे शुल्क चुकाने की बजाय विमानों की डिलीवरी टालना पसंद करेंगे।
चीन के भविष्य के बोइंग ऑर्डर अधर में
चीन की तीन प्रमुख एयरलाइनों – एयर चाइना, चाइना ईस्टर्न और चाइना सदर्न – ने 2025 से 2027 के बीच 45, 53 और 81 बोइंग विमानों की डिलीवरी की योजना बनाई थी। लेकिन मौजूदा टैरिफ नीति के चलते इन ऑर्डरों का भविष्य अब अनिश्चित हो गया है।
अमेरिकी पुर्जों पर प्रतिबंध से C919 पर खतरा
बीजिंग ने न केवल विमान खरीदने बल्कि अमेरिकी पुर्जों और उपकरणों की खरीद पर भी रोक लगाने के संकेत दिए हैं। हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि इससे चीन के अपने विमान कार्यक्रम, जैसे कि COMAC C919, को बड़ा नुकसान हो सकता है क्योंकि वे अमेरिकी पुर्जों पर निर्भर हैं।
बोइंग पर असर सीमित लेकिन संकेत गंभीर
भले ही बोइंग इन विमानों को अन्य ग्राहकों को बेच सके, लेकिन चीन द्वारा की गई यह कार्रवाई वैश्विक विमानन उद्योग के लिए एक चेतावनी है। इससे भविष्य में विमान खरीद, आपूर्ति और तकनीकी साझेदारियों में बड़ा बदलाव आ सकता है।
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध की तपिश अब आसमान में महसूस की जा रही है। चीन के इस फैसले से जहां भारतीय एयरलाइनों को राहत और विस्तार का मौका मिल सकता है, वहीं यह घटना वैश्विक विमानन उद्योग के लिए एक बड़ा संकेत है कि व्यापारिक तनाव अब केवल जमीन तक सीमित नहीं हैं – वे हवा में उड़ानों की दिशा भी तय कर सकते हैं।