रामजन्मभूमि में विराजमान रामलला के मंदिर निर्माण की प्रक्रिया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से भूमि पूजन के बाद आगे बढ़ रही है। मंदिर का निर्माण कार्य चरणबद्ध तरीके से किया जाएगा। सबसे पहले नींव को दो सौ फिट नीचे ले जाने की तकनीक पर मंथन हो रहा है। इस तकनीक के अनुसंधान में कार्यदाई संस्था लार्सन एण्ड टुब्रो (एलएण्डटी) के तकनीकी विशेषज्ञों के साथ आईआईटी, चेन्नई के विशेषज्ञ भी शामिल हैं। नींव की डिजाइन को अंतिम रूप दिए जाने के बाद प्लानिंग की जाएगी।
नींव पर ही होगा मंदिर का दारोमदार
रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय का कहना है कि नींव की मजबूती से ही मंदिर की अधिकतम आयु का निर्धारण किया जाएगा। ऐसे में तकनीक के इस्तेमाल में सावधानी बरती जा रही है। उन्होंने बताया कि यह कार्य नदियों में पुल निर्माण के दौरान स्तम्भों को स्थापित करने की प्रक्रिया की ही तरह है। वह बताते हैं कि रामजन्मभूमि परिसर में नींव की खुदाई और नदी के स्तम्भ में बड़ा अंतर यह है कि नदी के स्तम्भ में नदी की सतह से नीचे लोहे गलाए जाते हैं। जबकि मंदिर की नींव में लोहे नहीं गलाए जाएंगे बल्कि कांकरिटिंग की जाएगी। उन्होंने बताया कि पहले चरण में दो सौ फिट मिट्टी के ताकत की जांच कराई जा चुकी है।
आधार का काम पूरा होने के बाद शुरू होगा गर्भगृह का निर्माण
विराजमान रामलला के गर्भगृह का निर्माण नींव का काम पूरा होने के बाद शुरु होगा। यह निर्माण पूर्व प्रस्तावित मॉडल के ही अनुसार किया जाएगा। राजस्थान के बंसीपहाड़ के लाल पत्थरों से निर्मित होने वाले राम मंदिर के गर्भगृह सहित पहली मंजिल के लिए पत्थरों की तराशी का काम पहले ही पूरा हो चुका है। काफी समय से तराशे गये पत्थर रामघाट स्थित कार्यशाला में व्यवस्थित तरीके से क्रमवार रखवाए गये हैं, जिन्हें सिलसिलेवार तरीके से उठाकर यथास्थान पर रखवाकर निर्माण कभी भी शुरु किया जा सकता है। इस कार्य में न्यूनतम समय लगेगा लेकिन नींव का कार्य पेंचीदा है।