भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बुधवार को कहा कि भारत के लिए सबसे बड़ी आर्थिक चुनौती फिलहाल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए पारस्परिक टैरिफ हैं, न कि महंगाई।
मौद्रिक नीति की समीक्षा के बाद आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मल्होत्रा ने स्पष्ट किया कि टैरिफ से जुड़ी अनिश्चितताएं भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर चिंताओं में से एक हैं और यही कारण है कि RBI ने चालू वित्त वर्ष 2025-26 के लिए GDP विकास दर के पूर्वानुमान में कटौती की है।
डोनाल्ड ट्रंप की सरकार द्वारा भारतीय वस्तुओं पर लगाए गए 26% शुल्क उसी दिन से लागू हो गए हैं। इसके बाद RBI ने अपनी वास्तविक GDP वृद्धि दर का पूर्वानुमान 6.7% से घटाकर 6.5% कर दिया है।
RBI द्वारा घोषित तिमाही दरें इस प्रकार हैं:
- पहली तिमाही: 6.5%
- दूसरी तिमाही: 6.7%
- तीसरी तिमाही: 6.6%
- चौथी तिमाही: 6.3%
अपने नीतिगत संबोधन में गवर्नर मल्होत्रा ने कहा, “हाल ही में व्यापार शुल्कों से जुड़े कदमों ने वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में और अधिक अनिश्चितता जोड़ दी है। इससे विश्व अर्थव्यवस्था की वृद्धि और मुद्रास्फीति, दोनों के लिए नई चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि इस वैश्विक अस्थिरता के बीच कुछ सकारात्मक संकेत भी देखे गए हैं।
- अमेरिकी डॉलर में गिरावट
- बॉन्ड प्रतिफल में कमी
- इक्विटी बाजारों में सुधार
- कच्चे तेल की कीमतें तीन वर्षों के न्यूनतम स्तर पर
हालांकि, मल्होत्रा ने आश्वस्त किया कि भारत पर टैरिफ का प्रभाव अन्य देशों की तुलना में काफी कम होगा, क्योंकि देश को “तुलनात्मक लाभ” प्राप्त है।
RBI ने लगातार दूसरी बार बेंचमार्क रेपो दर में 25 आधार अंकों की कटौती की है। अब यह दर 6% हो गई है। इसके साथ ही RBI ने अपना मौद्रिक रुख तटस्थ से बदलकर ‘उदार’ कर दिया है, जिसका उद्देश्य है ब्याज दरों में नरमी लाकर अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करना।
गवर्नर मल्होत्रा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अगले कुछ महीनों में नज़रें सिर्फ घरेलू मुद्रास्फीति पर नहीं बल्कि वैश्विक व्यापार नीतियों और अमेरिकी टैरिफ की दिशा पर भी टिकी रहेंगी।